ऑनलाइन योग कारोबार भले चमकता हुआ दिख रहा है। पर इस चमक के पीछे छिपा है योग प्रशिक्षकों का बेबस दर्द। लगभग दो तिहाई योग प्रशिक्षकों के पास या तो कोई काम नहीं है या मामूली काम है। कई योग प्रशिक्षक तो रोजमर्रे की जरूरतें पूरी करने के लिए हर्बल दवाइयां बेच रहे हैं।
कोरोनाकाल योग के लिए स्वर्णिम काल और बहुत सारे योग संस्थानों और योग प्रशिक्षकों के लिए संकट काल है। सुनने में यह विरोधाभासी बातें लग सकती हैं। पर यही हकीकत है। ऑनलाइन योग के कारोबार की जैसी चमक दिख रही है, उसकी असलियत कुछ और है। उसके पीछे ढ़ेर सारे योग कारोबारियों और प्रशिक्षकों का बेबस दर्द है। आलम यह है कि छोटे-बड़े पांच सौ से ज्यादा योग संस्थान बंद हो गए हैं। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद भी इन संस्थानों के कारोबार सजने की संभावना बेहद कम है। बेरोजगारी की दंश झेल रहे कई योग प्रशिक्षक हर्बल दवाइयां तक बेच रहे हैं। केवल बाजार में बने रहने के लिए रोज अपने वीडियो जारी करते रहते हैं। जो योग प्रशिक्षक संकटकाल में भी बाजार में टिक गए हैं, उनकी आमदनी बुरी तरह प्रभावित है।
कुछ योग प्रशिक्षक जरूर इसके अपवाद हैं। ऐसे प्रशिक्षक मुख्यत: महानगरों के हैं। जो योग प्रशिक्षक साधन-संपन्न और टेक सेवी हैं और पहले से ही ऑनलाइन क्लासेज ले रहे थे, उनकी आमदनी बढ़ गई है। जो गंभीर रूप से बीमार लोगों को सेवाएं दे रहे थे, उनकी आमदनी पूर्व की तरह बनी रह गई। कुछ योग प्रशिक्षकों को स्थानीय क्लाइंट्स के मार्फत विदेशों के क्लाइंट्स भी मिल गए हैं। पर ऐसे योग प्रशिक्षकों की संख्या गिनती के हैं। लगभग दो तिहाई योग प्रशिक्षक ऑनलाइन योग के प्रति योगाभ्यासियों की बेरूखी से बुरी तरह प्रभावित हैं। इस बेरूखी की मुख्यत: तीन वजहें हैं। पहला तो यह कि लोगों की आम राय है कि जब ऑनलाइन क्लास ही करना है तो देश के नामचीन योगाचार्यों की मुफ्त सेवा का लाभ क्यों न उठाया जाए। दूसरा, लोगों का विश्वास है कि योग ऑनलाइन नहीं सीखा जा सकता। दूरस्थ प्रशिक्षण से खतरा हो सकता है। तीसरा, नेटवर्क समस्या और योग प्रशिक्षकों के पास उपयुक्त डिवाइस न होने के कारण ऑनलाइन क्लास से फायदा नहीं है।
दूसरी तरफ, कोरोना महामारी के बाद अपनी सेहत को लेकर महानगरों के मध्य वर्ग की जैसी सोच बनी है, वह भी योग कारोबार के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। “हेल्दीफाईमी” के मुताबिक अपने स्वास्थ्य को लेकर बेहद सतर्क मध्य वर्ग घर को ही जिम में तब्दील करने में जुटा हुआ है। फ्लिप कार्ट और अमेजन से जुटाए गए आंकडों के मुताबिक लॉकडाउन के बाद मैट से लेकर फिटनेस उपकरणों तक की बिक्री में 65 फीसदी का इजाफा हुआ है। बिहार योग विद्यालय जैसे परंपरागत योग के कुछ संस्थानों को छोड़ दें तो देश के अनेक प्रमुख योग संस्थानों की ओर से योगाभ्यासियों की जरूरतों को ध्यान में रखकर रोज वीडियो जारी किए जाते हैं। योग सीखने का यह तरीका कितना कारगर है, इस पर बहस हो सकती है। पर फिलहाल बड़े संस्थानों के वीडियोंज लोगों को खूब भा रहे हैं।
बड़े योग संस्थानों के पास अपने को बचाए रखने के दस उपाय हैं। जैसे, केंद्र और राज्यों की सरकारें योग से संबंधित अपनी बहुत सारी योजनाएँ बड़े योग संस्थानों के जरिए ही कार्यान्वित कराती है। आजकल बेबिनार का चलन है। हाल ही अंग्रेजी की एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने वित्तीय कंपनी और योग संस्थान के सहयोग से बेबिनार का आयोजन किया था। सबको पता है कि बेबिनार ऑनलाइन जमाने का प्रकारांतर से विज्ञापन ही है। संकट में वे हैं जो अपने बलबूते उद्यमी बनकर, एंटरप्रेन्योर बनकर कोई मुकाम हालिल करने का सपना संजोए हुए थे। परेशानी उनकी बढ़ी हुई हैं, जिन्होंने सरकारी या निजी क्षेत्र की कंपनियों में रोजगार पाने के मकसद से योग में डिप्लोमा व डिग्री ही नहीं, बल्कि पीजी यानी स्नातकोत्तर तक की शिक्षा हासिल की थी। पर संविदा शिक्षक या प्रशिक्षक बनकर रह गए थे। रोजमर्रे की जिंदगी तबाह उनकी है, जो कुकुरमुत्ते की तरह उग गए योग शिक्षण केंद्रों के भ्रमजाल में फंसकर सौ दो सौ घंटों में योग प्रशिक्षक बनकर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। संकट झेल रहे तबकों में यह तबका सबसे बड़ा है।
