एबॉट इंडिया नाम से तो हम सब वाकिफ हैं ही। चिकित्सकीय उत्पादों का निर्माण करने वाली इस कंपनी ने लोगों के आहार-व्यवहार के कारण पाचन संबंधी समस्याओं और उससे उत्पन्न खतरों को लेकर देशव्यापी सर्वेक्षण करवाई तो पता चला कि गैर महानगरों की तुलना में महानगरों के ज्यादा लोग पाचन संबंधी समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं और इस वजह से मधुमेह, मानसिक विकास और हृदय रोग जैसी बीमारियों का जन्म हो रहा है। सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार गैर महानगरों के 19 फसदी की तुलना में महानगरों के 23 फीसदी लोग कब्ज पीड़ित रहते हैं।
आयुर्वेद शास्त्र में ज्यादातर बीमारियों की जड़ पेट की बीमारी को ही माना गया है। पाचन प्रणाली कमजोर होने के कारण कई बार अधपका आहार भी रक्त की ओर बढ़ने लगता है। चूँकि उसे रक्त अपने में आत्मसात नहीं कर पाता। इसलिए, किसी कष्टकर प्रक्रिया से शरीर से बाहर निकलने का प्रयत्न करता है। बलगम प्रायः ऐसे ही अधपके रक्त का एक रूप है। मुहासे एवं फोड़ा-फुंसी के रूप में भी यही कफ त्वचा फोड़कर बाहर निकलता है। स्पष्ट है कि बेहतर पाचन शक्ति सुखमय जीवन की कुंजी है और पाचन क्रिया ठीक रहे इसके लिए शरीर के भीतर की जठराग्नि महत्व की है। यही वह परिवर्तनकारी शक्ति है, जो पाचन क्रिया को क्रियाशील बनाती है।
पर, नए वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि फंक्शनल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर (जठरांत्र विकार), हाइपोथायरायडिज्म, पिट्यूटरी ग्रंथि में विकार, मानसिक तनाव और मधुमेह अनियंत्रित होने से भी पेट संबंधी रोग प्रकट हो रहे हैं। स्वीडेन के गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी के अध्ययन से पता चला है कि केवल फंक्शनल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स यानी जठरांत्र विकार की वजह से ही भारत सहित दुनिया के 33 देशों के औसतन दस में से चार लोग परेशान हैं। इस संबंध में 73,000 लोगों पर अध्ययन किया गया। श्रीश्री रविशंकर के अगुआई वाले आर्ट ऑफ लिविंग के मुताबिक, हाइपोथायरायडिज्म यानी अंडरएक्टिव थाइरायड भी पेट की बीमारी में बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह ग्रंथि जब पर्याप्त थॉइरायड नहीं बना पाती है तो शरीर में मेटाबॉलिज्म यानी चयापचय गतिविधियां नियंत्रित नहीं रह पाती हैं। इस वजह से वजन बढ़ता है और कब्ज की समस्या आती है।
मुंबई स्थित द योगा इस्टीच्यूट के मुताबिक अनियंत्रित मधुमेह पाचन तंत्र को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभा रही है। ऐसा इसलिए कि मधुमेह के मरीजों में इंसुलिन हार्मोन का स्तर अपर्याप्त होने पर ब्लड शूगर यानी रक्त शर्करा प्रभावित होता है। रक्त शर्करा में वृद्धि नसों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे कब्ज होता है। यानी पूरा मामला पहले अंडा या मुर्गी जैसा जान पड़ता है। पाचन क्रिया कमजोर है तो कई बीमारियां होती हैं और दूसरी तरफ कई बीमारियों के कारण भी आंत कमजोर होता है।
आंत को अक्सर दूसरा मस्तिष्क कहा जाता है। इसमें पाई जाने वाली बैक्टीरिया के स्ट्रेन शारीरिक-मानिसिक सेहत को प्रभावित करते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, सेरोटोनिन, जो हमारे शरीर का एक फील-गुड हॉरमोन है, वह भी मुख्य रूप से आंत द्वारा उत्पादित और संचालित है। यदि सेरोटोनिन की कमी हुई तो चिंता, तनाव, अवसाद और क्रोध से बच पाना मुश्किल होता है। यौगिक दृष्टिकोण से, शरीर का यह क्षेत्र मणिपुर चक्र या सौर जाल ऊर्जा केंद्र यानी सोलर प्लेक्सस से संबंधित है। यह दर्शाता है कि यही आंतरिक सूर्य का स्थान है।
