सौभाग्य की देवी मॉ शैलपुत्री की पूजा के साथ ही नवरात्रि प्रारंभ हो जाएगी। पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना की जाएगी। दूसरे तीन दिन रजोगुणी और आखरी तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना की जाएगी। इसलिए कि हमारी चेतना इन्हीं तीन गुणों से व्याप्त है। इस तरह कह सकते हैं कि नवरात्रि हमें खुद को त्रिगुणातीत अवस्था में आने का अवसर प्रदान करती है। दूसरे शब्दों में नवरात्रि खुद के शुद्धिकरण का पवित्र त्योहार है।
सवाल है कि शुद्धिकरण हो कैसे? मॉ की आराधना से बेहतर क्या हो सकता है। पर, योग विद्या में भी इसके लिए कई साधनाएं हैं। यामल तंत्र में कथा है कि माता पार्वती ने शिवजी से पूछा था – स्वामी, मन चंचल रहता है। किस विधि उससे मुक्ति मिल सकती है? आदियोगी शिव जी ने 112 योग विधियां बताते हुए कहा, कोई भी एक विधि का अभ्यास कर लीजिए। बात बन जाएगी। हठयोग के बारे में कहा जाता है कि इसका पहला प्रयोजन घट-शुद्धि है। हमारे गुरु जी कहते है कि जैसे बर्तन माँजते हो, मकान की दीवारों पर सफेदी करते हो, ठीक उसी प्रकार हठयोग का भी प्रयोजन है घट-शुद्धि। घट से अभिप्राय शरीर से है। यह संसारी लोगों को आधि, व्याधि और उपाधि मंदिर और योगियों के लिए समाधि मन्दिर है। इसके अन्दर नस-नाड़ियों है, हड्डी-माँस है, पाचन संस्थान, तंत्रिका तंत्र, प्रजनन संस्थान आदि अनेकों प्रणालियाँ हैं। इन सब को शुद्ध रखना ही घट-शुद्धि है। यही हठयोग का प्रयोजन है।
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में यम-नियम को योग विद्या का आधार माना गया है। आंतरिक शुद्धि के लिए इसे अनिवार्य साधना माना गया है। प्रश्नोपनिषद में प्रसंग है कि छह जिज्ञासु अपने-अपने सवाल लेकर जब महर्षि पिप्पलाद के पास जाते हैं तो महर्षि उनसे कहते हैं कि पहले प्रत्युत्तर में कही गई बातों को ग्रहण करने का अधिकारी बनो। यह काम आंतरिक शुद्धि से ही संभव है। इसके लिए जरूरी है कि एक साल तक यम-नियम का पालन करो। शिष्य ऐसा ही करते हैं और तब उन्हें उपदेश मिलता है। नियम अष्टांग योग का द्वितीय पायदान है। इसके उपांगों के अंतर्गत प्रथम ‘शौच’ का उल्लेख मिलता है। योगी कहते हैं कि शौच का अभ्यास न हो तो शरीर और मन रोग और शोक से ग्रस्त हो जाता है। यानी अपने भीतर की मलिनता निकाल देने का नाम ही शौच है। सवाल है कि शौच का अभ्यास कैसे किया जाए?