ऋषिकेश को योग की वैश्विक राजधानी के रूप में जाना जाता है। वह परंपरागत योग के संतों की तपोभूमि है तो गुरू-शिष्य परंपरा वाली योग शिक्षा का केंद्र भी है। आध्यात्मिक और धार्मिक कारणों से दुनिया भर में मशहूर पर्यटन स्थल होने के कारण पर्यटकों और अन्य योग शिक्षानुरागियों को ध्यान में रखकर खोले गए योग प्रशिक्षण केंद्र और योगा स्टूडियोज भी हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद योग को पंख लगा तो गुणवत्ता की परवाह किए बिना योग के कारोबार में तेजी से इजाफा हो रहा था। योग को पेशे के तौर पर देखने की युवाओं की मंशा भांपकर योग के कई कारोबारियों ने युवाओं को भ्रमजाल में फंसाया। उन्हें सौ-दो सौ घंटों का प्रशिक्षण देकर योग प्रशिक्षक बना दिया। ऐसे योग प्रशिक्षक अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। ऑनलाइन योग के जमाने में उन्हें इस बात का भान हो चुका है कि उनका ज्ञान योग पेशे में लंबी दूरी तय करने के लिए नाकाफी है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति दूसरे शहरों में भी है।
देश के बमुश्किल दो दर्जन योगाश्रमों और प्रतिष्ठित योग संस्थानों को छोड़ दें तो बाकी योग कारोबारियों की हालत खास्ता है। केवल ऋषिकेश में ही कोई तीन सौ योग शिक्षण-प्रशिक्षण केंद्र पूरी तरह बंद हो चुके हैं। इनमें ऐसे केंद्र भी हैं, जो महीने का सात-आठ लाख रूपए व्यावसायिक जगहों के लिए भाड़ा दे रहे थे। इनमें से नब्बे फीसदी केंद्रों के कारोबार विदेशी पर्यटकों पर आधारित थे। नेशलल लॉक़डाउन के बाद वे सभी केंद्र बालू की भीत की तरह बिखर चुके हैं। इनके प्रमोटरों को सूझ नहीं रहा कि नई राह किस तरह बनेगी। लखनऊ में प्रयाग आरोग्यम् केंद्र कई लोगों के रोजगार का जरिया बन गया था। पर कोरोना महामारी के कारण उसे बंद कर देना पड़ा है। इसके प्रमोटर प्रशांत शुक्ल अपने गांव जा चुके हैं और वहीं से ऑनलाइन क्लासेज लेते हैं। उनका कहना है कि कुछ नामचीन योगियों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि लोगों का लगता है कि योग शिक्षा मुफ्त लेने की चीज है। तभी अनेक योग प्रशिक्षकों को हर्बल दवाएं बेचने को मजबूर होना पड़ है।
देश भर में संविदा यानी कांट्रैक्ट पर काम करने वाले योग प्रशिक्षकों की स्थिति भी कमोबेश बाकी योग प्रशिक्षकों जैसी ही है। शैक्षणिक संस्थानों और अन्य संस्थानों के बंद होने के कारण उनकी सेवाएं अर्थहीन हो गई हैं। काम नहीं है तो पारिश्रमिक भी नहीं मिल रहा है। संविदा प्रशिक्षकों की पीड़ा इतनी ही नहीं है। स्नातकोत्तर स्तर की योग शिक्षा और वर्षों योग प्रशिक्षण देने का अनुभव रखने वाले प्रशांत शुक्ला को बीते साल अगस्त में लखनऊ स्थित केंद्रीय विद्यालाय में संविदा के आधार पर बहाल किया गया था। जब भारत में भी कोरोना संकट का आगाज हुआ तो फरवरी में प्राचार्य ने बता दिया कि उनकी नौकरी जा चुकी है।
आर्थिक संकट से जूझते योग प्रशिक्षक सरकार से आर्थिक मदद चाहते हैं। दिल्ली में “योग करो” संस्थान के प्रमुख मंगेश त्रिवेदी और कुछ अन्य योग प्रशिक्षक अपने पेशे के लोगों को सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से लामबंद कर रहे हैं। उनका मानना है कि योग प्रशिक्षक संगठित होकर अपनी बात उचित स्थानों तक पहुंचाएंगे तो सरकार की कई योजनाओं का लाभ उन्हें मिल सकता है। शवासन में पहुंच चुके योग कारोबार के कारण शीर्षासन करते योग प्रशिक्षक इस अभियान से कितने लाभान्वित हो पाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)