जब अग्नि केंद्र संतुलित होता है, तो पाचन-तंत्र मजबूत रहता है और स्वस्थ काया मिलती है। आंतरिक अग्नि में संतुलन बनाने के लिए, संतुलित और स्वास्थ्यकर भोजन के साथ ही योगाभ्यास अविश्वसनीय रुप से सहायक होते हैं। हठयोग के कुछ अभ्यास तंत्रिका तंत्र और आंतरिक अग्नि को शांत करने या इसे सक्रिय करने में सहायक होते हैं। इसके साथ ही बलगम को संतुलित करने के लिए कुंजल, पित्त को संतुलित करने के लिए शंखप्रक्षालन और वायु को संतुलित करने के लिए योगनिद्रा बड़े काम के होते हैं। चूंकि इस बीमारी में तनाव प्रबंधन पर खासा जोर होता है, इसलिए योगनिद्रा की अहमियत और भी बढ़ जाती है।
बिहार योग विद्यालय, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, द योग संस्थान और आर्ट आफ लिविंग के मुताबिक षट्कर्म की दो क्रियाओं नेति व कुंजल के अलावा सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, सरलमत्स्यासन, भुजंगासन, धनुरासन, गोमुखासन, वज्रासन, शशकासन, उष्ट्रासन, मर्जरी आसन, वक्रासन, ताड़ासन, कटिचक्रासन, प्राणायाम की विधियों में कपालभाति, उज्जायी और भ्रामरी प्राणायाम और प्रत्याहार की विधियों में केवल योगनिद्रा का अभ्यास ही कर लिया जाए तो पेट की बीमारी के साथ ही उसके कारक रोगों से भी राहत मिल जा सकती है।
यौगिक लाभों को कुछ उदाहरणों से समझिए। पश्चिमोत्तानासन को कब्ज और पाचन संबंधी विकारों के लिए उत्कृष्ट आसन माना गया है। इससे पेट पर गहरा दबाव पड़ने के कारण पेट की मालिश हो जाती है और कब्ज, कमजोर पाचन तंत्र और सुस्त जिगर से संबंधित परेशानियों से राहत मिल जाती है। योग के अभ्यासों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए एकाग्रता काफी मायने रखती है। जिस तरह आधुनिक विज्ञान मानव शरीर को मुख्यत: ग्यारह तंत्रों या संस्थानों में विभाजित करता है। उसी तरह योग शास्त्र के मुताबिक शरीर में मूलाधार पिंड से लेकर ऊपर तक सात चक्र होते हैं। नीचे से तीसरा है मणिपुर चक्र। यह पाचन और चयापचय (मेटाबालिज्म) का मुख्य केंद्र है। पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करते समय ध्यान मणिपुर चक्र पर केंद्रित रखने से आसन का पूरा फल मिलता है। ध्यान रहे कि उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और स्पॉडिलाइटिस के मरीजों को यह आसन नहीं करने की सलाह दी जाती है।
आसनों की तरह प्राणायम का भी पाचन तंत्र पर असर होता है। योग रिसर्च फाउंडेशन अपने अनुसंधानों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि योग मन व प्राणमय शरीर को परिचालित करके ही पाचन संबंधी समस्याओं का इतना प्रभावशाली उपचार करने में सफल हो पाता है। सच तो यह है कि पेट संबंधी योग साधना का मुख्य उद्देश्य मणिपुर चक्र को जाग्रत करना ही होता है। ताकि मणिपुर चक्र से जठराग्नि को पर्याप्त प्राण-शक्ति मिलती रहे। इसके लिए आमतौर पर कपालभाति, उज्जायी और भ्रामरी प्राणायाम की अनुशंसा की जाती है।
उपरोक्त तमाम बातों को भगवद्गीता के आलोक में कहना हो तो यही कहा जाएगा कि जिसका आहार और विहार संतुलित हो, जिसका आचरण अच्छा हो, जिसका शयन, जागरण व योग-ध्यान नियमित हो, उसके जीवन के सभी दु:ख स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। छठे अध्याय के 17 वें श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से यही तो कहते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)