एक सौ साठ देश… पाँच हज़ार ध्यान केंद्र… सोलह हज़ार प्रशिक्षक… और दो करोड़ साधक! यह महज़ आँकड़ा नहीं, बल्कि आठ दशकों से प्रवहमान उस यौगिक और आध्यात्मिक यात्रा की जीवंत कहानी है, जो भारत के एक छोटे से कस्बे से आरंभ होकर आज दुनिया भर के लोगों की जीवन-पद्धति का हिस्सा बन चुकी है। श्री रामचंद्र मिशन का अभियान उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ से विस्तार पाता हुआ यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका तक फैल चुका है। दूसरी तरफ रामाश्रम सत्संग है, जो मथुरा के साथ ही देश-विदेशों के कई स्थानों पर लाखों अनुयायियों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। पर, क्या आप जानते हैं कि इस यौगिक व आध्यात्मिक आंदोलन का बीजारोपण किसने किया था? वे थे फतेहगढ़ के महान संत समर्थ गुरु श्री रामचंद जी उर्फ लाला जी महाराज।
नक्शबंदिया सिलसिले के प्रमुख खलीफा और महान सूफी संत सद्गुरु मौलवी फ़ज़ल अहमद खां साहब के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी लाला जी महाराज सूर्य की तेजस्विता और चंद्रमा की शीतलता के संगम रूप में इस धरा पर अवतरित हुए थे। वे कहते थे, “कमाल इन्सानी इसी में है कि फना-फिल्लाह की सरहद में पहुंच कर बका-बिल्लाह में बाकी रहे।” मतलब कि मानव जीवन की सबसे ऊँची अवस्था यह है कि वह स्वयं को पूरी तरह ईश्वर में विलीन कर दे, और अपनी चेतना को उसी ईश्वरीय सत्ता में टिकाए रखे। यही “कमाल इन्सानी” यानी मानव जीवन की उच्चशिखा है। उन्होंने इसके लिए जो यौगिक विधियां विकासित की, वही ‘सहज मार्ग’ के रूप में प्रसिद्ध हो गईं। इन विधियों में “प्राणाहुति” ध्यान पद्धति सर्वाधिक चर्चित है, जो सहज मार्ग या हार्टफुलनेस आंदोलन की आधारशिला है।
ईश्वरीय ज्ञान पाने का लाला जी महाराज का सफर कैसा रहा और ज्ञान प्राप्ति हेतु वे किस-किस मार्ग से होकर गुजरे, यह कथा भी कम दिलचस्प नहीं। लाला जी महाराज की जड़ें उत्तर प्रदेश में मैनपुरी जिले के भोगांव तहसील से जुड़ी हुई हैं। उनके पूर्वज श्री वृंदावन लाल (अजानबाहू) ने ही मैनपुरी जिले के 555 गांवों वाले परगना को पुनर्गठित करके भूमिग्राम बसाया था। कुछ दस्तावेजों के मुताबिक लाला जी महाराज का जन्म पैतृक गांव भूमिग्राम में ही हुआ था, जिसे अब भोगांव तहसील के रुप में जाना जाता है। सन् 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह हुआ तो अस्थिरता इतनी हुई कि लाला जी महाराज के पिता चौधरी हरबख्श राय को गांव छोड़कर कायमगंज जाना पड़ गया था। उसी दौर में संपत्ति विवाद हुआ तो राजा के रंक बनते देर न लगी थी। यानी लाला जी महाराज और उनके भाई महात्मा रघुवर दयाल जी उर्फ संत चच्चा जी महाराज का बचपन अभावों में ही बीता।
लाला जी महाराज के जन्म का प्रसंग भी कम रोचक नहीं। चौधरी हरबख्श सिंह की हवेली में एक फकीर आया और मछली खाने की इच्छा व्यक्त की। उनकी धर्मपरायण पत्नी ने फकीर की इच्छा पूरी कर दी। फकीर प्रसन्न हुआ और जाते-जाते पूछा, “कोई तमन्ना हो तो बताना।“ तब वहां उपस्थिति दासी ने कहा – “हुजूर, रानी की कोई संतान नहीं है।“ फकीर ने दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए गगनभेदी आवाज में कहा – “अल्लाह एक, दो।” इसके एक साल बाद ही 2 फरवरी 1873 को वसंत पंचमी के दिन लाला जी महाराज का जन्म हुआ। छोटे भाई चच्चा जी महाराज का जन्म दो-ढाई साल बाद हुआ। इस तरह एक और दो का मतलब स्पष्ट हो गया। ईश्वर द्वारा भेजे गए इन बंदों में ईश्वरीय गुण बचपन से ही परिलक्षित होने लगे थे। पर, लाला जी महाराज विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
