श्रीराम का अवतरण सूर्यवंश (इक्ष्वाकु वंश) में हुआ था, जो क्षत्रिय कुल माना जाता है। श्रीकृष्ण का अवतरण यदुवंश (चंद्रवंश) में हुआ था। हालांकि, उनका पालन-पोषण गोकुल में नंद और यशोदा के द्वारा एक ग्वाला (यादव) परिवार में हुआ, लेकिन उनकी वंशावली चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थी। पर, क्या हमने उन्हें किसी जातीय दायरे में रखने की कभी कोशिश की? नहीं। फिर श्री चित्तगुप्त या श्री चित्रगुप्त, जिन्हें ब्रह्मा जी के चित्त (मन) या काया (शरीर) से अवतरण और ब्रह्मा जी के आदेश से ही भूलोक यानी पृथ्वी पर विशेष उद्देश्य से प्रकटीकरण माना जाता है और जो पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले देवता के रूप में सर्वमान्य हैं, उन्हें जातीय दायरे में रखना कितना सही है?
जिस प्रकार जयपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य, जैसे महारानी पद्मिनी और उनकी बेटी दीया कुमारी अपने को श्रीराम का वंशज मानती हैं। यादव कुल के लोग अपने को श्रीकृष्ण का वंशज मानते हैं। उसी तरह कायस्थ भी अपने को श्रीचित्रगुप्त का वंशज मानते हैं। इसके प्रमाण हैं और इसमें गलत कुछ भी नहीं। पर, सच है कि हिंदू दर्शन में अवतारों और देवताओं को जाति या वर्ण से ऊपर माना जाता है। श्रीराम, श्रीकृष्ण और चित्रगुप्त का महत्व उनके कर्म, धर्म और मानवता के प्रति योगदान में है, न कि किसी जातीय पहचान में।

“कायस्थ : एक इनसाइक्लोपीडिया अनकही कहानियों का” नामक पुस्तक के कारण संभवत: पहली बार एक तरफ श्री चित्रगुप्त को लेकर चली आ रही कई मान्यताएं धराशायी हुई हैं तो दूसरी तरफ विस्मृत इतिहास के आलोक में नया दर्शन प्रस्तुत हुआ है। आध्यात्मिक सोच के साथ प्रस्तुत इस पुस्तक में पृथ्वी पर कर्म-व्यवस्था की स्थापना और न्याय व धर्म के संरक्षण के लिए अवतरित श्री चित्तगुप्त या श्रीचित्रगुप्त की आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मीमांसा है। इससे स्पष्टता आती है कि ब्रह्मलोक में श्री चित्रगुप्त का अवतरण और कालांतर में भूलोक में उनका प्रकटीकरण किन परिस्थितियों में और किस लिए हुआ था।
पुस्तक के लेखक श्री उदय सहाय हैं, जो भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे हैं और गौतम बुद्ध से लेकर कुंभ मेला तक को केंद्रीय विषय बनाकर आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। उनके दर्शन और उसके पक्ष में प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर कहना होगा कि श्री चित्रगुप्त भगवान का अवतरण और प्रकटीकरण दोनों ही एक विशिष्ट उद्देश्य से हुआ था, जो श्री राम और श्री कृष्ण के अवतारणों से भिन्न, परंतु सृष्टि के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। श्री चित्रगुप्त भगवान का अवतरण हमें याद दिलाता है कि हम अपने कर्मों के स्वामी हैं, और जीवन का हिसाब संतुलित रखना परम कर्तव्य है। उनकी कलम निष्पक्षता और उनका आशीर्वाद हमें नैतिकता और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह एक तरह से आत्म-निरीक्षण और सुधार का अवसर प्रदान करने जैसा है, ताकि हम अपने जीवन को संतुलित रखते हुए पुण्य का हकदार बना सकें। इस तरह कहा जा सकता है कि श्रीराम ने मर्यादा की स्थापना की और कृष्ण ने गीता के माध्यम से कर्मयोग का दर्शन प्रस्तुत किया। उसी तरह श्री चित्रगुप्त ने इन्हीं व्यवस्थाओं के नियमन की सूक्ष्म, लेकिन प्रभावी मार्गदर्शन किया।
श्रीराम और श्रीकृष्ण श्री विष्णु भगवान के अवतार माने जाते हैं। यानी विष्णु भगवान उनके निर्गुण स्वरूप हुए। परन्तु, श्री चित्रगुप्त के मामले में वैदिक साक्ष्य अलग है। उसके मुताबिक, देवलोक में श्री चित्रगुप्त भगवान का अवतरण भगवान ब्रह्मा की वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ। अवतरण के बाद श्री चित्रगुप्त भगवान ने ब्रह्मा जी से अपना परिचय पूछा तो उन्हें उत्तर मिला, “आपकी छवि बरसों से साधित मेरी तपस्या के दर्मियान गुप्त से मेरे चित्त में निर्मित होती रही, इसीलिए आपका नाम नाम चित्तगुप्त हुआ।“ श्री उदय सहाय ने जब अपने शोध से इस विस्मृत वैदिक साक्ष्य पर से पर्दा उठाया तो श्री चित्रगुप्त के अवतरण और प्रकटीकरण को लेकर सदियों से किए जा रहे घालमेल पर से पर्दा हटा और स्पष्टता आई। इस शोध के मुताबिक, श्री ब्रह्मा जी के ही निर्देश पर श्री चित्रगुप्त भूलोक में शिप्रा नदी के तट पर अवंति (उज्जैन) में प्रकट हुए और सृष्टि-चालन के विधि-विधान में पांडित्य प्राप्त करने के लिए निकटस्थ कायथा गाँव चले गए थे। यानी देवलोक में ब्रह्मा जी की काया से जिस चित्तगुप्त या चित्रगुप्त जी का अवतरण हुआ था, उन्हीं का सगुण स्वरूप श्री चित्रगुप्त हैं, जो शिप्रा नदी के तट पर प्रकट हुए थे।
