किशोर कुमार //
योग की बढ़ती स्वीकार्यता के बीच अनेक स्तरों पर उसकी व्याख्या गलत ढ़ंग से कर दी जा रही है। हाल यह है कि महर्षि घेरंड और महर्षि स्वात्माराम द्वारा प्रतिपादित योग की प्रक्रिया को कई बार महर्षि पतंजलि का बता दिया जाता है। इतना ही नहीं, योग के स्वयंभू अगुआ कई प्रकार के व्यायाम को राज योग और राज योग को हठ योग बताने में भी पीछे नहीं रहते।
आज महर्षि पतंजलि के नाम पर जो आसन कराया जाता है, उसे राज योग कह दिया जाता है, जबकि वह हठ योग है और योग की यह प्रक्रिया महर्षि पतंजलि की नहीं, बल्कि महर्षि घेरंड और महर्षि स्वात्माराम की है। हठयोग तो पट्कर्म, आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध, इन पांच को मिलाकर होता है। हठ योग में सिद्ध होने के बाद राज योग की बारी आती है। राज योग में हठयोग की प्रक्रियाएं पूरी तरह बदल जाती हैं।
ऐसे में यह सुखद है कि पारंपरिक ज्ञान के प्रवर्तक व सिद्ध योगी और बिहार योग विद्यालय व विश्व योगपीठ के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती देश और समाज को यह भान कराने के सफर पर निकले हुए हैं कि परम सत्य की खोज में इधर-उधर भटकने के बजाय ‘अपने को जानने और जुड़ने’ की जरूरत है। इस मकसद से आम लोगों के सहयोग से गुवहाटी के श्री गुवहाटी गौशाला में 8 अक्तूब से चार दिनों का अनूठा योगोत्सव आयोजित किया जा रहा है, जहां योगसाधना के व्यावहारिक और सम्यक रूप से साक्षात्कार संभव हो सकेगा और लोग जीवन के उद्देश्य को नए रूप में देखेंगे।
यात्रा का नाम “स्वयं को जानो योगोत्सव भारत यात्रा” है। इसकी शुरुआत मुंबई से हुई थी। अब काठमांडू, कलकत्ता और दिल्ली के बाद पांचवा पड़ाव गुवहाटी में है। जो लोग पारंपरिक और व्यावहारिक योग को समझते हैं वे अब तक के योगोत्सवों से जान चुके हैं कि भीड़ को यौगिक माया से भरमाने वाले योगी आगे समय की कसौटी पर खरे नहीं उतरने वाले। लोग उन साधकों की ओर देख रहे है जो स्वयं को जानने की राह बताने वाले हैं। विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक तथा सत्यानंद योग के प्रवर्तक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की इस भारत यात्रा का एक ही मकसद है-आनंदमय जीवन की आकांक्षा रखने वाले लोग अपना मन बदलें और योग साधना का अभ्यास करें।
योगोत्सव के संयोजक स्वामी शिवराजानंद सरस्वती कहते हैं कि योग साधना के बारे में अधिकांश लोगों ने सुना है। पर कम ही लोगों ने इसका अनुभव पाया है। अनुभव कहता है कि आत्म-विकास या आत्म-साक्षात्कार का मार्ग बाहरी जगत में नहीं है। वह हमारे भीतर ही है। इसलिए इस योगोत्सव में योग साधना के प्राचीन, परंपरागत ज्ञान का आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाएगा। साथ ही लोगों को योग साधना के व्यावहारिक पक्ष के बारे में बताया जाएगा, ताकि वे इस ज्ञान का अधिक से अधिक लाभ उठाकर आधुनिक जीवन के नकारात्मक प्रभावों को हटा सकें।
दरअसल परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के गुरू ऋषिकेश के स्वामी शिवानंद सरस्वती ने चालीस के दशक में ही महसूस कर लिया था कि योग कालांतर में समाज के लिए एक जरूरत बन जाएगा। उत्तरी योग पंथ में सबसे पहले इस दिशा में कदम बढ़ाया था स्वामी शिवानंद सरस्वती ने। वे दशनामी परंपरा के अनुयायी रहे हैं। यह परंपरा यौगिक विचारधारा नहीं, बल्कि वेदांत परंपरा का अनुसरण करती है। इसके बावजूद उन्होंने अपने संन्यासियों को 1940 के प्रारंभ से ही योग की व्यावहारिकता के विषय में बताना शुरू कर दिया था।
इस दौरान स्वामी शिवानंद सरस्वती को एक ऐसा शिष्य मिल गया था जो दुनिया भर में आमजन तक योग विद्या को पहुंचा सके। जब स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने बिहार के मुंगेर में गंगा के तट पर बिहार योग विद्यालय की स्थापना की तो उनके गुरु स्वामी शिवानंद जी की योग की एक समन्वित पद्धति के विकास की अभिलाषा ने मूर्त रूप धारण कर लिया। आज आलम यह है कि भारत से बाहर कोई 140 देशों में बिहार योग विद्यालय की 700 से अधिक शाखाएं हैं। बिहार योग या सत्यानंद योग परंपरा को आगे बढ़ाने में ये शाखाएं भी अहम् भूमिका निभा रही हैं। सन् 1964 में मुंगेर में बिहार योग विद्यालय के पहले सम्मेलन में स्वामी जी ने कहा था – मुंगेर पूरे विश्व के लिए योग का केंद्र बनेगा और इसे विश्व के नक्शे में स्थान प्राप्त होगा। यह बात आज पूरी तरह साबित हो चुकी है।
“योग निद्रा” स्वामी स्वामी सत्यानंद सरस्वती का दुनिया को दिया गया अमूल्य उपहार है। योग निद्रा के प्रभाव से कई असाध्य रोग जड़ से समाप्त हो रहे हैं। कई रोगों को नियंत्रण में रखने में सफलता मिल रही है। इसमें कैंसर जैसी घातक बीमारी भी शामिल है। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने तंत्र शास्त्र में वर्णित न्यास पद्धति के गूढ़ ज्ञान को वैज्ञानिक ढ़ंग से विकसित करके योग निद्रा दुनिया के सामने लाया था। उन्होंने लंबे अनुसंधानों और अनुभवों से साबित कर दिया कि “योग निद्रा” के अभ्यास से संकल्प-शक्ति को जागृत कर आचार-विचार, दृष्टिकोण, भावनाओं और सम्पूर्ण जीवन की दिशा को बदला जा सकता हैं।
अब तो चिकित्सा विज्ञान ने भी बिहार योग या सत्यानंद योग का लोहा मान लिया है। इस योग के प्रवर्तक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के योग से रोग भगाने संबंधी अनुसंधानों को आधार बनाकर अगल-अलग देशों के चिकित्सकों व चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों ने अध्ययन किया और स्वामी जी के शोध नतीजों को कसौटी पर सौ फीसदी खरा पाया जा चुका है। बिहार योग विद्यालय की स्थापना के 50 साल पूरे होने पर मुंगेर में बीते साल विश्व योग सम्मेलन हुआ तो उसमें भी बिहार योग या सत्यानंद योग पर वैज्ञानिक अध्ययनों के प्रभावों पर भी खूब चर्चा हुई थी। उस सम्मेलन में 56 देशों के कोई दो हजार से ज्यादा ऐसे प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, जो अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल किए हुए हैं। योगोत्सवों के जरिए विश्व योग सम्मेलन के संदेश को भी जन-जन तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विश्लेषक हैं।)