सर्दी का मौसम खासतौर से उच्च रक्तचाप, हृदय रोगियों और गठिया के मरीजों के लिए कई चुनौतियां प्रस्तुत करता है। इसलिए कि सामान्य शारीरिक गतिविधियां थम-सी जाती हैं और ठंड से बचकर रहना बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में योग खासतौर से योग की एक विधि नाड़ी शोधन प्राणायाम बड़े कमाल का परिणाम देता है। इस प्राणायाम में इतनी शक्ति है कि जीवन में चार चांद लगा दे।
हृदयाघात की घटनाओं में वृद्धि की तात्कालिक वजह चाहे जो भी हो, पर यह सर्वामान्य है कि विभिन्न परेशानियों में उलझा हुआ मन और असंयमित जीवन-शैली से ज्यादा नुकसान हो रहा है। कहा भी गया है कि चिंता से चतुराई घटे, दुःख से घटे शरीर। वैदिक ग्रंथों में तो दु:ख और चिंता के दुष्परिणामों को लेकर कितनी ही बातें कही गई हैं। गरूड़ पुराण में चिंता को चिता के समान बतलाया गया है। पर वैदिक ग्रंथों में समस्या का समाधान भी दिया गया है। आधुनिक विज्ञान भी मानने लगा है कि उदासी, चिंता, क्रोध, क्लेश, हताशा और दु:ख एक ही आधार से उपजे रोग हैं और वैदिककालीन योग ग्रंथों में बतलाए गए उपाय बड़े काम के हैं। उनमें प्राणायाम, खासतौर से नाड़ी शोधन प्राणायाम प्रमुख है।
हृदय रोग की तरह लाइलाज पार्किंसंस रोग भी तेजी से पांव पसार रहा है। यह चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, पार्किंसन रोग दुनिया भर में मृत्यु का 14वां सबसे बड़ा कारण है। यह दिमाग की उन तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है, जिनसे डोपामाइन का उत्पादन होता है। पर बिहार योग विद्यालय के नियंत्रणाधीन योग रिसर्च फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में पाया कि योगाभ्यासों में मुख्यत: नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास से रोगियों की आक्रमकता कम हुई और हार्मोन क्षरण की रफ्तार धीमी पड़ गई। इस प्राणायाम से नाड़ी मंडल में संतुलन बना और मस्तिष्क केंद्रों की खतरनाक क्षतिकारक प्रतिक्रिया नियंत्रित हो गई। ऐसा इसलिए हुआ कि प्राण-शक्ति से मस्तिष्क के तंतुओं का पोषण हुआ और वे फिर से सक्रिय होने लगे।
जब पार्किंसन जैसी लाइलाज बीमारी में यह प्राणायाम अपना असर दिखाता है तो दैनिक जीवन में आने वाली कठिनाइयों के निदान में यह कितना प्रभावी होगा, इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है। आधुनिक युग के योगी तो सदैव नाड़ी शोधन प्राणायाम की महिमा बतलाते रहे है। पर, योग को जीवन का हिस्सा बना चुके लोगों का भी अनुभव है कि नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन होता है। श्वसन क्षमता बढ़ती है, नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है, हृदय रोगियों का आराम पहुंचाता है आदि आदि। अनेक शोध पत्रों में खुलासा किया जा चुका है कि इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से फेफड़े मजबूत होते हैं और ऑक्सीजन का आदान-प्रदान बेहतर होता है। सोने से पहले नाड़ी शोधन का अभ्यास करने से अनिद्रा की समस्या दूर होती है। जीवन शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाने में मददगार होती है। रक्तचाप और हृदय गति को कम करने में मदद मिलती है। पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र को सक्रिय करता है, जिससे तनाव का स्तर कम होता है और विश्राम और आंतरिक शांति की गहरी भावना पैदा होती है। सबसे बड़ी बात यह कि आध्यात्मिक उत्थान में भी यह प्राणायाम बड़े काम का है।