जैसा कि मैंने पहले ही उल्लेख किया है कि इस काम के लिए अनेक योग विधियों का अभ्यास किया जा सकता है। जैसे, कुंजल, शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती आदि। ये क्रियाएं हठयोग के तहत आती हैं। मैं इस लेख में अपनी बात नेति और कुंजल तक ही सीमित रखूंगा। नवरात्रि के दौरान शुद्धि-क्रिया के लिहाज से ये योग विधियां तो उपयोगी हैं ही, भारत सहित दुनिया भर में समय-समय पर फैलने वाले संक्रामक रोगों से बचाव के लिहाज से भी ये बड़े महत्व के हैं। आयुर्वेदाचार्यों और योगियों दोनों का मत है कि कफ और पित्त दोषों के अलावा गले के बलगम और गले की अन्य पीड़ाओं से राहत दिलाने में कुंजल क्रिया मददगार होती है। और, यह काम नेति के साथ हो तो सोने पे सुहागा।
आपको याद होगा कि तीन साल पहले कोरोना महामारी के दौरान अमेरिका में भारतीय मूल के कंप्यूटर प्रोफेशनल प्रमोद भगत ने भारतीय टीवी चैनलों को बताया था कि कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद कुंजल क्रिया की बदौलत वे वेंटिलेटर पर जाने से बच गए और कोरोना-मुक्त भी हो गए। यह चमत्कार बिहार योग विद्यालय के संस्थापक महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की सूक्ष्म ऊर्जा की वजह से हुआ। योगनिद्रा करते हुए उन्हें स्पष्ट अनुभूति हुई थी कि स्वामी जी कह रहे हैं, कुंजल करो। ठीक हो जाओगे। उन्होंने स्वामी जी के बताए मुताबिक ही काम किया था। यह बात किसी को अविश्वसनीय लग सकती है। पर यह भी सच है कि विशेष ऊर्जा के प्रभावों के सामने सारे तर्क बेकार हो जाते हैं। ऐसी ऊर्जा से संपन्न योगी किसी भी क्रिया, किसी भी चीज को माध्यम बनाकर कष्ट हर सकते हैं, अविश्वसनीय काम कर सकते हैं। उदाहरण भरे पड़े हैं।
जहां तक वैज्ञानिक शोधों की बात है तो केवल कुंजल क्रिया पर शोध कार्य कम ही हुए हैं। षट्कर्म के कई आयामों पर कई शोध किए गए। उनमें कुंजल क्रिया के असर की स्थापित मान्यताओं को सही पाया गया। जबलपुर स्थित राजकीय आयुर्वेद कॉलेज एवं अस्पताल में कुंजल क्रिया पर अध्ययन किया गया था। इसकी अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि यह क्रिया कफ व पित्त दोषों से मुक्ति के लिए बेहद प्रभावशाली क्रिया है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्व विद्यालय के योग एवं स्वास्थ्य विभाग आदि ने षट्कर्म या शुद्धि क्रियाओं के विभिन्न आयामों पर अध्ययन किया तो समग्रता में षट्कर्म के साथ ही कुंजल और नेति की महत्ता का भी पता चला।
स्मरण होगा कि जापान में कोविड-19 के कारण मृत्यु दर काफी कम थी। शोधकर्त्ताओं ने पाया कि वहां सामाजिक दूरी और मास्क का उपयोग तो बेहतर तरीके से किया ही गया था। साथ ही नमकीन कुनकुने पानी से नाक और गले को साफ रखने पर काफी जोर दिया गया था। ये क्रियाएं योगशास्त्र के जलनेति और कुंजल की तरह की थीं। यह बात शोध का विषय बन गई। राजस्थान के चार चिकित्सा संस्थानों एसएमएस मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग, इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) के महामारी विज्ञान विभाग, आस्थमा भवन के शोध प्रभाग और राजस्थान हास्पीटल के छह चिकित्सकों डा. श्वेता सिंह, डॉ नीरज शर्मा व डॉ दयाकृष्ण मंगल, डॉ उदयवीर सिंह व डॉ तेजराज सिंह और वीरेंद्र सिंह ने कोई 28 दिनों तक अध्ययन किया। इस दौरान नेति और कुंजल क्रियाओं के बेहतर परिणाम मिले थे। चिकित्सा जगत इस अध्ययन को विश्वसनीय माना था और इसे इंडियन चेस्ट सोसाइटी के प्रतिष्ठित जर्नल “लंग इंडिया” में जगह दी गई थी।
इस तरह हम देखते हैं कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आंतरिक शुद्धिकरण के लिए नेति और कुंजल बड़े महत्व के हैं।
(लेखक उषाकाल के संपादक व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)