कोरोना काल में सर्वत्र अज्ञात डर व भय का माहौल है। इस खतरनाक मनोदशा से पूरी दुनिया चिंतित है। ओशो ने इस तरह की मन:स्थितियों पर खूब लिखा। उनके विचार फिर प्रासंगिक हो गए हैं। वे कहते थे – “महामारी से तो लोग मरते ही हैं, महामारी के डर से भी लोग मर जाते हैं। डर से ज्यादा खतरनाक दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है।“ सवाल है कि डर से उबरने के उपाय क्या हैं? आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास तो केवल नींद की दवा है। जहिर है कि ओशो होते तो ध्यान की बात करते, जीवन-दृष्टि बदलने की बात करते। आज भी प्रकारांतर से ऐसी ही योग विद्या के अनुकरण की जरूरत है, जिनसे प्रथमत: अशांत मन को सांत्वना मिले। भय का भूत भागे।लॉकडाउन की अवधि के लिए अनुशंसित ढेर सारी योग विधियों में उलझने के बदले ऐसी योग विधियों का चयन करने की जरूरत है, जिन्हें अमल में लाना आसान हो। पर उनके परिणाम आज की जरूरतों के अनुरूप हों। ऐसा योगमय जीवन स्वस्थ जीवन का आधार बनेगा। योग विधियों के विश्लेषण से समझ बनी है कि यदि जीवन में कोई बड़ा उथल-पुथल न हो तो एक घंटा समय निकाल कर चंद योगाभ्यासों से स्वस्थ जीवन का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। इसके लिए आसनों में पवन मुक्तासन भाग -1 के चार आसन – स्कंध चक्र, ग्रीव संचालन, ताड़ासन व तिर्यक ताड़ासन काफी हैं। ये बेहद आसान आसन हैं। प्राणायाम की दो क्रियाएं नाड़ीशोधन व भ्रामरी प्राणायाम और अंत में प्रत्याहार की कोई भी क्रिया करके छुट्टी। प्रत्याहार की क्रियाओं में योगनिद्रा उपयुक्त है। मन का प्रबंधन हो जाता है। योग रिसर्च फाउंडेशन और दुनिया के अनेक देश में हुए शोधों के आधार पर कहा जा सकता है कि ये योगाभ्यास शारीरिक और मानसिक स्वस्थ्य के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगे। शुरू के दो आसन गर्दन के लिए हैं। कोविड-19 के कारण कंप्यूटर सहित तरह-तरह की डिजिटल तकनीकों पर निर्भरता बढ़ी है। बच्चे ऑनलाइन क्लास करने को मजबूर हैं। इन वजहों से गर्दन की हड़्डियों में अकड़ और तनाव आम बात हो गई है। आने वाले समय में सर्वाइकल स्पॉडिलाइसिस के मरीजों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो तो हैरानी न होगी। इस लिहाज से स्कंध चक्र और ग्रीवा संचालन के अभ्यास बेहद असरदार हैं। दोनों कोहनी को सीधी और उल्टी दिशा में वृत्ताकार घुमाने के अभ्यास को स्कंध चक्र कहा जाता है। ग्रीवा संचालन के तहत गर्दन की सभी चार मुद्राओं का अभ्यास सर्वाइकल स्पॉडिलाइसिस के मरीजों, रक्तचाप के मरीजों और बुर्जुगों को बिल्कुल नहीं करना है। बाकी लोगों के लिए यह फायदेमंद है। चूंकि शरीर के सभी अंगों को जोड़ने वाली तंत्रिकाएं गर्दन से होकर ही जाती हैं। इसलिए यह अभ्यास तंत्रिका तंत्र को व्यवस्थित रखता है। कंप्यूटर पर काम करने वालों और ड्राइविंग करने वालों के लिए भी यह उपयुक्त आसन है। बाकी दो आसनों ताड़ासन और तिर्यक ताड़ासन पर देश में और विदेशों में भी कई स्तरों पर अध्ययन किए गए। हरियाणा स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी के निदेशक प्रो. जयपाल डुडेजा ताड़ासन पर अध्ययन किया। सबका निष्कर्ष यह कि इन आसनों से मांसपेशीय तनाव नहीं रह जाते। तब तंत्रिका तंत्र और अंत:स्रावी ग्रंथियां ठीक से काम करने लगती हैं। फेफड़े की क्षमता बढ़ती है और ऑक्सीकरण में वृद्धि होती हैं। पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली व्यवस्थित रहती है। मलाशय व आमाशय की पेशियों और आंतों में खिंचाव के कारण पेट संबंधी बीमारियों के उपचार में लाभ होता है। अनिद्रा, सिर में दर्द, निम्न रक्तचाप और चक्कर आने की शिकायत वाले लोगों को योग प्रशिक्षक की सलाह से ही अभ्यास करना