आध्यात्मिक यात्रा में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को शत्रु माना गया है और इनसे मुक्त हुए बिना पूर्णता प्राप्त होना मुश्किल ही होता है। पर, हिमालय के योगी, योगियों के योगी महर्षि महेश योगी मोहग्रस्त हो गए थे। ज्योतिर्मठ में शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जैसे ज्ञानी संत का प्रिय शिष्य मोहग्रस्त हो जाए, तो सबका चौंक जाना लाजिमी था। त्वरित धारणा बनी कि महर्षि योगी की आध्यात्मिक साधना में कुछ कमी रह गई होगी। हालांकि शास्त्रों में महान ऋषियों के क्रोधित होने, मोहग्रस्त होने के प्रसंग भरे पड़े मिलते हैं और अध्यात्म की कसौटी पर उन परिणामों का अर्थ निकालना सबके लिए संभव नहीं होता। इसलिए महर्षि योगी के मोह का भी सामान्य अर्थ ही निकाला गया था।
हुआ यह कि जैसे ही स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने भौतिक शरीर त्यागा, महर्षि योगी मानसिक तौर पर एक अलग दुनिया में चले गए और गंगा जी में छलांग लगा दी। इसके तुरंत बाद ऐसा लगा मानो स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती की सूक्ष्म ऊर्जा सक्रिय हो गई। नतीजा हुआ कि गंगा मइया ने उन्हें स्वीकार नहीं किया, बल्कि उद्धार कर दिया। वे गंगा नदी से निकाल लिए गए। पर, अब बदले-बदले से थे। वैसे ही जैसे आग में तपा हुआ सोना और भी निखर जाता है। उनमें शंकराचार्य बनने के तमाम गुण पहले से मौजूद थे। परन्तु, स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती नहीं चाहते थे कि वे शंकराचार्य बनें। वे चाहते थे कि उनका यह प्रतिभाशाली शिष्य दुनिया भर में विज्ञान के आलोक में योग का प्रचार करे। शंकराचार्य बना देने पर उनका यह मिशन पूरा होना संभव नहीं था। इसलिए कि शंकराचार्यों के लिए समुद्र लंघन वर्जित है।
बचपन से ही विज्ञान के मेघावी छात्र रहे महर्षि महेश योगी जब गंगा जी से निकाले गए तो उन्हें भविष्य की योजनाओं की स्पष्ट दृष्टि मिल चुकी थी। गुरु का आदेश स्मरण हो आया। उच्चतर साधना के लिए उत्तरकाशी चले गए। गहन ध्यान साधना के दौरान कुछ अनुभूतियां प्राप्त हुईं। उसे ही उन्होंने भावातीत ध्यान यानी ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन (टीएम) कहा था। इस योग विधि के परीक्षण का समय भी जल्दी ही आ गया। केरल के प्रसिद्ध वैरिस्टर एएन मेनन और उनकी पत्नी ने महर्षि जी से दीक्षा ली तो महर्षि जी ने इसी योग विधि का प्रशिक्षण दिया था। भावातीत ध्यान से इस दंपति को मानो नया जीवन मिल गया था।
भावातीत ध्यान की सफलता से उत्साहित महर्षि योगी सन् 1960 में समुद्र लंघन करते हुए चल पड़े पश्चिम की ओर। पश्चिमी देशों के युवाओं को नशीली दवाओं के कुप्रभाव के कारण मानसिक तौर पर विक्षिप्त पाया। महर्षि जी जानते थे कि योग की शक्ति से इस समस्या का हल निकल जाएगा। पर, पश्चिमी दुनिया में भारतीय ज्ञान परंपरा की स्वीकृति नहीं थी। फिर उन्हें गुरु की बात याद आई कि विज्ञान के आलोक में यौगिक शिक्षाओं का प्रचार करना है। लिहाजा उन्होंने अमेरिका की प्रयोगशालाओं में ही अपने भावातीत ध्यान या ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन तकनीक के परिणामों पर कई-कई शोध किए। विज्ञान की कसौटी पर साबित किया कि यह योग विधि मानसिक पीड़ाओं से मुक्ति दिलाने में सक्षम है।
