भारत और नेपाल में श्री चित्रगुप्त अवतरण दिवस (12 अप्रैल 2025) पर अनुष्ठान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों का इतिहास बन गया। आधुनिक युग में संभवत: पहली बार श्री चित्रगुप्त भगवान कायस्थों ही नहीं, बल्कि अन्य जातियों के लिए भी सहज स्वीकार्य बनें और अनेक स्थानों पर सभी ने मिलकर व्यापक रूप से उनकी पूजा-अर्चना की। भारत-नेपाल में जिस उत्साह के साथ अवतरण दिवस मनाया गया, वह इस बात का जीवंत उदाहरण है कि नई पीढ़ी में श्री चित्रगुप्त भगवान को लेकर बनी भ्रांतियां दूर हो रही हैं। वजहें तो कई हो सकती हैं। पर, प्रमुख वजह श्री चित्रगुप्त भगवान के विस्मृत इतिहास और उससे मिलने वाले संदेशों का दस्तावेजीकरण माना जा रहा है
कायस्थ इनसाइक्लोपीडिया के रूप में जैसा दस्तावेजीकरण हुआ, उसके कारण समाज के सभी वर्गों में संदेश गया कि श्री चित्रगुप्त भगवान केवल एक जाति विशेष के कुलदेवता नहीं, बल्कि हमारे जीवन के आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, जो कर्म की जवाबदेही, न्याय की निष्पक्षता, ज्ञान की शक्ति और आत्म-जागरूकता का मार्ग दिखाते हैं। भारत-नेपाल के विभिन्न प्रदेशों में अनेक स्थानों पर भव्य पूजा, आरती, कथा, और अन्न दान जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। नेपाल के कायस्थ महासंघ ने तो इस मौके पर स्मारिका और कैलेंडर का प्रकाशन भी किया था, जिसमें श्री चित्रगुप्त भगवान की शास्त्र-सम्मत दैविक तस्वीर को स्थान दिया गया है।

शास्त्रों के अनुसार, श्री चित्रगुप्त भगवान की दो प्रकार की तस्वीरें प्रचलित हैं – दैविक और पारिवारिक। दैविक तस्वीर में उन्हें चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाया गया है, जो उनके अवतरण के समय का प्रतीक है। वहीं, पारिवारिक तस्वीर में वे अपनी दो पत्नियों और बारह पुत्रों के साथ दिखाए जाते हैं। श्री चित्रगुप्त भगवान से संबंधित विस्मृत इतिहास को संकलित करके सप्रमाण प्रस्तुत करने वाले उदय सहाय, जो भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे हैं, की पुस्तक “कायस्थ इनसाइक्लोपीडिया” का प्रकाशन होने के बाद ही श्री चित्रगुप्त भगवान को लेकर अनेक भ्रांतियां दूर हुईं और लोगों ने उनके व्यापक स्वरूप के बारे में जाना।
पुस्तक में प्रस्तुत वैदिक तथ्यों से लोगों ने जाना कि ब्रह्मा जी के पुत्र श्री चित्रगुप्त भगवान के दादा विष्णु भगवान हैं तो चाचा शिवजी। इसी तरह दुर्गा जी इष्ट देवी हैं तो सूर्यदेव इष्ट देव। परिणाम हुआ कि श्री चित्रगुप्त भगवान सभी को सहज स्वीकार्य होने लगे हैं। परिणाम स्वरूप श्री चित्रगुप्त भगवान की आराधना कायस्थों के अलावा अन्य जातियों के लोगों ने ठीक वैसे ही की, जैसे अन्य देवताओं की आराधना करते हैं।
अब समाज के अन्य वर्गों के लोगों को अब यह मान लेने में बाधा नहीं रही कि श्री चित्रगुप्त भगवान सृष्टि के कर्म-लेखाकार केवल जाति विशेष के लिए नहीं हैं, बल्कि हम जो सोचते हैं, बोलते हैं, और करते हैं, वह हमारे वर्तमान और भविष्य को आकार देने में उनकी ही भूमिका होती है। चित्रगुप्त भगवान की कलम हर प्राणी के पाप-पुण्य का हिसाब रखती है और कोई भी कर्म, चाहे वह कितना ही सूक्ष्म हो, उनकी दृष्टि से छिपा नहीं रहता। बल्कि कई लोगों में तो श्री चित्रगुप्त भगवान के आध्यात्मिक विश्लेषणों के आधार पर अपने विचारों और कार्यों के प्रति सजग रहने की समझ बनी है और वे इसे आध्यात्मिक विकास की पहली सीढ़ी मानने लगे हैं। तभी, शिव मंदिरों से लेकर देवी मंदिरों तक में श्री चित्रगुप्त भगवान की दैविक स्वरूप वाली मूर्तियां स्थापित की जाने लगी हैं। वरना, पहले श्री चित्रगुप्त भगवान की पारिवारिक छवि वाली प्रतिमाएं कायस्थ जाति के लोग अलग मंदिर बनवाकर स्थापित करते थे।
“कायस्थ इनसाइक्लोपीडिया” के प्रकाशन के बाद लोगों की बदली मानसिकता से साबित हुआ कि श्री चित्रगुप्त भगवान के विस्मृत इतिहास और संदेशों का दस्तावेजीकरण सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से कितना जरूरी था। इससे न केवल समृद्ध विरासत का संरक्षण हुआ, बल्कि आधुनिक समाज की चुनौतियों का सामना करने के लिए लोगों में प्रासंगिक और प्रेरणादायक संदेश भी गया। इस साल श्री चित्रगुप्त भगवान के अवतरण दिवस पर युवा जोश इसका प्रमाण है।