देश के योग संस्थान और योगी कोरोना महामारी के विरूद्ध योद्धा बनकर मानवता की सेवा में जुटे हुए हैं। वे समयानुकूल योग और आयुर्वेद की विधियां और अपने संदेश ऑनलाइन माध्यमों से जनता तक पहुंचा रहे हैं। इनमें ऐसे योगी और योग संस्थान भी शामिल हैं, जो आमतौर पर ऑनलाइन माध्यमों से दूर ही रहते आए हैं। जनमानस पर इसका व्यापक असर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात की अहमियत समझी है और “मन की बात” कार्यक्रम में योग व आयुर्वेद की महत्ता बताकर न केवल योगियों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि योग की तरह ही आयुर्वेद को भी विश्वसनीय तरीके से सर्वमान्य बनाने के अपने संकल्प से अवगत कराया।
स्वामी रामदेव ने तो कोरोना महामारी शुरू होने के साथ ही योग के साथ ही कुछ ऐसी आयुर्वेदिक दवाएं बतलाई थी, जिन्हें मोटे तौर पर सभी ने स्वीकारा था। वे अपनी बातें रखने के लिए टीवी मीडिया और सोशल मीडिया पर लगातार बने हुए हैं। पर स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के कुलपति पद्मश्री डॉ एचआर नागेंद्र, आयुष मंत्रालय के अधीन स्वायत्त संस्थान मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के निदेशक डॉ ईश्वर वी वासवारड्डी, कैवल्यधाम लोनावाला के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुबोध तिवारी, परमार्थ निकेतन के प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर, ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरू जग्गी वासुदेव, द योगा इंस्टीयूट की निदेशक हंसाजी जे जयेंद्र, भारत योग मोक्षायतन के प्रमुख पद्मश्री भारत भूषण, आदि भी सोशल मीडिया के जरिए जनता को योग और आयुर्वेद की शक्ति से मजबूती प्रदान करने के लिए बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। बिहार योग विद्यालय की ओर से संकटकाल शारीरिक रूप से स्वस्थ्य और मानसिक शांति के लिए कई उपाय बतलाए गए हैं।
यौगिक उपायों के मामले में प्राय: सभी योगी षट्कर्म की दो क्रियाएं जल नेति और कुंजल के साथ ही प्राणायाम की महत्ता बतलाते हुए कपालभाति, भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, उज्जायी आदि प्राणायाम विधियों की साधना करने की सलाह देते रहे हैं। ऐसा इसलिए कि इस वायरस से सबसे पहले फेफड़ा संक्रमित होता और फिर कष्टों की अनंत यात्रा शुरू होती है। वर्षों-वर्षों के अनुभवों और वैज्ञानिक शोधों के नतीजों से ज्ञात है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर फेफड़े को संक्रमित होने से रोकने में प्राणायाम साधनाओं की बड़ी भूमिका होती है। अब शिद्दत से महसूस किया गया है कि केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक रखने से ही बात बनने वाली नहीं है। भारतीय चिकित्सा परिषद के मुताबिक बीते महीने की तुलना में इस महीने अवसादग्रस्त लोगों की संख्या बीस फीसदी बढ़ गई है। इसलिए भारत के योगी मानसिक एकाग्रता को ध्यान में रखकर समन्वित योग पर जोर दे रहे है।
मुंबई के एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने द योगा इस्टीच्यूट की निदेशक डॉ हंसाजी जे योगेंद्र की सलाह है कि मानसिक तनावों से मुक्ति के लिए जैन धर्म में बेहद प्रचलित अनित्य भावना दर्शन पर आधारित परावर्तन (रिफ्लेक्शन) तकनीक की साधना बेहद लाभकारी है। उन्होंने यूट्यूब पर इस साधना की विधि बताते हुए कहा है कि इस योग साधाना से न केवल अवसाद से मुक्ति मिलेगी, बल्कि एकाग्रता और यादाश्त की शक्ति में इजाफा हो जाएगा। इस्टीच्यूट के संस्थापक और परमहंस माधवदास के शिष्य योगेंद्र जी ने अनित्य भावना को शोध कर ध्यान की यह तकनीक विकसित की थी। अनित्य दर्शन को हर्ष-विशाद और शोक-मोह के फंदे से निकालने का प्रभावकारी दर्शन माना जाता है।