सात-आठ साल की अवस्था में माता ने और युवावस्था में कदम रखते ही पिता ने साथ छोड़ दिया। तभी उनके जीवन में रायपुर (उप्र) के एक नामी सूफी फकीर फज्ल अहमद खां साहब का पदार्पण हुआ। वे नक्शबंदिया सिलसिले के जाने-माने संत थे। मदरसे में नौकरी के कारण रायपुर से आठ किमी दूर कायमगंज में कोठरी लेकर रहते थे, जहां उनकी नजर दोनों भाइयों पर पड़ी थी। नक्शबंदिया सिलसिला इस्लाम की सूफ़ी परंपरा का एक प्रमुख आध्यात्मिक संप्रदाय के रुप में जाना गया। इसे हज़रत बहाउद्दीन नक्शबंद बुखारी ने 14वीं शताब्दी में स्थापित किया था। खां साहेब दोनों भाइयों से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी परंपरा में दीक्षा दी। यही नहीं, अंतिम समय में लाला जी महाराज को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी बना दिया।
वैसे तो लाला जी महाराज सभी मतों के विचारों का स्वागत करते थे। पर, अपने गुरुदेव के आदेश पर दृढ़ता पूर्वक चलते थे। एक बार अजीब घटना हुई। किसी ने उन पर इस्लाम धर्म स्वीकार करने का दबाव बनाया। लाला जी महाराज ने यह बात अपने गुरु को बताई तो गुरु ने सख्त आदेश दिया, “जिस धर्म में जन्म लिया है, उसी के अनुसार कर्म-काण्ड करना चाहिए।” उन्होंने धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने वाले को दुत्कारा भी। अपने गुरु की महासमाधि के बाद लाला जी महाराज फतेहगढ़ को केंद्र बनाकर ताउम्र नक्शबंदिया सिलसिले को विस्तार देते रहे। दुनिया के अनेक देशों के लोगों ने उनकी शिक्षाओं का लाभ उठाया। सन् 1931 में महासमाधि के बाद उनकी शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए रामचंद्र मिशन और रामाश्रम सत्संग के रुप में दो प्रमुख धाराएं निकलीं, जो आज भी मजबूती से उन शिक्षाओं को दुनिया भर में फैला रही है।
मौजूदा समय में रामचंद्र मिशन और हार्टफुलनेस की अगुआई दाजी उर्फ कमलेश डी. पटेल कर रहे हैं। रामश्रम संत्संग की भी देश-दुनिया में मजबूत उपस्थिति है। पर परमसंत डॉo चतुर्भुज सहाय (1883 – 1957) द्वारा मथुरा में स्थापित रामाश्रम सत्संग का दायरा व्यापक है। लाला जी महाराज की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार अन्य संगठनों के बैनर तले में होता है। पर, रामाश्रम सत्संग की शिक्षाओं में लाला जी महाराज की नक्शबंदिया सिलसिले आधारित शिक्षाओं की स्पष्ट झलक मिलती है।
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाला जी महाराज की150वीं जयंती पर हैदराबाद के कान्हा शांति वनम् स्थित श्री रामचंद्र मिशन के मुख्यालय में उनके योगदान को याद किया। स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया गया। पर, सरकार लाला जी महाराज की शिक्षाओं के संरक्षण और उसके प्रचार-प्रसार के लिए जन्म-स्थली या साधना स्थली पर भव्य मेमोरियल का निर्माण कराए, तो बड़ी बात होगी। उनकी शिक्षाओं को डिजिटल स्वरुप प्रदान करके नई पीढ़ी को बेहतर दिशा दी जा सकती है। इससे जग का कल्याण होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)
- इस लेख के लिए फार्रुखाबाद के प्रसिद्ध योगचार्य अमित सक्सेना ने कई महत्वपूर्ण तथ्य उपलब्ध कराए। कमाल इंसानी के अलावा, परमसंत डॉ हरनारायण जी सक्सेना, रामचंद्र मिशन, रामाश्रम सत्संग और राधारघुवर भवन से प्रकाशित साहित्यों से भी काफी मदद मिली। हम तहेदिल से आभार प्रकट करते हैं।