अवतार लेने या दैवी इच्छा से प्रकट होने वाले देवताओं के बारे में अक्सर सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या उनके सगुण और निर्गुम स्वरूप में कोई भेद हैं? क्या निर्गुण ब्रह्म ही श्रीराम व श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए थे? क्या देवलोक में अवतरित निर्गुण श्रीचित्तगुप्त ही सगुण श्रीचित्रगुप्त के रूप में भूलोक में प्रकट हुए थे? आम आदमी की कौन कहे, पूर्व जन्म की कथा चित्त में आ गई तो माता पार्वती को ही श्रीराम के अवतार को लेकर संशय हो गया था कि त्रेतायुग में जन्में राम वहीं हैं, जिनकी आराधना शिव जी करते हैं? यानी जो निर्गुण थे, वही प्रकारांतर से सगुण हैं? शिवजी ने जो उत्तर दिया, उसकी रामायणी बड़ी सुंदर व्याख्या करते हैं। कहते हैं, जल निराकार है। परन्तु उसे किसी पात्र में संग्रह करके फ्रीज में रख दें तो बर्फ के रूप में आकार ले लेता है। यानी निराकार और साकार का तत्व एक ही रहा, केवल रूप बदल गया। आत्मज्ञानी संत कहते हैं कि हम सब चूंकि देहभाव से ऊपर उठ नहीं पाते, इसलिए निराकार से साक्षात्कार संभव नहीं हो पाता। तब मानवता के कल्याण के लिए ईश्वर को ही साकार रूप धारण करना पड़ता है।
वैदिक ग्रंथों में श्री चित्रगुप्त के जो कार्य बताए गए हैं, उसकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी अपने तरीके से करता है। अमेरिकी तंत्रिकाविज्ञानी डॉ. वीबेन्स ने मस्तिष्क में भरे हुए ग्रे मैटर का सूक्ष्म दर्शक यंत्रों की सहायता से खोज करने पर वहाँ के एक-एक परमाणु में अनेक रेखाएँ पाई थीं। तब उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ये रेखाएँ शारीरिक और मानसिक कार्यों को सूक्ष्म रूप से लिपिबद्ध करती हैं। श्रीराम शर्मा आचार्य कहते थे कि ग्रे मैटर के परमाणुओं में मिला रेखांकन ही अंतःचेतना का संस्कार है। कर्मों की रेखाएँ एक प्रकार के गुप्त चित्र ही हैं, इसलिए उन छोटे अंकनों में गुप्त रूप से, सूक्ष्म रूप से, बड़े-बड़े घटना-चित्र छिपे हुए होते हैं। इस क्रिया-प्रणाली को चित्रगुप्त मान लेने से प्राचीन आख्यान का समन्वय हो जाता है।
एक बात और। श्री चित्रगुप्त के धरती पर प्रकटीकरण का भी गहरा संदेश है। वह यह कि आध्यात्मिक और भौतिक जीवन एक-दूसरे के पूरक हैं। श्रीमद्भगवद् गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश देते हैं। इसका भी अभिप्राय यही है कि भौतिक कार्य और आध्यात्मिक चेतना का विकास साथ-साथ चल सकते हैं। राजा जनक एक समृद्ध राजा थे, फिर भी योगियों ने उन्हें “विदेह” (देह से परे) कहा, क्योंकि वे भौतिक वैभव में रहते हुए भी आत्मज्ञानी थे। आधुनिक युग में लाहिड़ी महाशय को ही ले लीजिए। वे एक गृहस्थ योगी थे, जिन्होंने नौकरी और परिवार के साथ क्रियायोग की साधना की और परम आध्यात्मिक ऊँचाइयों को छुआ। दो पत्नियों और बारह पुत्रों वाले श्री चित्रगुप्त को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
अनकही कहानियों की इनसाइक्लोपीडिया में सगुण और निर्गुण दोनो श्री चित्तगुप्त या श्री चित्रगुप्त से जुड़े ऐसे शोधपरक तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं, जो उनके केवल और केवल जातीय कुलदेवता होने की अवधारणा से बाहर निकाल कर सबके लिए न्याय के देवता के रूप में प्रतिष्ठापित करते हैं। इसका असर हुआ भी है। हाल के वर्षों में अनेक मंदिरों में बाकी देवताओं के साथ ही श्री चित्रगुप्त भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाने लगी है। इतना ही नहीं, अवतरण दिवस और प्रकोटत्सव में भेद स्पष्ट होने के कारण दोनों दिवसों पर पूजनोत्सव स्वतंत्र रूप से मनाया जाने लगा है। आइए, इस चैत्र पूर्णिमा पर उनके अवतरण दिवस को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हुए अपने कर्मों को शुद्ध करें, और सृष्टि के इस अनूठे देवता को नमन करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व अध्यात्म विज्ञान विश्लेषक हैं।)
जय चित्रगुप्त भगवान
जय चित्रांश