अजपा जप योग को लेकर विश्व के अनेक शोध संस्थानों में हुए शोधों के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। साबित हो चुका है कि यह योग साधना अनिद्रा के शिकार मरीजों के लिए ट्रेंक्विलाइजर है तो हृदय रोगियों के लिए कोरेमिन। यदि सामान्य कारणों से सिर में दर्द है तो यह दर्द निवारक दवा का भी काम करता है। हिस्टीरिया और उच्च रक्तचाप के मरीजों पर इसका सकारात्मक प्रभाव है। पर सबसे चमकारिक असर है मोटापे की वजह से उत्पन्न बीमारियों के मामलों में है। अनुसंधानों से साबित हो चुका है कि अजपा जप योग मनुष्य के शरीर की चर्बी को डीकार्बोनाइजेशन करके जला देता है। मनुष्य के शरीर की चर्बी जलने से जिन प्रमुख गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है, वे हृदय, किडनी, डायबिटीज, और ब्लड प्रेशर से संबंधित हैं।
“योग-निद्रा” योग के बाद “अजपा जप” एक ऐसी सरल मगर बेहद महत्वपूर्ण योग साधना है, जो आध्यात्मिक चेतना के विकास के साथ ही घातक बीमारियों से मुक्ति दिलाने में मददगार है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने इस योग पर देश-विदेश के अनेक शोध संस्थानो के साथ अपने अनुसंधान के परिणामों के आधार पर कहा था – “अजपा का अभ्यास ठीक ढंग से और पूरी तत्परता से किया जाए तो यह हो नहीं सकता कि रोग ठीक न हो। मात्र अजपा के अभ्यास से मनुष्य काल और मृत्यु को जीत सकता है। तात्पर्य यह कि कोई कोई काल से प्रभावित हुए बिना रह सकता है और चाहे तो इच्छा मृत्यु को प्राप्त कर सकता है।“
अनुसंधानकर्त्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अजपा जप से अधिक मात्रा में प्राण-शक्ति आक्सीजन के जरिए शरीर में प्रवेश करती है। फिर वह सभी अंगों में प्रवाहित होती है। रक्त नाड़ियों में अधिक समय तक उसका ठहराव होता है। प्राण-शक्ति शरीर में ज्यादा होने से मनुष्य स्वस्थ्य और दीर्घायु होता है। वैसे तो प्राण-शक्ति हर आदमी के शरीर में प्रवाहित होती रहती है। पर जिसके शरीर में अधिक मात्रा में प्रवाहित होती है, वह स्वस्थ्य, प्रसन्न, शांत, सौम्य होते हैं। यदि कोई रोग लगा भी तो उसे ठीक होते देर नहीं लगती है।
कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं, जिनका चिकित्सा शास्त्र में उपाय नहीं है। जैसे, मानसिक विकार यानी वैमनस्य, ईर्ष्या आदि। योग-निद्रा की तरह ही अजपा की क्रिया मनोकायिक है। अजपा जप मन को नियंत्रित करता है। विज्ञान की कसौटी पर साबित हो चुका है कि बीमारियों का कारण प्राय: मानसिक होता है। इसलिए योग विज्ञान दवाओं से पहले मन के उपचार पर बल देता है। अजपा जप शक्ति केंद्रों का भंडारगृह यानी सुषुम्ना नाड़ी में गर्मी पैदा करता है। इसके साथ ही बीमारियों पर वार शुरू हो जाता है।
बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जोर देकर कहते हैं कि अजपा का प्रयोग चिकित्सा की एक विधि के रूप में होना चाहिए। वह इस विधि का अनेक बार प्रयोग कर चुके हैं और हर बार आशातीत सफलता मिली। वह खुद भी और उनके गुरू स्वामी सत्यानंद सरस्वती भी यह मानते रहे हैं कि प्राणमय कोश और मनोमय कोश के विकारों को दूर करने में एलोपैथिक, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाएं असमर्थ हैं। इनका अचूक इलाज तो यौगिक क्रियाओं के जरिए ही होगा। खासतौर से अजपा के जरिए।