नई दि्लली। महज तीन दिनों की योग साधना और योगाभ्यासियों को विशेष अनुभूति का अहसास। यह परिघटना असाधारण है। यह सब कुछ घटित हुआ विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के तीन दिवसीय योग साधना शिवर में, जो 2-4 अगस्त तक दिल्ली के छत्तरपुर में आयोजित किया गया था। वरिष्ठ संन्यासी स्वामी शिवराजानंद सरस्वती शिविर में “सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया” के मनोभाव से शास्त्रसम्मत और बीसवीं सदी के महान संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा शोधित शुद्ध योग का प्रचार करने के लिए गए थे और उनकी भावना फलीभूत हो गई। प्रभावशाली योग विधियां, उनके बारे में ओजपूर्ण व्याख्यान और प्रशिक्षण की परिशुद्धता का ऐसा कमाल हुआ कि पहली बार योगाभ्यास कर रहे लोगों को भी प्रत्यक्ष अनुभव हुआ कि योग से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन संभव है।
प्रतिदिन दो सत्रों में आयोजित तीन दिवसीय योग साधना शिविर में वैसे तो कई योग विधियों की नवीनतम और विज्ञानसम्मत जानकारी देते हुए उनके अभ्यास करवाए गए। पर कुछ उदाहरणों के जरिए समझना आसान होगा कि योग साधकों को आमतौर पर किए जाने वाले योगाभ्यासों की तुलना में अलग अनुभूति क्यों हुई। जैसे शिवर में सूर्य नमस्कार कराया गया। यह प्रचलित योगाभ्यास है और जो योगाभ्यासी हैं, कोई विशेष परिस्थिति न हो तो यह अभ्यास अनिवार्य रूप से करते हैं। पर शिविर में उनके लिए ये शब्द किताबी नहीं रह गए थे कि इस साधना से स्नायु व अंतस्रावी अवयबों में संकुचन, उद्दीपन और पुनर्संतुलन तो होता ही है, आंतरिक सजगता, एकाग्रता व मानस दर्शन में भी वृद्धि होती है।
इसी तरह प्राण क्रिया के अभ्यास की अनुभूति भी अशांत मन को सांत्वना देने वाली थी। यह योगाभ्यास अत्यन्त सूक्ष्म और शक्तिशाली अभ्यास है। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि प्राण का आधार मूलाधार है। मणिपुर में यह संचित होता है और आज्ञा चक्र इसका वितरण केन्द्र है। सामान्यतः प्राण विद्या के अभ्यासों द्वारा मूलाधार चक्र से प्राण को जाग्रत किया जाता है। मूलाधार से प्राण को जाग्रत कर आरोहण करते हुए आज्ञा-चक्र में ले जाया जाता है, जहाँ यह अस्थायी रूप से संचित रहता है और वितरण केन्द्र बनता है। जब पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न हो कर आज्ञा में संचित हो जाती है तब शरीर के विभिन्न भागों में इसका वितरण किया जाता है। प्राण का विस्तार शरीर के बाहर के वातावरण को प्रभावित करने और दूसरों के उपचार तथा उनकी सहायता के लिए भी हो सकता है। अभ्यास समाप्त करने के पूर्व जाग्रत ऊर्जा को उसके मूल स्रोत, मूलाधार में वापस ले जाना आवश्यक होता है। योग शिविर में योगाभ्यासियों को आंशिक रूप से ही सही, पर बेहतर अनुभूति हुई और खुद पर भरोसा हुआ कि वे इस कठिन साधना में आगे बढ़कर सर्वाधिक लाभ उठा सकते हैं।
स्वामी शिवराजानंद सरस्वती का योगनिद्रा सत्र भी बेहद असरदार होता है। अनेक पुराने योग साधकों का अनुभव रहा है कि स्वामी शिवराजानंद सरस्वती जब योगनिद्रा का अभ्यास करा रहे होते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है, मानों परमहंस जी ही उनके जरिए योगाभ्यासियों को अभ्यास करा रहे हों। जाहिर है कि असरदार योगनिद्रा सत्र साधनारत लोगों को खूब भाया और सुखद अनुभव का अहसास हुआ। आखिर योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान ऐसा क्या होता है कि कइयों को आध्यात्मिक अनुभूति का अहसास होने लगता है? स्वामी जी इसकी व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से करते हैं। वे कहते हैं कि गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। यही नहीं, योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है औऱ अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह योगनिद्रा के दौरान बीटा औऱ थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है। इसलिए इसे कई बीमारियों की एक दवा कहा जाता है।
बिहार योग पद्धति से जहां कहीं भी योग साधना कराई जाती है तो साधकों को तीन मंत्रों की साधना अनिवार्य रूप से करने और दिनचर्या में शामिल कर लेने का सुझाव दिया जाता है। क्यों? संन्यासी इसका जबाव स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की अनुभूतियों के हवाले देते हैं। स्वामी जी का कथन है – “इन मंत्रों के विषय में चिंतन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह शरीर घनीभूत ऊर्जा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, जो हर कम्पन और स्पंदन पर प्रतिक्रिया दिखाती है। यह ऊर्जा इतनी सूक्ष्म और संवेदनशील है कि कोई भी विचार या भाव इसको प्रभावित कर सकता है, इसकी प्रकृति को बदल सकता है। हमारी नित्य-निरन्तर बदलती मनोदशाएँ इस ऊर्जा के स्वरूप और प्रकृति को बदल सकती हैं, और जब कोई मनोभाव तीव्र होता है तो यह ऊर्जा उस विशेष मनोभाव की संवाहिका बन जाती है और कुछ मंत्र ऐसे हैं जो शरीर की ऊर्जाओं को विशेष गति पर कम्पित कर सकते हैं, जो शरीर के चुम्बकीय गुण को बदल सकते हैं।“ इसलिए, महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र और दुर्गा जी के बत्तीस नामों वाले तीन मंत्रों की प्रभावशाली जपयोग साधना दिल्ली के योग साधना शिविर में भी करवाई गई।
इनके अलावा आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिहाज से महत्वपूर्ण अंतर्धारणा, चक्रानुसंधान आदि साधनाओं का भी अभ्यास कराया गया। आमतौर पर स्वास्थ्य लाभ के लिए योग शिविर तो आयोजित होते ही रहते हैं। पर आध्यात्मिक उपलब्धियों को ध्यान मे रखते हुए उच्चतर योगाभ्यास के लिए शिविर को उपलब्धि के तौर पर देखा गया। बिहार योग विद्यालय की परंपरा के मुताबिक यह योग साधना शिविर भी नि:शुल्क था।