परंपरागत योगविद्या के परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती अपने अध्ययनों और व्यावहारिक ज्ञान के आधार पर योगविद्या पर काफी कुछ बोल गए हैं। उनके अनुभवों को एक साथ और अलग-अलग संदर्भों में कलमबद्ध किया जा चुका है। उन्होंने प्राणायाम के संदर्भ में कहा है – “भारतीय सनातम परंपरा में प्राणायाम का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका अभ्यास करने वाले अपने प्राण-संचार से रोगों को दूर कर सकते हैं। यदि किसी को गठिया रोग हो तो योगी कुंभक के साथ अपने हाथों से उसकी टांगों पर मालिश करके दु:ख का निवारण कर सकता है। दरअसल, ऐसा करने से योगी के शरीर से रोगी के शरीर में प्राण-शक्ति का संचार होता है। यही स्थिति चमत्कार पैदा करती है। प्राणायाम का अभ्यास करते समय इष्ट मंत्र का जप चलते रहे तो इसके बड़े फायदे होते हैं। वैदिक सिद्धांतों के मुताबिक भी गायत्री मंत्र का जप करते हुए पूरक, रेचक और कुंभक बेहद ताकतवर होता है। यह पूरक, रेचक और कुंभक ही नाड़ी शोधन प्राणायाम है।
जहां तक आध्यात्मिक साधकों के लाभ की बात है तो आज्ञा-चक्र की चर्चा प्रासंगिक हो जाता है। इसी जागृत आज्ञा-चक्र को शास्त्रों में तीसरा नेत्र भी बतलाया गया है। योगियों का अनुभव हैं कि आज्ञा-चक्र इतनी शक्तिशाली है कि वह मामूली रूप से उदीप्त भी हो जाए तो अजब-गजब परिणाम मिलने लगते हैं। पीनियल ग्रंथि, आज्ञा चक्र और अतीन्द्रिय शक्ति के विकास में नाड़ी शोधन प्राणायाम की भूमिका होती है, यह सिद्ध योगियों का अनुभव तो रहा ही है, अब विज्ञान भी इस बात को स्वीकार रहा है। आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के मुताबिक, योग की परंपरा में कुछ ऐसे उपाय हैं, जिनकी सहायता से तृतीय नेत्र को जागृत किया जा सकता है। इनसे पदार्थ, नाम और रूप को देखने वाली दृष्टि अतीन्द्रिय दृष्टि में बदल जाती है। उन्हीं उपायों में एक है नाड़ी शोधन प्राणायाम।
दरअसल, शरीर की मुख्य तीन नाड़ियों इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का मिलन आज्ञा चक्र में होता है। योगियों का मानना है कि पीनियल ग्रंथि का आज्ञा चक्र से निकट संबंध है। यह अंतर्ज्ञान के क्षेत्र है। इसलिए आज्ञा चक्र को जागृत करने के किसी भी उपाय से पीनियल ग्रंथि भी प्रभावित होती है। विज्ञान साबित कर चुका है कि आमतौर पर मस्तिष्क का दस फीसदी भाग ही सही तरीके से काम करता है। शेष भाग सुषुप्तावस्था में होता है। मस्तिष्क का क्रियाशील भाग तो इड़ा और पिंगला की शक्ति से काम करता है। पर शेष भागों में केवल पिंगला की ही शक्ति मिलती है। पिंगला जीवन है और इड़ा चेतना।
इड़ा और पिंगला नाड़ियां संतुलित हो जाती हैं और अन्य नाड़ियां भी शुद्ध हो जाती हैं। पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है। इसलिए खासतौर से बच्चों को सात-आठ तक की उम्र से ही प्रतिभा के विकास के लिए सूर्य नमस्कार और गायत्री मंत्र के जप के साथ ही नाड़ी शोधन प्राणायाम करने की सलाह दी जाती है। इन उदाहरणों से समझा जा सकता है कि सामान्य-सा प्रतीत होने वाले नाड़ी शोधन प्राणायाम कितना चमत्कारिक है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)