भारत में बढ़ता वजन एक महामारी बन चुका है। शारीरिक श्रम में कमी और खाद्य तेल के सेवन में अधिकता के कारण समस्या विकराल रुप धारण कर चुकी है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इस स्थिति को आपातकाल कह सकते हैं। वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हो चुका है कि खाद्य तेल के सेवन में कमी और नियमित योग साधना से कैलोरी जलती हैं, चयापचय बढ़ता है, और कोर्टिसोल कम होता है। इससे पेट की चर्बी कम होती है। मोटापे और इसके जोखिमों से निपटने में मदद मिलती है।
द लैंसेट के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, सन् 2022 तक देश में कोई सत्तर मिलियन वयस्क मोटापे से ग्रस्त थे। इनमें बच्चे भी शामिल हैं, जिनकी संख्या 12.5 मिलियन है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया कि 18-69 आयु वर्ग में 24 फीसदी महिलाएँ और 22.9 फीसदी पुरुषों का बीएमआई 25 या उससे अधिक था। मोटापा गैर-संचारी रोगों जैसे टाइप-2 मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, और कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म दे रही है, जबकि देश में पहले से ही 100 मिलियन से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री व मनोवैज्ञानिक डैनियल काह्नमैन की चर्चित पुस्तक है – थिंकिंग फास्ट एंड स्लो। इसमें उन्होंने साबित किया है कि जब कोई जानकारी सरल और बार-बार अभिव्यक्त की हुई होती है, तो दिमाग उसे आसानी से स्वीकार करता है। हम सबका अनुभव भी है कि प्रभावशाली लोगों की जनोपयोगी मुद्दों पर अपील उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं, संचार शैली, और सामाजिक परिस्थितियों के लिहाज से जनता पर गहरा प्रभाव डालती है। मोटापे की समस्या और डैनियल काह्नमैन के सिंद्धांत के आलोक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजा अपील निश्चित रुप से बड़े महत्व की है। उन्होंने हाल ही “मन की बात” कार्यक्रम में मोटापे की समस्या को लेकर चिंता जताई थी और खाद्य तेल के सेवन पर नियंत्रण करने का सुझाव दिया था।
खाद्य तेल का अत्यधिक सेवन क्यों घातक है? वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि खाद्य तेल में कैलोरी की मात्रा नौ कैलोरी प्रति ग्राम तक होती है, जो प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट (चार कैलोरी प्रति ग्राम) से काफी ज्यादा है। इससे उत्पादित ऊर्जा की खपत न हो तो यह वसा के रूप में जमा हो जाता है। नतीजतन, वजन बढ़ जाता है। मोटापे से बीमारियों का सीधा संबध कैसे है, इसे भी कुछ उदाहरणों के जरिए समझा जाना चाहिए। मोटापा इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ाता है, जिसमें कोशिकाएँ इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता खो देती हैं। इससे रक्त शर्करा यानी ब्लड ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। मेडिकल जर्नल द लॉसेट के अनुसार, बीएमआई में पांच अंक की वृद्धि से टाइप 2 मधुमेह का जोखिम 27 फीसदी बढ़ जाता है। अतिरिक्त वसा से एलडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स बढ़ते हैं। इससे धमनियों में प्लाक जमा करता है, जिससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। जापानी सर्कुलेशन सोसाइटी की वैज्ञानिक पत्रिका सर्कुलेशन के एक अध्ययन में पाया गया कि मोटापे से हृदय रोग का जोखिम 40-50 फीसदी तक बढ़ जाता है।
