विलियम आर्थर की बर्बरता से तो हम सब परिचित हैं ही। ये वही अंग्रेज अधिकारी हैं, जो 1942 में पटना में जिला मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत थे और उनकी बर्बरता के कारण भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अहिंसक आंदोलन कर रहे सात छात्रों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी। इस लेख का विषय बेशक यह नहीं है, बल्कि महान योगी श्री अरविंदों के वैदिक ज्ञान के आलोक में वैदिक ज्ञान की महत्ता और सुपरमाइंड की संभावना बतलाना है। ताकि युवापीढ़ी में भारत के प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान की समझ बने और उसके पुनर्जनन में उसका योगदान हो। पर प्रसंगवश आर्थर के षड्यंत्रों की चर्चा यहां समीचीन है।
सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के तीन दिनों बाद कोई छह हज़ार निहत्थे छात्र पटना सचिवालय के आसपास एकत्र हो गए। वे सचिवालय भवन पर भारतीय ध्वज फहराना चाहते थे। आर्थर को यह गंवारा न था। उसने आदेश दिया कि केवल झंडा थामे लड़के को निशाना बनाया जाए। बाकी डर से भाग खड़े होंगे। पर, हुआ इसके उलट। जब झंडा थामें छात्र गोलियों से आहत होकर गिर गया, तो पंक्ति में अगला छात्र बहादुरी से झंडा उठाकर आगे बढ़ गया, लेकिन उसका भी यही हश्र हुआ। यह क्रम कुल सात छात्रों को मार डाले जाने तक जारी रहा। उनमें से छह नौवीं और दसवीं कक्षा के स्कूली छात्र थे, और एक दूसरे वर्ष का कॉलेज छात्र था।
जो लोग पटना सचिवालय के पास से गुजरे होंगें उन्होंने सचिवालय के बाहर झंडा ऊंचा उठाए आगे बढ़ते सात छात्रों की आदमकद कांस्य प्रतिमा देखी होगी। सन् 1952 में, प्रसिद्ध मूर्तिकार देवी प्रसाद रॉय चौधरी ने इसे गढ़ा था और स्थापित किया था। खैर, उसी आर्थर महोदय ने ठाना था कि भारतीय वैदिक ज्ञान को कूड़ा साबित कर देना है। नतीजतन, अपने सुरक्षित एवं स्वाभाविक क्षेत्र को छोड़कर ऐसे क्षेत्रों में टांग अड़ा दी, जिनके संबंध में उन्हें ज्ञान का सर्वथा अभाव था। अपने अभिमानपूर्ण अज्ञान के आधार पर भारत के वैदिक ज्ञान पर आक्रमण किया, और भारत के महान दर्शन, धर्म, काव्य, चित्रकला, मूर्तिकला, उपनिषद्, रामायण, महाभारत आदि के बारे में कह डाला कि ये अवर्णनीय बर्बरता का एक घृणास्पद स्तूप हैं। वैसै, अज्ञानियों की कौन कहे, पश्चिमी विद्वानों ने भी 19वीं शताब्दी में स्वार्थवश वेदों का अध्ययन करके उनकी सतही व्याख्याएँ की थीं। मैक्स मूलर जैसे विद्वान ने वेदों का अनुवाद करके दावा किया था कि इनमें कुछ खास नहीं है।
खैर, वैदिक ज्ञान को लेकर आर्थर के विचार सार्वजनिक होने के बाद भारतीयों की गहन चुप्पी के बीच “क्या भारत सभ्य है” शीर्षक से सर जॉन वुडरफ की पुस्तक प्रकाशित हुई तो ऐसा लगा मानो किसी ने शांत सरोवर में पत्थर फेंक दिया हो। सभी चौंक गए। इसलिए कि यह और कुछ नहीं, बल्कि विलियम आर्थर की मूर्खतापूर्ण बातों का भारतीय दर्शन के आधार पर तर्कसंगत जबाव था। अब जरा सर जॉन वुडरफ के बारे में भी जान लीजिए। ये वही सज्जन हैं जो अंग्रेजों के जमाने में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायधीश हुआ करते थे। किसी न्यायिक फैसले को लिपिबद्ध करने में परेशान हो गए थे। लिखना चाहते थे कुछ, लिखा जाता था कुछ और। तब उनके मातहत अधिकारी ने बताया कि यह कुछ और नहीं, बल्कि किसी की तंत्रिक क्रिया का परिणाम है। सर जॉन वुडरफ ने नौकरी छोड़कर तंत्र विद्या का ज्ञान हासिल करने में पूरी शक्ति लगा दी। अंतत: वे इस विद्या के महान ज्ञाता बन गए और “द सर्पेंट पावर” नाम से पुस्तक लिखी तो उसकी अनुगूंज पश्चिमी जगत में भी सुनाई पड़ी। तब भारत की तंत्र विद्या वहां भी धाक् जमी थी। उसी सर जॉन वुडरफ के कारण विलियम आर्थर के सारे किए पर पानी फिर गया था। उनकी दुर्भावनापूर्ण मान्यताएं ध्वस्त हो गई थीं।
