योगनिद्रा में हाइपोथैलेमस ग्रंथि परानुकंपी नाड़ी संस्थान द्वारा दिल तक पहुंचने वाले विद्युत फाइबर्स को तनाव दूर करने के संकेत भेजती है। परिणाम स्वरूप दिल की धड़कन, रक्तचाप और हृदय की पेशियों पर पड़ने वाला भार कम हो जाता है। हृदय को राहत मिलती है। जो हृदय रोगी विभिन्न प्रकार के योगासन न करने की स्थिति में हों, उन्हें नाड़ी शोधन प्राणायाम के साथ ही योगनिद्रा का अभ्यास जरूर करना चाहिए।कोविड-19 वैसे तो मुख्यत: श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला संक्रमण है। पर इससे हृदय रोगियों पर खासा कहर बरपा है। चिकित्सक और चिकित्सा शोध संस्थान की ओर से हृदय रोगियों को कोविड-19 के आलोक में बार-बार चेतावनी दी जाती रही है। दूसरी तरफ प्रमुख योग संस्थानों के संन्यासियो व योगाचार्यों ने बताया कि कोरोनाकाल में किस तरह के योगाभ्यास किए जाएं कि विश्वव्यापारी महामारी से बचाव हो सके। बावजूद मैं व्यक्तिगत रूप से अनेक हृदय रोगियों को जानता हूं, जिन्हें चेतावनियों और सलाहों को नजरंदाज करना भारी पड़ गया। एक सज्जन की जान तो बच गई। पर योग को जीवन पद्धति बनाने की मजबूरी है। मजबूरी इसलिए कि उन्हें संक्रमित होने से पहले तक योग की विधियां खासतौर से हृदय रोग के मामले में महत्वहीन जान पड़ती थी। अब जीवन भर के लिए योग ही सहारा है। हृदय रोग से बचाव में योग की भूमिका पर दुनिया भर में अनुसंधान किए जाते रहे हैं। अपने देश में सरकार के स्तर पर तो योग अनुसंधान पर काफी देर से काम शुरू हुआ। पर बिहार योग विद्यालय और कैवल्यधाम, लोनावाला के साथ ही स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान ने विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के साथ मिलकर खासतौर से हृदय रोग पर काफी काम किया। कैवल्यधाम के संस्थापक स्वामी कुवल्यानंद और उनके शिष्य स्वामी दिगंबर जी ने तो अपने शरीर पर ही कई शोध कर डाले। यह सर्वविदित है कि स्वामी दिगंबर जी ने अनुसंधानों के लिए अपने शरीर का इतना इस्तेमाल किया कि बीमार पड़ गए। पर प्राय: सभी शोधों के नतीजें योग के पक्ष में रहे। योग में उपचार के तीन पक्ष माने गए हैं – चिकित्सात्मक, रक्षात्मक और संवर्द्धक। मनुष्य रोगी है तो उसकी चिकित्सा होती है और वह स्वास्थ्य को प्राप्त करता है। यदि इस बात का अहसास है कि भविष्य में शारीरिक या मानसिक पीड़ाएं हो सकती हैं और उस स्थिति से बचने के लिए कोई उपाय कर लिया जाए तो यह हुआ रक्षात्मक। संवर्द्धनात्मक उपाय वह है कि हमें कोई समस्या तो नहीं होती। पर हम स्वस्थ्य हैं और स्वस्थ्य बने रहें, इसके लिए उपाय करते रहते हैं। यानी संतुलित आहार और नियमित योगाभ्यास। पर कैवल्यधाम के सीईओ डॉ सुबोध तिवारी कहते हैं – “आदमी योगशालाओं में हमेशा चिकित्सा के लिए ही आता है, रक्षा के लिए नहीं। इसलिए कि वह सोचता है कि मैं स्वस्थ्य हूं, मुझे क्या होना है। नतीजा होता है कि शरीर की ऊर्जा और सामर्थ्य का दुरूपयोग होने से तन-मन बीमार हो जाता है।“ सच है कि कोरानाकाल में हृदय रोग से बचाव के लिए अनेक यौगिक उपाय सुझाए गए थे। यह जानते हुए कि हृदय रोगियों के लिए कोरोना संक्रमण घातक है, अनेक लोग लापरवाह बने रह गए। नतीजा है कि कोरोना संक्रमण से पहले जहां भारत में तीन मिलियन लोग हृदयाघात से काल के गाल में समां जाते थे। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इस साल एक मिलियन का इजाफा होने की संभावना बनी हुई है। योगाचार्यों की मानें तो दो तरह के लोग हैं जो योग से दूर रहते हैं। कुछ लोग तो लापरवाह होते हैं और योग की महत्ता को समझते हुए भी उस पर अमल नहीं करते। पर दूसरी श्रेणी के लोग वे हैं, जिन्हें योग की वैज्ञानिकता पर ही संदेह है। ऐसे लोग ज्यादा खतरा मोल लेते हैं। हाल ही हुए कुछ अध्ययनों के निष्कर्षों से साफ है कि योग का हृदय रोगियों पर कितना सकारात्मक असर होता है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) ने देशभर के 24 स्थानों पर किए गए अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि योग हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद करता है। लंबे समय तक किए गए क्लीनिकल ट्रायल के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस ट्रायल के दौरान हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योग आधारित पुनर्वास (योगा-केयर) की तुलना देखभाल की उन्नत मानक प्रक्रियाओं से की गई है। “योगा केयर” नाम से मरीजों के अनुकूल एक पाठ्यक्रम तैयार किया गया था। उसमें ध्यान, श्वास अभ्यास, हृदय अनुकूल चुनिंदा योगासन और जीवन शैली से संबंधित सलाह शामिल किया गया। पुणे स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग में भी कॉर्डियोवास्कुलर ऑटोनोमिक फंक्शन पर प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन किया गया। नतीजा आशाजनक रहा। पाया गया कि दो महीनों तक नियमित रूप से प्राणायाम की विधियों को अपनाने वाले मरीजों में सुधार सामान्य मरीजों की तुलना में कई गुणा ज्यादा था। यौन क्रियाओं का हृदय से सीधा संबंध स्थापित सत्य है। इसके लाभ-हानि पर चर्चा होती रहती है। पर हानि से बचाव का कोई यौगिक उपचार है? इस सवाल पर चर्चा कम ही हुई। विभिन्न स्तरों पर हुए शोधों से साबित हो चुका है कि हृदय को खास परिस्थियों की वजह से होने वाली हानि से बचाव में योग कारगर है। उस योग का नाम है – सिद्धासन। गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम द्वारा शोधित “सिद्धासन” को विज्ञान की कसौटी पर बार-बार कसा गया और हर बार खरा साबित हुआ। नतीजतन, सिद्धासन हृदय रोग से बचाव के लिए अनुशंसित योगाभ्यासों में सबसे महत्वपूर्ण बन गया है। अनुसंधानकर्त्ताओं ने पाया है कि नाड़ी शोधन प्राणायाम और कुछ सावधानियों के साथ यह योगाभ्यास पुरूषों और महिलाओं को समान रूप से लाभ पहुंचाता है। योग क्रियाओं के अभ्यासों के प्रभावों पर अब तक जितने भी अनुसंधान किए गए हैं, देश में या देश से बाहर, लगभग सभी के परिणाम योग के पक्ष में रहे। साबित हुआ कि हृदय मंडल, श्वसन मंडल और अंतस्रावी मंडलों पर यौगिक क्रियाओं के सकारात्मक प्रभाव होते हैं। मैंने अपने लेखों में बार-बार योगनिद्रा की चर्चा की है। यह हृदय रोग के लिए भी रामबाण है। योगनिद्रा में हाइपोथैलेमस ग्रंथि परानुकंपी नाड़ी संस्थान द्वारा दिल तक पहुंचने वाले विद्युत फाइबर्स को तनाव दूर करने के संकेत भेजती है। परिणाम स्वरूप दिल की धड़कन, रक्तचाप और हृदय की पेशियों पर पड़ने वाला भार कम हो जाता है। हृदय को राहत मिलती है। जो हृदय रोगी विभिन्न प्रकार के योगासन न करने की स्थिति में हों, उन्हें नाड़ी शोधन प्राणायाम के साथ ही योगनिद्रा का अभ्यास जरूर करना चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)
- Homepage
- News & Views
- Editor’s Desk
- Yoga
- Spirituality
- Videos
- Book & Film Review
- E-Magazine
- Ayush System
- Media
- Opportunities
- Endorsement
- Top Stories
- Personalities
- Testimonials
- Divine Words
- Upcoming Events
- Public Forum
- Astrology
- Spiritual Gurus
- About Us
Subscribe to Updates
Subscribe and stay updated with the latest Yoga and Spiritual insightful commentary and in-depth analyses, delivered to your inbox.
कोरोना महामारी से दो-चार होते हृदय रोगी
Related Posts
0
0
votes
Article Rating
Subscribe
Login
0 Comments
Oldest
Newest
Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
IMAPORTANT LINKS
Subscribe to Updates
Subscribe and stay updated with the latest Yoga and Spiritual insightful commentary and in-depth analyses, delivered to your inbox.
© 2024 Ushakaal Gyan Foundation