अपने देश में योग की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है। अब वह दिन लदने को है, जब आत्म-ज्ञान दिलाने वाली यह महान विद्या कमर दर्द, वजन घटाने आदि तक सीमित होती जा रही थी और पश्चिम के विकसित देश हमारे परंपरागत योग को विज्ञान की कसौटी पर कसने के बाद उसे ऐसे प्रस्तुत करने लगे थे मानों उन्होंने कुछ नया आविष्कार कर दिया हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योग में विशेष दिलचस्पी की वजह से हालात बदले हैं। वैसे तो बिहार योग विद्यालय और कैवल्यधाम जैसे कई योग संस्थान वर्षों से परंपरागत की मशाल जलाए हुए हैं। पर उन्हें अपने ही देश में सरकारी स्तर पर स्वीकार्यता कम ही मिली। श्री मोदी ने परंपरागत योग के संस्थानों और उनके प्रमुखों को न केवल सम्मानित करके उनके योगदान को स्वीकार किया, बल्कि योग शिक्षा और अनुसंधानों को गति देने के लिए कई काम किए हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करवाने में अहम् भूमिका निभाने के बाद आयुष मंत्रालय बनाया। इसमें योग और प्राकृतिक चिकित्सा के लिए अलग विभाग है। ऐसी व्यवस्था की कि अपनी हाल पर छोड़ दिए गए देश के परंपरागत व सरकारी योग के संस्थानों को शोध के लिए प्रोत्साहन मिले। नतीजतन, मानव शरीर पर योग के प्रभावों को जानने के लिए विभिन्न स्तरों पर शोध-कार्य किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ योग शिक्षा को स्तरीय बनाए रखने के लिए कई उपाय किए गए हैं।
योग के प्रति नरेंद्र मोदी के विशेष अनुराग का ही नतीजा है कि वे कम समय बेहतर स्वास्थ्य के प्रति प्रेरित करने के मामले में देशभर में लगातार दूसरी बार अग्रणी रहे। इसके बाद इस श्रेणी में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार और योग गुरु बाबा रामदेव का नाम आता है। भारत की प्रमुख निवारक स्वास्थ्य देखभाल परितंत्र जीओक्यूआईआई ने हाल ही इस सबंध में अपना अध्ययन पत्र जारी किया था। जीओक्यूआईआई देश की सबसे प्रभावशाली हेल्थकेयर हस्तियों की पहचान करने के लिए इस तरह का अध्ययन करता है।
परंपरागत योग में आम आदमी की अभिरूचि हो, इसके लिए आयुष मंत्रालय प्रचार-प्रसार पर दिल खोलकर खर्च कर रहा है। आयुष मंत्रालय के संयुक्त सचिव पीएन रंजीत कुमार के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में प्रचार-प्रसार पर 42 करोड़ रूपए खर्च किए जाने हैं। भारत सरकार के सूचना एवं तकनीकी मंत्रालय के साथ मिलकर 12,500 आयुष हेल्थ एवं वेलनेस सेंटर खोले जाने हैं। हालांकि मंत्रालय अपने को देश में योग गतिविधियों को प्रभावशाली बनाने के लिए समन्वयक या मददकर्ता तक ही रखना चाहता है।
शिक्षण संस्थानों में योग को अनिवार्य बनाने की केंद्र सरकार की घोषणा के बाद इन संस्थानों के मूल्यांकन में राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए फ्रेमवर्क तैयार किया जा रहा है। विभिन्न प्रकार की कसरतों को योग बताकर बीमारियों से मुक्ति दिलाने का दावा करने वाले झोलाछाप योगाचार्यों की वजह से वास्तविक योग विद्या में लोगों का भरोसा कम हुआ है। दूसरी तरफ इन योगाचार्यों की अज्ञानता से अनेक मरीजों की जान पर बन आई। यदि राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद से सत्यापित संस्थानों के योगाचार्यों की तादाद बढ़ेगी तो निश्चित रूप से तस्वीर बदलेगी।
विभिन्न बीमारियों पर योग के प्रभावों को जानने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और आयुष मंत्रालय के अधीन वाले संस्थानों के अलावा विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने भी कदम बढाया है। इस मंत्रालय ने योग के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिए सत्यम (साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ योगा एंड मेडिटेशन) नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अंतर्गत योग और ध्यान पर वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे शोधार्थियों को उनके काम के लिए तीन साल तक वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है। आयुष मंत्रालय के अस्पतालों में जैनेटिक लैबोरेटरी या मॉलीक्यूलर बायोलॉजी लैबोरेटरी नहीं होतीं, जबकि विज्ञान और तकनीकी विभाग के पास योग से जुड़े अनुसंधानों के लिए ज्यादा संसाधन हैं। इसलिए माना जा रहा है कि योग विज्ञान के क्षेत्र में सत्यम कार्यक्रम की महती भूमिका होगी।
मस्तिष्क में हिप्पोकैंपस नाम के क्षेत्र की गतिशीलता उम्र के साथ घटती जाती है। पर बैंगलुरू स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निम्हांस) के मनोवैज्ञानिकों के अनुसंधान से पता चला कि योग करने वालों में छह माह के दौरान हिप्पोकैंपस के भीतर ग्रे मैटर बढ़ जाता है। ग्रे मैटर बढ़ने का मतलब होता है कि मस्तिष्क की क्रियाशीलता पहले की तुलना में बढ़ जाती है। डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को भी योग के माध्यम से इसी तरह फायदा होता है। इस अनुसंधान को विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने अहमियत दी है और सूत्रों की मानें तो अनुसंधान को व्यापकता प्रदान करने की कोशिश की जा रही है।
आयुष मंत्रालय के अधीन वाले सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन योग व नेचुरोपैथी को ज्यादा क्रियाशील बनाया गया है। मौजूदा समय में इस स्वायत्त संगठन के अधीन योग से संबंधित 32 विषयों पर अनुसंधान किया जा रहा है। हृदय रोगियों पर योग के प्रभावों को लेकर किए गए अनुसंधान के परिणामों वाली रिपोर्ट बीते साल जारी की गई थी। उसके पहले सन् 2017 में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों पर योग के प्रभावों का अध्ययन किया गया था। दोनों ही अनुसंधानों से उन बीमारियों में योग के असरदार होने का पता चला था।
भारत सरकार की ओर से परंपरागत योग के संस्थानों जैसे, बिहार योग विद्यालय, कैवल्यधाम आदि को योग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। ये दोनों ही संस्थान कई दशकों से दुनिया भर के अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर योग पर विभिन्न प्रकार के अनुसंधान करते रहे हैं। इन अनुसंधानों के आधार पर दावा किया गया कि कई बीमारियों का शर्तिया इलाज योग से संभव है। इधर, योग गुरु बाबा रामदेव ने धोषणा कर रखी है कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड देश में योग अनुसंधान पर 10 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगा।
कहा जा सकता है कि अपने देश में परंपरागत योग के दिन फिर गए हैं। सद्गुरू ने ठीक ही कहा है, “भारत की प्राचीन परंपरा से पूरा विश्व लाभ ले रहा है। इसलिए योग दुनिया को दिया भारत का एक बेहतरीन गिफ्ट है।“ अब भारत खुद भी अपनी इस अमूल्य विरासत का भरपूर लाभ उठाने के लिए तत्पर है।