बीसवीं सदी के महान योगी श्री अरबिंदो को भी वैदिक ज्ञान पर अज्ञानियों की बातें रास न आई। उन्होंने सर जॉन वुडरफ से दो कदम आगे बढ़ते हुए वैदिक ज्ञान का सच्चा स्वरूप उजागर किया। उनके लिए यह कार्य केवल शैक्षणिक नहीं था, बल्कि यह उनकी व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधना का हिस्सा था। पांडिचेरी आने से पहले, उन्होंने तीन महत्वपूर्ण यौगिक साक्षात्कार प्राप्त किए थे – ब्रह्मिक निर्वाण, विश्वव्यापी वासुदेव का साक्षात्कार, और मन और सुपरमाइंड के बीच के स्तरों का ज्ञान। इन अनुभवों ने उन्हें वेदों की गहराई को समझने की कुंजी प्रदान की।
श्री अरबिंदो ने पाया कि वेदों का लेखन एक गुप्त कोड में किया गया है, जिसे उन्होंने “एल्जेब्रिक कोड” कहा। उदाहरण के लिए, वेदों में “गाय” का अर्थ सामान्य गाय नहीं, बल्कि “प्रकाश” है, और “घोड़ा” का अर्थ “शक्ति” है। इस कोड को समझे बिना, वेद विचित्र और बर्बर प्रतीत होते हैं। श्री अरबिंदो ने इस कोड को खोलकर दिखाया कि वेदों में ईश्वर, विश्व और आत्मा का गहन ज्ञान निहित है।
वेदों में विश्व को तीन स्तरों, भौतिक, प्राणिक और मानसिक रूप में देखा गया है, लेकिन इसके अलावा एक चौथा स्तर है, जिसे “तुरीयं स्विद” कहा गया है। श्री अरबिंदो ने इसे अतिमानस या सुपरमाइंड के रूप में रेखांकित किया। सुपरमाइंड वह चेतना है जो सत्-चित्-आनंद (अस्तित्व, चेतना, आनंद) और मन, प्राण, शरीर के बीच की कड़ी है। यह वैदिक ऋषियों की सबसे महत्वपूर्ण खोज थी।
इस तरह श्री अरबिंदो ने वेद के रहस्यों को उजागर करके हमें एक नया दृष्टिकोण दिया। उनका योग और सुपरमाइंड का विचार न केवल व्यक्तिगत मुक्ति, बल्कि सामूहिक और वैश्विक परिवर्तन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। अतिमानसी चेतना यानी सुपरमेंटर कांशियसनेस उनकी आध्यात्मिक साधना और दर्शन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और केंद्रीय तत्व बन गया। श्री अरबिंदों की शिष्या माँ (मीर्रा अल्फासा) 29 फरवरी 1956 को ध्यानावस्था में अनुभव किया, “एक नई चेतना, जो अब तक केवल ब्रह्मलोकों में रहती थी, वह पृथ्वी के चेतना क्षेत्र में प्रविष्ट हुई। वह चेतना अब केवल कुछ योगियों की ऊँची साधना तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पृथ्वी के विकासक्रम में भाग लेगी।”
श्री अरबिंदो की सुपरमैंटल प्रजाति की अवधारणा को मानव विकास की अगली क्रमिक छलांग माना गया, जो सुपरमाइंड—एक उच्च चेतना स्तर—के आधार पर निर्मित है। दरअसल, सुपरमाइंड मन से परे एक ऐसी चेतना की बात है, जो सत्य, एकता और अनंत को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करती है, जैसा कि वेदों में “तुरीयं स्विद” (चतुर्थ स्तर) के रूप में उल्लेख है। यह अवधारणा वैदिक ज्ञान से प्रेरित है, जहाँ आत्मा (अग्नि) प्रकाश और अंधेरे के युद्ध से सुपरमाइंड तक पहुँचती है। श्री अरबिंदो का मानना था कि वैदिक ऋषियों ने सुपरमाइंड को शरीर में धारण किया (अमरता), पर वे इससे आगे गए। उनकी खोज यह है कि सुपरमाइंड केवल धारण ही नहीं, बल्कि शरीर की कोशिकाओं में समाहित हो सकता है। इससे मानव प्रजाति सुपरमैंटल प्रजाति में बदल सकती है, एक ऐसी प्रजाति जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से परिवर्तित हो। यह योग का नया रूप है, जो भविष्य को रचता है। औरोविल इस परिवर्तन का केंद्र है। यह मानवता के लिए क्रांतिकारी संभावना है।
श्री अरविंद का योग, जिसे वे “पूर्ण योग” कहते थे, उसमें अतिमानसी चेतना एक अंतिम, लेकिन सक्रिय लक्ष्य है, न केवल आत्मा की मुक्ति के लिए, बल्कि जीवन के रूपांतरण के लिए भी। श्री अरबिंदो का यह दृष्टिकोण हमें भविष्य की ओर ले जाता है, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में सुपरमाइंड मानवता का अगला विकासात्मक चरण बन सकता है, जो कृत्रिम नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व अध्यात्म विज्ञान विश्लेषक हैं।)