इसी तरह, अतिरिक्त वसा के कारण ऊतक से एस्ट्रोजन और सूजन पैदा करने वाले रसायन बढ़ते हैं। इससे कैंसर कोशिकाएं बढ़ती हैं। इंसुलिन प्रतिरोध से भी कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। इंग्लैंड के “कैंसर रिसर्च जर्नल” के अनुसार, मोटापे से कैंसर का जोखिम 10-20 फीसदी तक बढ़ सकता है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएसन के जर्नल जेएएमए साइकेट्री के मुताबिक, मोटापे से अवसाद का जोखिम 25-30 फीसदी बढ़ जाता है। कैसे? तनाव के समय मस्तिष्क में सूजन बढ़ने से न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन होता है। खुशी के लिए कारक हार्मोन सेरोटोनिन की कमी हो जाती है और “स्ट्रेस हार्मोन” कोर्टिसोल का स्तर बढ़ता है। इसलिए सेरोटोनिन बढ़ाने वाली दवाएँ कोर्टिसोल के स्तर को कम कर देती हैं तो तनाव या अवसाद में राहत मिलती है।
योगियों के अनुभव और वैज्ञानिक शोधों के नतीजों से पता चलता है कि आहार संतुलन के साथ ही योगाभ्यासों यथा आसनों में सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, धनुरासन, नौकासन, पश्चिमोत्तानासन, प्राणायमों में नाड़ी शोधन, कपालभाति, भस्त्रिका और ध्यान से इस समस्या का समाधान मिल सकता है। ध्यान में प्रवेश करने से पहले योगनिद्रा बेहद कारगर होता है। वैसे यह खुद भी बेहद शक्तिशाली परिणाम देने वाली प्रत्याहार की योग विधि है। कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर इस बात को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
सूर्य नमस्कार से कैलोरी का क्षय होता है और चयापचय की क्षमता अभिवृद्धि होती है। जर्नल ऑफ फिजिकल एक्टिविटी एंड हेल्थ के मुताबिक, कोई आधा घंटा सूर्य नमस्कार करने से चार सौ तक कैलोरी जल जाता है, जो उतनी ही देर तेज चलने के समान है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ योगा के मुताबिक, छह महीनों तक नियमित सूर्य नमस्कार करने वालों की कमर की परिधि चार सेंटीमीटर तक कम गई थी। भुजंगासन से पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। इससे पाचन बेहतर बनता है और वसा जमा होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। जर्नल ओबेसिटी के मुताबिक, भुजंगासन से कोर्टिसोल में 20-25 फीसदी की कमी हो गई थी, जिससे पेट की चर्बी को नियंत्रित करने में मदद मिली।
नौकासन पेट की चर्बी को जलाने में प्रभावी है, क्योंकि यह कोर मांसपेशियों को सक्रिय करता है, चयापचय बढ़ाता है, पाचन को सुधारता है, और तनाव से जुड़े हार्मोन को संतुलित करता है। जर्नल ऑफ ओबेसिटी में उल्लेख है कि कोर्टिसोल की अधिकता पेट की चर्बी बढ़ाती है। नौकासन के अभ्यासियों में देखा गया कि तनाव हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर घट गया था। एविडेंस बेस्ड कंप्लीमेंटरी एंड अल्टरनेटिव मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, मोटे लोगों पर भुजंगासन, धनुरासन, नौकासन आदि के प्रभावों का कोई तीन महीनों तक परीक्षण किया गया। रोज एक घंटा अभ्यास कराया जाता था। नतीजा हुआ कि दो किलोग्राम तक वजन कम हुआ और 3-5 फीसदी तक वसा में कमी दर्ज की गई।
प्राणायामों में भस्त्रिका प्राणायाम को ही ले लीजिए। इस प्राणायाम में शरीर को अधिक ऑक्सीजन मिलने से वसा ऑक्सीकरण की प्रक्रिया तेज होती है, जिसमें संग्रहित वसा टूटकर ऊर्जा में तब्दील हो जाती है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ योगा के मुताबिक, भस्त्रिका प्राणायाम से बेसल मेटाबॉलिक रेट (बीएमआर) में 15-20 फीसदी की वृद्धि होती है, जो वसा जलने में सहायक है।
इस तरह हमने साक्ष्यों के आधार पर देखा कि किस तरह आहार संतुलन और योगासन की लय से कैलोरी का क्षय होता है। यदि योग्य प्रशिक्षकों के निर्देशन में योगाभ्यास किया जाए तो निश्चित रूप से इस महामारी से राहत मिल सकती है।
(लेखक योग विज्ञान विश्लेषक और उषाकाल डॉट कॉम के संपादक हैं।)