जी हां, आपने सही पढ़ा। योग की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रकाश स्तंभ है मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान। अनेक सरकारी संस्थानों की वर्षों-वर्षों जैसी दशा बनी रहती है, उसके आधार पर इस संस्थान को लेकर भी कुछ लोगों में गलत धारणा बनी हो सकती हैं। पर, हकीकत इसके उलट है। इस संस्थान की स्थापना योग के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के मकसद से की गई थी। इस मकसद में कितनी कामयाबी मिली, इसकी समीक्षा हो तो बेहतरी की संभावना की आशा रखते हुए कहना होगा कि दिल्ली का यह महत्वपूर्ण संस्थान योग विज्ञान व कला को विकसित करने, उसे बढ़ावा देने और उसका लाभ जनमानस को दिलाने का काम सफलतापूर्वक कर रहा है।
इस संस्थान के बहुआयामी कार्यों और उससे होने वाले लाभों की चर्चा करने से पहले कुछ उदाहरणों के जरिए जानिए कि आम लोगों का जीवन किस तरह रुपांतरित हो रहा है। भारत सरकार के वरीय अधिकारी रहे राकेश शर्मा पिता के निधन से आई रिक्तता से इस कदर विचलित हुए कि अवसादग्रस्त हो गए। इस बीच सड़क दुर्घटना के शिकार हुए तो अस्थिरोग दर्द देने लगा। एंग्जायटी का इलाज तो पहले से चल ही रहा था। अब अस्थिरोग का इलाज भी शुरु हुआ। पर मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के बारे में जानकारी तो थी। पर, मन में संशय भी था कि बड़े-बड़े चिकित्सकों से जो समाधान नहीं मिल पाया, वह योग से कैसे संभव होगा? लेकिन कहते हैं न कि हारे को हरिनाम। सो, श्री शर्मा योग संस्थान गए तो वहां उनकी मुलाकात योग चिकित्सक विनय भारती से हुई। समस्या बताई तो श्री भारती ने इतना ही कहा कि योग विद्या पर भरोसा रखिए। निर्देशानुसार योगाभ्यास कीजिए। श्री शर्मा की माने तो चमत्कार ऐसा हुआ, जिसकी उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी। अब तो योग उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है।
अर्चना सोनी दिल्ली में मेकअप आर्टिस्ट हैं। अस्थिरोग से इस कदर पीड़ित हुईं कि सहारा लिए बिना उठना-बैठना मुश्किल हो गया था। गर्दन और हाथ का दर्द भी बेहद परेशान करता था। लंबे समय तक अर्थराइटिस का इलाज होता रहा। बात न बनी तो मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान की ओर रुख किया। वहां योग चिकित्सक ने षट्कर्मों में मुख्यत: नौली, सूर्य नमस्कार, प्राणायाम की तीन विधियों जैसे, नाड़ीशोधन, कपालभाति, अग्निसार और ध्यान का अभ्यास कराया। कुछ महीनों के योगाभ्यास के बाद ही असर दिखने लगा। अब स्वस्थ हैं और नियमित रुप से योगाभ्यास करती हैं। विवेक कुमार दिल्ली में द यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन (वाईएमसीए) के अधिकारी हैं। किडनी और डायबिटीज की बीमारी से पहले ही पीड़ित थे। बाद में उच्च रक्तचाप और मोटापे के कारण जीवन कष्टकर हो गया था। बात-बात में गुस्सा आम बात हो गई थी। योग चिकित्सक विनय भारती की सलाह पर आहार में बदलाव किया और आसन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करने लगे। नतीजा हुआ कि कुछ महीनों में वजन 11 किलोग्राम कम गया और रक्तचाप व डायबिटीज नियंत्रण में आ गया। मन को शांति मिली। आसनों में मुख्यत: सूर्य नमस्कार अब उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है। इस तरह योग से रोग-मुक्त होने वालों की फेहरिस्त लंबी है।
हाल के वर्षों में अनेक सरकारी संस्थानों की तस्वीर बदली है। पर, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान महज एक सरकारी संस्थान भर नहीं है। इसकी बुनियाद में एक ऐसे संत की सूक्ष्म ऊर्जा समाहित है, जो इसके आभामंडल को दूसरों से अलग करती है। दरअसल, बहुचर्चित योगी और महर्षि कार्तिकेय के शिष्य धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने वृहत्तर उद्देश्य से जिस विश्वायत योगाश्रम की बुनियाद रखी थी, उसी पर मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान का महल खड़ा है। धीरेंद्र ब्रह्मचारी पहुंचे हुए हठयोगी थे। तंत्र की शक्तियों से भी समान रूप से वाकिफ थे। तभी हठयोग और तंत्र में परस्पर संबंध बतलाते हुए तदनुरूप योगाभ्यास भी कराते थे। उन अभ्यासों से किसी न किसी दौर में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, राजीव गांधी, उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसी शख्सियतों के अलावा लाखों लोग लाभान्वित हुए थे।
मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान की आधारशिला रखने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भलिभांति जानते थे कि इसकी बुनियाद में योगी की सूक्ष्म ऊर्जा होने के कारण भविष्य में इस संस्थान की चमक अलग ही रहने वाली है। इस बात को एक रोचक प्रसंग के जरिए समझिए। इस संस्थान की आधारशिला रखने के लिए दिल्ली के विज्ञान भवन में कार्यक्रम था। चर्चित योग गुरू धीरेंद्र ब्रह्मचारी द्वारा स्थापित केंद्रीय योग अनुसंधान संस्थान व विश्वायतन योगाश्रम के एकीकरण के बाद वृहत्तर उद्देश्यों से नई शुरूआत होनी थी। पर एक वक्ता के मुंह से निकले एक वाक्य से समन्वित योग और समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा की बात चर्चा के केंद्र में आ गई थी।
हुआ यूं कि स्वागत भाषण में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने कह दिया कि योग कीजिए, सफेद बाल काले हो जाएंगे। उस जमाने में योग का विषय केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन होता था। इसलिए संभवत: मजाकिया लहजे में कही गई यह बात भी श्री वाजपेयी को गंवारा न थी। उन्होंने अपने भाषण में योग का असल मकसद बताते हुए कहा था कि यदि बाल ही काला करना है तो योग की क्या जरूत? बाजार में बहुत सारे हेयर कलर मिलते हैं। असल मकसद परंपरागत योग का संरक्षण, संवर्द्धन और प्रचार होना चाहिए। अच्छी बात है कि आंधियों के कितने ही थपेड़े खाने के बाद भी एक योगी की सूक्ष्म ऊर्जा की की शक्ति से यह संस्थान चिन्ह्त मार्ग पर डटा रहा।
अब तो इस संस्थान का फलक दिनों दिन व्यापक होता जा रहा है। यह संस्थान योग विधियों पर वैज्ञानिक अनुसंधान को महत्व देता है तो योग शिक्षा के मानकीकरण में महती भूमिका निभाता है। एक तरफ योग में उच्चतर शिक्षा तक का व्यापक प्रबंध है तो दूसरी तरफ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से आम लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा उठाने के लिए बहुत कुछ है। कह सकते हैं कि यह संस्थान समग्र स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्राचीन योग परंपराओं पर आधारित योग दर्शन और प्रथाओं की गहन समझ को बढ़ावा देने की दिशा में महती भूमिका निभा रहा है।
(लेखक उषाकाल के संपादक व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)