नतीजा हुआ कि यह ध्यान का यह प्रभावशाली तकनीक देखते-देखते विश्वव्यापी आध्यात्मिक पुनरूत्थान आंदोलन का प्रमुख औजार बन गया। नशे की गिरफ्त में फंसे युवाओं में मानसिक शांति और आनंदमय जीवन के दीप जलने लगे। महर्षि योगी के ब्रह्मलीन हुए एक युग बीत जाने के बावजूद भावातीत ध्यान की लोकप्रियता बरकरार है। कोई 126 देशों में हजारो प्रशिक्षण केंद्र खुले हुए हैं। इन देशों में 44 यूरोपीय देश, 29 अमेरिकी देश, 34 मध्य पूर्व के देश और 19 एशियाई देश शामिल हैं। शारीरिक और मानसिक अवस्थाओ को ध्यान में रखते हुए भावातीत ध्यान के प्रभावों पर अब तक कोई तीन दर्जन से ज्यादा देशों की ढ़ाई सौ प्रयोगशालाओं में सात सौ से ज्यादा अनुसंधान किए जा चुके हैं। कमाल यह कि इन अनुसंधानों से इस ध्यान विधि की महत्ता बढ़ती ही गई।
कोविड-19 के दुष्प्रभावों से दो-चार होते लोगों के लिए भी इस परीक्षित ध्यान विधि को कारगर माना जा रहा है। हृदय रोगियों पर भावातीत ध्यान के प्रभावों पर अमेरिका की तीन प्रयोगशालाओं में परीक्षण किया गया था। उनके नतीजे साइंस डायरेक्ट मैगजिन के अक्तूबर 2020 वाले अंक में विस्तार से प्रकाशित किए थे। उन परीक्षणों साबित हुआ कि भावातीत ध्यान हृदय रोग से बचाव में मददगार है। यह साधना अधितम बीस मिनटों की होती है और इसे दिन में दो बार करने की सलाह दी जाती है। भावातीत ध्यान मंत्रयोग और कर्मयोग के मिश्रण से तैयार ऐसी ध्यान विधि है, जो साधकों को कर्म से नाता रखते हुए भी मन के पार ले जाने में सक्षम है।
ऋग्वेद की उद्घोषणा है कि ज्ञान चेतना में निहित है और योग विज्ञान कहता है कि चेतना बहुआयामी है। यानी हमारा ज्ञान का स्तर हमारी चेतना की गुणवत्ता पर निर्भर है। हम किसी चीज को किस रूप में देखते हैं, यह हमारी चेतना की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। तुलसीदास ने भी कहा है – जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। लिहाजा चेतना ही जीवन की प्रमुख प्रेरक शक्ति है। योगी कहते हैं कि चेतना कों संभाल लेने से बाकी सब कुछ संभल जाएगा। पर चेतना व्यवस्थित हो कैसे? महर्षि योगी शिष्यों से कहते थे – “स्वर्ग का साम्राज्य तुम्हारे अंदर है। भावातीत ध्यान के जरिए उसे हासिल करो। फिर सब कुछ प्राप्त हो जाएगा।“ इंग्लैंड के प्रसिद्ध रॉक बैंड ’द बीटल्स’ के कलाकारों पर इस बात का बड़ा प्रभाव हुआ था। तभी वे साठ के दशक में ध्यान सीखने महर्षि महेश योगी के ऋषिकेश स्थित आश्रम पहुंच गए थे। अब तो वैज्ञानिक भावातीत ध्यान को क्वांटम मैकेनिक्स औऱ थर्मोडाइनोमिक्स से जोड़कर देखने लगे हैं।
महर्षि महेश योगी के आध्यात्मिक उतराधिकारी ब्रह्मचारी गिरीश के मुताबिक, ‘‘अब यह विज्ञान सम्मत बात है कि भावातीत ध्यान के नियमित अभ्यास से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्णता आती है। बुद्धि तीक्ष्ण व समझदारी गहरी होती है, भावनात्मक संतुलन होता है और तंत्रिका-तंत्र को गहन विश्राम मिलने के कारण तनाव दूर होता है, स्नायु मण्डल की शुद्धि होती है।“ बीसवीं सदी के महान योगी, भावातीत ध्यान योग और वैदिक शिक्षा के प्रणेता महर्षि महेश योगी की 107वीं जयंती 12 जनवरी को है। भावातीत ध्यान साधना ही उस महायोगी को सच्ची श्रद्धांजिल है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)