महाराष्ट्र में ही कैवल्यधाम योग का वह संस्थान है, जहां नौ दशक पहले योग और विज्ञान का मिलन हुआ था। इसकी स्थापना स्वामी कुवल्यानंद ने की थी, जिन्हें हठ योग के वैज्ञानिक अध्ययन का प्रणेता माना जाता है। मुश्किल भरे समय में यह संस्थान भी लोगों को सोशल मीडिया के जरिए योग शिक्षा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वरीय योगाचार्य संदीप वानखेड़े ने अपने संस्थान के यूट्यूब चैनल पर बताया कि कपालभाति किस तरह एक टिकट में दो खेल की तरह है। उनके मुताबिक इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता तो दुरूस्त रहती ही हैं, मन का प्रबंधन भी हो जाता है, जिसकी आज के समय में जरूरत है। वे इस योग को घेरंड संहिता और हठ प्रदीपिका में बतलाई गई विधियों के मुताबिक करने की सलाह देते हैं।
कुछ ऐसे भी संस्थान हैं जो सोशल मीडिया के जरिए जागरूक बनाने के साथ ही आज की जरूरतों के लिहाज से न्यूनतम दरों पर योग प्रशिक्षण दे रहे हैं। आध्यात्मिक गुरू और आर्ट ऑफ लिविंग से संस्थापक श्रीश्री रविशंकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से लेकर मानसिक शांति तक के लिए सुदर्शन क्रिया को बेहद प्रभावकारी मानते हैं। श्रीश्री सोशल मीडिया के माध्यम से ध्यान साधना कराते हैं और मौजूदा संकट से उबरने के लिए अन्य यौगिक उपाय भी बताते हैं। परमहंस योगानंद की शिक्षा को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए बनी संस्था आनंद संघ ध्यानयोग की ऑनलाइन शिक्षा मात्र पांच सौ रूपए में दे रहा है। संस्थान की ओर से कहा गया है कि यह पाठ्यक्रम गहरी नियमित साधना स्थापित करने और विकसित करने में मदद करेगा और आंतरिक शांति, आनन्द और दिव्य प्रेम को जागृत करेगा।
ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरू जग्गी वासुदेव सोशल मीडिया के जरिए लोगों का मनोबल बनाए रखने और रोगों के बचाव के लिए अपने को तैयार करने हेतु मार्ग-दर्शन करते रहते हैं। वे बताते हैं कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अनेक क्रियाएं हैं। पर सिंह क्रिया भी प्रभावशाली है। वही मन के प्रबंधन के लिए इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम बड़े महत्व का है। इस प्रोग्राम को कोरोना वारियर्स यथा चिकित्सकों और पुलिसकर्मियों के लिए बिल्कुल मुफ्त कर दिया है। अपने बोध को गहरा बनाने और भीतरी रूपांतरण के लिए प्रस्तुत इस प्रोग्राम के तहत शांभवी महामुद्रा सिखाई जाती है। सद्गुरू के मुताबिक जिन लोगों पर यह क्रिया की गई, उनके अध्ययन से पता चला कि 92 फीसदी लोगों का भावनात्मक संतुलन सुधर गया था, 94 फीसदी लोगों ने आंतरिक शांति का अनुभव किया और 98 फीसदी लोगों ने मानसिक स्पष्टता का अनुभव किया।
योग में प्रार्थना का विशिष्ट स्थान है। इसलिए एक चैनल की ओर से विश्व प्रार्थना का आयोजन किया गया तो उसमें भारत के तमाम जाने-माने योगी शामिल हुए। प्रार्थना करके शांति और खुशहाली का आवाह्न किया। सभी योगी बार-बार लगातार जनता से आग्रह कर रहे हैं कि वे लॉकडाउन के नियमों का पालन करें। संकट की घड़ी में योग विद्या की इन हस्तियों के अलावा हजारों छोटे-बड़े योगाचार्य सोशल मीडिया या हैगआउट्स जैसे ऐप्प का इस्तेमाल करके बिल्कुल मुफ्त योग प्रशिक्षण दे रहे हैं। रामकृष्ण मिशन से लेकर प्राय: सभी योग संस्थान आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं।
इतिहास गवाह है कि देश पर जब-जब संकट आया, सन्यासी और योगी राष्ट्रहित मे आगे आते रहे हैं। वे फिर अपनी गौरवशाली परंपरा का निर्वहन करते हुए कोरोना वारियर्स बनकर खड़े हैं। योग के विभिन्न आयामों के जरिए जनमानस में शक्ति और भक्ति का संगम बना रहे हैं। ताकि हर आयुवर्ग के लोग शक्तिहीन और अवसादग्रस्त हुए बिना अंधकार से प्रकाश की ओर की यात्रा कर सकें।
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