चाहिए। योग शास्त्रों के मुताबिक नाड़ीशोधन प्राणायाम श्वास लेने की एक ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर की ऊर्जा प्रणाली को साफ कर प्राणों के संचरण को आसान बनाती है। गोरक्ष संहिता और हठयोग प्रदीपिका के मुताबिक प्राणिक शरीर में 72 हजार नाड़ियां और छह महत्वपूर्ण चक्र हैं। इन नाड़ियों और चक्रों पर नाड़ीशोधन प्राणायाम के प्रभाव जानने के लिए कई अध्ययन किए गए। बिहार योग विद्यालय के नियंत्रणाधीन योग रिसर्च फाउंडेशन ने सबसे पहले नाड़ीशोधन प्राणायाम के मनो-शारीरिक प्रभावों का पता लगाने के लिए अध्ययन किया था। पता चला कि इस योग विधि से नाड़ियों की शुद्धि होती है और प्राणों में संतुलन आता है। कुंभक की क्षमता में वृद्धि होती है और चमत्कारिक बात यह कि मूलाधार चक्र और आज्ञा चक्र में भी प्राण-शक्ति का अनुभव होता है। कुंडलिनी योग के मुताबिक मूलाधार चक्र प्राणिक शरीर का मुख्य चक्र है। इसी से होकर नाड़ियां निकलती हैं। यह चक्र शरीर का पोषण करने वाले अन्नमय कोष का आधार है। जब यह चक्र गतिमान होता है तो व्यक्ति की जीवन-शक्ति मजबूत होती है। आज्ञा चक्र आनंदमय कोष का प्रतिनिधित्व करता है। जब यह गतिमान होता है तो व्यक्ति का अपने शरीर पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। चक्रों व कोषों की विशेषताएं और योग रिसर्च फाउंडेशन के शोध के आलोक में नाड़ीशोधन प्राणायाम की अहमियत को समझा जा सकता है। जापान में जन्में परामनोविज्ञानी हिरोशी मोटोयामा ने नाड़ियों के अस्तित्व को लेकर अनुसंधान किया। उन्होंने पाया कि स्नायु-तंत्र के आसपास विद्युत चुंबकीय धारा का स्थिर वोल्टेज प्रवाहित हो रहा था। इससे प्राचीन योगियों की नाड़ियों के अस्तित्व की बात सही निकली। भ्रामरी प्राणायाम के प्रभावों पर भी शोध किए गए हैं। चेन्नै स्थित श्रीरामचंद्र मेडिकल कॉलेज एवं रिसर्च इंस्टीच्यूट में बच्चों के फेफड़ों पर भ्रामरी प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन किया गया था। नतीजे बेहतर मिले। श्रीश्री रविशंकर कहते हैं कि यह प्राणायाम मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को आराम देता है और मस्तिष्क के हिस्से को विशेष लाभ प्रदान करता है। मधु-मक्खी की ध्वनि की तरंगे मन को प्राकृतिक शांति प्रदान करती हैं। आदमी चिंता-मुक्त होता है। अन्य अध्ययनो से भी पता चला है कि भ्रामरी के अभ्यास से क्रोध, चिंता एवं अनिद्रा का निवारण होता है। रक्तचाप नियंत्रित होता है। इससे प्रमस्तिष्कीय तनाव व परेशानी से मुक्ति मिलती है। साइनस के रोगी को मदद मिलती है और थायराइड के उथल-पुथल का उपचार होता है। विज्ञान यह साबित कर चुका है कि तनावग्रस्त होने पर चयापचय और अधिवृक्क ग्रन्थियां अस्वस्थ हो जाती हैं। इससे आदमी अज्ञात भय से आक्रांत हो जाता है। ऐसे में योगनिद्रा बड़े काम का होता है। इसलिए कि मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक विश्रांति प्रदान करने की यह व्यवस्थित पद्धति है। इसका अभ्यास आसान है। पर नतीजे बेहिसाब हैं। हाइपोथैलेमस ग्रंथि की विकृति खत्म होते ही दिल की धड़कन, रक्तचाप और हृदय की पेशियों पर पड़ने वाला भार कम हो जाता है। हृदयाघात से बचाव हो जाता है। हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बेहतर स्वास्थ्य का राज बताया तो योगनिन्द्रा फिर व्यापक फलक पर छा गया। निष्कर्ष यह कि इन सहज और सरल योग विधियों के अभ्यास से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का संयोजन बेहतर ढंग से होता है। भय का भूत भागता है और नई ऊर्जा का संचार होता है। कोविड-19 से जूझते हुए सुनहरे कल की ओर बढ़ने के लिए ऐसी ही शक्ति तो चाहिए।
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