होलिका दहन और होली की पौराणिक कथाएं तो हम सब जानते हैं। पर, आध्यात्मिक नजरिए से होलिका दहन आंतरिक अज्ञानता को जलाने का प्रतीक है। यानी बुरी आदतों का परित्याग और सकारात्मक बदलावों की ओर अग्रसर होना। पूर्व के कुछ काल-खंडों में ऐसी परंपरा रही है कि लोग होलिका दहन को क्रोध, ईर्ष्या, चिंता, आलस्य, व्यसन आदि को होलिका की आग में जलाने का संकल्प लेते थे। आत्म-शुद्धि के लिए इसे जरूरी माना जाता था। योगशास्त्र में ऐसे परिणाम लेने के लिए अलग उपाय बतलाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने कोई उपाय तो नहीं बताए। परन्तु, साबित कर दिखाया कि ऐसे परिणाम किन कारणों से मिलते हैं।
योगशास्त्र में शुद्धिकरण की क्रिया को “शोधन” कहा जाता है। शोधन विभिन्न प्रथाओं और तकनीकों के माध्यम से किया जाता है, जिससे शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्तर पर शुद्धि आती है। इनका उल्लेख पतंजलि के योग सूत्र, हठ योग ग्रंथों (जैसे हठ योग प्रदीपिका, घेरंड संहिता), और तांत्रिक परंपराओं में मिलता है। फ्रायड और ब्रेयर के अनुसार, दमित भावनाएँ बाहर न निकलने पर मानसिक बीमारियाँ (जैसे चिंता, अवसाद) पैदा करती हैं। बीसवीं सदी के महान संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा कि चित्त शुद्धि के यौगिक उपायों से चेतना जागृत होती है तो दमित भावनाओं से निजात मिलती है। चिकित्सा विज्ञानियों ने कहा कि भावनात्मक विकार निकल जाते हैं तो मस्तिष्क का लिम्बिक सिस्टम रीसेट होता है। इससे तनाव कम होता है और सकारात्मक भावनाएँ बढ़ती हैं।
आइए, वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर इन बातों को समझने की कोशिश करते हैं। रोज़मर्रा के जीवन में, सामाजिक नियमों, अपेक्षाओं, या परिस्थितियों के कारण लोग अपनी भावनाओं को दबाते हैं। ये दमित भावनाएँ (जैसे गुस्सा, दुख) अवचेतन में जमा हो जाती हैं। न्यूरोलॉजिकल आधार पर इसकी व्याख्या कुछ इस तरह की जाती है – मस्तिष्क का एमिग्डाला, जो भावनाओं का केंद्र है, इन दमित भावनाओं को संग्रहित करता है। इससे कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर बढ़ता है, जिससे तनाव और चिंता उत्पन्न होती है।
जब सामाजिक प्रथाओं या यौगिक क्रियाओं की बदौलत एमिग्डाला सक्रिय होता है तो दमित भावनाएँ बाहर निकलती हैं। दूसरी तरफ प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, ताकि यह विनाशकारी न हो। जब दमित भावनाएं निकल जाती हैं तो मन हल्का होता है। यह एक “रिलीज वाल्व” की तरह काम करता है, जो संचित तनाव को मुक्त करता है। इस दौरान मस्तिष्क में क्या हो रहा होता है? डोपामाइन और सेरोटोनिन (खुशी के हार्मोन) का स्राव बढ़ता है, जबकि कोर्टिसोल कम होता है। पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय होकर शांति लाता है। भावनात्मक बोझ हटने से मन शुद्ध और संतुलित होता है, जिससे आत्म-जागरूकता और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है। न्यूरोप्लास्टिसिटी के कारण मस्तिष्क नए, सकारात्मक पैटर्न बनाता है। लिम्बिक सिस्टम और कॉर्टेक्स के बीच संतुलन बेहतर होता है। इसलिए होली के बाद सफेद वस्त्र पहनने का रिवाज है, जो मानसिक शुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है।