“मैं आपको अपने जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताना चाहता हूँ, जो 1958 में घटी। आप में से कुछ ने इसे मेरी पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ में पढ़ा होगा। लेकिन यहाँ उपस्थित युवाओं के लिए, जिन्होंने यह पुस्तक नहीं पढ़ी, मैं इसे दोहराना चाहूँगा। जब मैं एक छोटा बालक था, मेरा सपना था कि मैं उड़ान भरूँ। मेरे पास एक अद्भुत शिक्षक थे, शिवसुब्रमण्या अय्यर, जिन्होंने मुझे विज्ञान की ओर प्रेरित किया और उड़ान से संबंधित कुछ करने का विचार दिया। इसलिए मैंने वैमानिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश लिया और 1957 में स्नातक हुआ, जो बहुत समय पहले की बात है।
मैं पायलट बनना चाहता था। यही मेरा सपना था। मैंने वायुसेना में आवेदन किया और मुझे देहरादून में वायुसेना चयन बोर्ड के साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। मैं अपने गृहनगर रामेश्वरम, जो दक्षिण भारत में एक द्वीप पर स्थित है, से यात्रा करके मंडपम, फिर चेन्नई, दिल्ली और अंत में देहरादून पहुँचा। यह पहली बार था जब मैंने भारत की इस खूबसूरत भूमि को, विभिन्न संस्कृतियों के इस देश को, देखा।
यहाँ उपस्थित वयस्कों और स्वामियों को मेरे साक्षात्कार का परिणाम पता होगा, लेकिन मैं इसे युवाओं के लिए बताना चाहूँगा। चार दिनों में आपको दौड़, जिमनास्टिक, साक्षात्कार और समूह चर्चा जैसे कई कार्य करने थे। पच्चीस आवेदकों में से आठ का चयन होना था। चार दिनों की कठिन प्रक्रिया के बाद, नौ लोगों का चयन हुआ। मैं नौवें स्थान पर था, लेकिन उन्हें केवल आठ लोग चाहिए थे। मुझे बताया गया कि मेरे चयन की अच्छी संभावना है, क्योंकि सामान्यतः एक व्यक्ति मेडिकल परीक्षा में असफल हो जाता है। लेकिन, ईश्वर की कृपा से, सभी आठ लोग मेडिकल परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए, और इस तरह मेरा चयन नहीं हुआ।
मैं बहुत निराश था। मैंने तय किया कि मैं ऋषिकेश और हरिद्वार होते हुए दिल्ली के लिए बस लूँगा। मैंने यही मार्ग चुना। मैं सुबह जल्दी देहरादून से निकला। जब मैं ऋषिकेश पहुँचा, तो अचानक मेरे सामने गंगा का सुंदर दृश्य प्रकट हुआ। नवंबर महीने में सर्दियां काफी होती हैं। बावजूद, गंगा में स्नान करने की इच्छा हुई। स्नान के बाद, जब मैं अपनी धोती पहन रहा था, तभी मेरी नजर गंगा के दूसरी ओर पड़ी। वहाँ मुझे एक अत्यंत सुंदर और प्रसन्नता से भरा भवन दिखाई दिया।
मैं स्वतः ही उस भवन की ओर आकर्षित हुआ, जो स्वामी शिवानंद का आश्रम था। स्वामी शिवानंद एक मंच पर बैठे सैकड़ों लोगों को सत्संग दे रहे थे। मैं सबसे पीछे की पंक्ति में बैठा था।
उनके भगवद्गीता पर प्रवचन के बाद, वे आमतौर पर भीड़ में से दो लोगों को साक्षात्कार के लिए चुनते थे। मैं उन दो लोगों में से एक था। मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझे क्यों चुना। उन्होंने मुझे अपने कक्ष में बुलाया और तमिल में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” मैंने जवाब दिया, “अब्दुल कलाम।” फिर उन्होंने पूछा, “तुम उदास क्यों हो?” इस महान, ईश्वर द्वारा चुने गए, दिव्य पुरुष ने मेरे दुख को पहचान लिया! मैंने उत्तर दिया, “स्वामीजी, मैं आपको सारी बात बताता हूँ। मैं वायुसेना चयन बोर्ड के साक्षात्कार के लिए आया था, लेकिन मेरा चयन पायलट के लिए नहीं हुआ।”
स्वामी शिवानंद ने मुझे देखा। मैं उनके सामने एक छोटा-सा व्यक्ति था। फिर उन्होंने भगवद्गीता का ग्यारहवाँ अध्याय, विश्वरूप दर्शन, खोला, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सामने अपने समस्त रूपों में प्रकट होते हैं। जब अर्जुन कहते हैं कि वे कुरुक्षेत्र के युद्ध में लड़ने से डर रहे हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें कहते हैं, “पराजयवादी प्रवृत्ति को परास्त करो।” यह एक महान संदेश है। स्वामी शिवानंद ने मुझे यह वाक्य “पराजयवादी प्रवृत्ति को परास्त करो” तीन बार दोहराने को कहा। मैंने इसे तीन बार दोहराया और मेरा मन उत्साहित हो उठा। फिर उन्होंने मुझे अपनी तमिल और अंग्रेजी में प्रकाशित बीस पुस्तकें दीं। यह मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था।
मित्रों, मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता। अब मैं इकहत्तर वर्ष का हो गया हूं। सूर्य का एक चक्कर एक वर्ष में पूरा होता है, और मैंने इकहत्तर चक्कर पूरे कर लिए हैं। स्वामी शिवानंद का मंत्र, “पराजयवादी प्रवृत्ति को परास्त करो,” मेरे साथ सदा रहता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई यह महान दार्शनिक सलाह मुझे हमेशा तब याद आती है, जब मैं किसी संकट में होता हूँ।
मैं आप सभी के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ। ईश्वर आपको आशीर्वाद दे।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम