हम जानते हैं कि शरीर के ऊर्जा संस्थानों में असंतुलन होना योग के दृष्टिकोण से अस्वस्थ होने का मुख्य कारण होता है। कोई व्यक्ति कितना ही बुद्धिमान् या व्यवस्थित हो, यदि उसके ऊर्जा संस्थान सामान्य ढंग से क्रियाशील नहीं हैं, तो उसे व्याधिग्रस्त होना ही है। सूर्य नमस्कार योग में इतनी शक्ति है कि शारीरिक व मानसिक ऊर्जाओं में पुनर्संतुलन स्थापित हो जाता है। हाल ही छठ पूजा के दौरान दुनिया भर में करोड़ो लोगों ने श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्यदेव की आराधना की। आमतौर पर हम सबकी यही कामना होती है कि स्वजनों को लंबी उम्र और स्वस्थ काया मिले। इस लिहाज से सूर्योपासना और सूर्य नमस्कार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सूर्य मंत्रों के साथ इस साधना से आध्यात्मिक लाभ की भी प्राप्ति होती है। भारतीय वांग्मय से हमें ज्ञात हो चुका है कि वैदिक काल से की जा रही सूर्योपासना ही छठ पूजा औऱ शक्तिशाली सूर्य नमस्कार का आधार बनी थी।
बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती सभी उम्र के लोगों के लिए खासतौर से बच्चों के लिए सूर्य नमस्कार साधना पर बहुत जोर देते थे। वे कहते थे, सूर्य आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है और प्राचीन काल में इसकी दैनिक आधार पर पूजा की जाती थी। बाहरी और आंतरिक सूर्य की पूजा एक धार्मिक-सामाजिक अनुष्ठान था, जो मानव नियंत्रण से परे प्रकृति की उन शक्तियों को शांत करने का प्रयास करता था। प्रकारांतर से यह परंपरा आज भी कायम है। योग में सूर्य का प्रतिनिधित्व पिंगला या सूर्य नाड़ी द्वारा किया जाता है, जो प्राणिक नाड़ी है जो महत्वपूर्ण, जीवन देने वाली शक्ति को वहन करती है। सूर्य नमस्कार तीन तत्वों से बना है: रूप, ऊर्जा और लय। बारह आसन भौतिक मैट्रिक्स बनाते हैं, जिसके चारों ओर अभ्यास का रूप बुना जाता है। ये आसन प्राण उत्पन्न करते हैं। एक स्थिर, लयबद्ध क्रम में सूर्य नमस्कार का प्रदर्शन ब्रह्मांड की लय को दर्शाता है। जैसे, दिन के चौबीस घंटे, वर्ष के बारह राशि चक्र चरण और शरीर की बायोरिदम। तन-मन पर इस रूप और लय का अनुप्रयोग एक परिवर्तनकारी शक्ति उत्पन्न करता है।
इसे सूर्य नमस्कार पर हुए प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर भी समझा जा सकता है। जीवन संग्राम का सबसे बड़ा शस्त्र आत्मविश्वास है। जिसे अपने ऊपर, अपने संकल्प बल और पुरुषार्थ के ऊपर भरोसा है, वही सफलता के लिए अन्य साधनों को जुटा सकता है। केरल के कालीकट स्थित प्रोविडेंस महिला कॉलेज छात्रावास की 18 से 23 साल की ऐसी पचास छात्राओं पर सूर्य नमस्कार का प्रयोग किया गया, जिन्हें किसी तरह की कोई बड़ी बीमारी नहीं थी। खास बात यह कि एक ही छात्रावास में रहने वाली सभी छात्राओं की जीवनशैली एक जैसी थी। पंद्रह छात्राओं को योग करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इन्हें नियंत्रण समूह में रखा गया। शेष 35 छात्राओं को मिलाकर प्रायोगिक समूह बनाया गया। इन पर ही सूर्य नमस्कार के प्रभाव देखे गए। तीन महीनों के नियमित अभ्यास के बाद उन छात्राओं का आत्मविश्वास बढ़ चुका था। साथ ही मासिक धर्म संबंधी शिकायतों को प्रबंधित करने में भी मदद मिल गई थी। अमेरिका के सैन जोश स्टेट यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के वैज्ञानिक भावेश सुंरेंद्र मोदी ने छह एशियाई युवाओं पर शोध किया। यह जानने के लिए कि सूर्य नमस्कार हृदय रोगियों के लिए कितना कारगर है। इसलिए कि कोरोना महामारी के बाद युवा और बच्चे भी हृदयाघात के शिकार हो रहे हैं। डॉ मोदी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से कोर्डियोरेस्पिरेटरी फिटनेस को ठीक रखा जा सकता है। चेन्नई स्थित सत्यभाषा इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नालॉजी के एल प्रसन्ना वेंकटेश ने अपने एक सहयोगी के साथ शोध किया तो पाया कि सूर्य नमस्कार अंतःस्रावी तंत्र (इंडोक्राइन सिस्टम) को व्यवस्थित रखता है।
कोरोना महामारी और वायुमंडल में फैले प्रदूषण के कारण फेफड़े की बीमारी भी आम हो गई है। हर आयु वर्ग के लोग इस बीमारी से दो चार हो रहे हैं। चिकित्सा विज्ञानियों का मत है कि फेफड़ों की रचना खण्डों या उपखण्डों से हुई है। सामान्य श्वसन में शायद ही कोई सभी उपखण्डों का उपयोग करता हो। सामान्यतया फेफड़ों के केवल निम्न भाग ही उपयोग में आते हैं। ऊपरी हिस्से या तो कार्य करना बन्द कर देते हैं या उनमें उपयोग में लाई हुई वायु, कार्बन डाइ-ऑक्साइड तथा विषैली गैस जमा होती रहती हैं। ऐसा विशेषकर शहरवासियों तथा धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के फेफड़ों में पाया जाता है। ये विषैले पदार्थ फेफड़ों में वर्षों तक पड़े रह जाते हैं, जिससे श्वसन तथा अन्य शारीरिक संस्थानों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का मत है कि श्वसन संस्थान के लिए सूर्य नमस्कार कारगर है। वजह यह है कि सूर्य नमस्कार में प्रत्येक गति के साथ लयबद्ध गहन श्वसन प्रक्रिया स्वतः होती रहती है। इससे फेफड़ों में भरी हुई दूषित वायु पूर्णतः बाहर निकल जाती है और उनमें ताजी, स्वच्छ तथा ऑक्सीजन-युक्त वायु भर जाती है। विशेषकर ऐसा हस्तउत्तानासन की स्थिति में होता हैं, इसमें वक्ष भित्ति फैल जाती है। पादहस्तासन करते समय जब किंचित् बलपूर्वक श्वास छोड़ी जाती है, (ऐसा खुले मुँह से भी किया जा सकता है), तब यह श्वास शुद्धिकरण की शक्तिशाली विधि बन जाती है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से फेफड़ों की सभी कोशिकाएँ फैलती हैं, उद्दीप्त होती हैं और स्वच्छ हो जाती हैं। रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस कारण शरीर, मस्तिष्क के ऊत्तकों एवं कोशिकाओं की क्षमता तथा ऑक्सीकरण में वृद्धि होती है। श्वसन-व्याधियाँ दूर होती हैं तथा वायु मार्ग का अवांछित श्लेष्मा भी समाप्त होता है।
ऋषिकेश स्थित दिव्य जीवन संघ के संस्थापक और बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अनेक वृद्धों पर प्रयोग करके बताया कि किस तरह उगते सूरज की ओर मुख करके सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से सभी प्रकार के नेत्र दोष दूर होते हैं और बुढ़ापे में भी दृष्टि अच्छी रहती है। स्पष्ट है कि सूर्य नमस्कार ही एक ऐसी योगविधि है, जिसके अभ्यास में समय कम और लाभ कई मिल जाते हैं। यह तथ्य भी विज्ञानसम्मत है कि यदि सूर्य मंत्रों के साथ सूर्य नमस्कार किया जाए तो उसका असर द्विगुणित हो जाता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)