भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और महाजन इमेजिंग के शोधकर्ताओं ने योगनिद्रा पर शोध किया तो उसके जो परिणाम आए हैं, उससे योगियों के दशकों पूर्व के दावों की पुष्टि हुई है। हालांकि वैज्ञानिकों को योगनिद्रा से अतींद्रिय शक्तियों के विकास संबंधी योगियों के दावों की पुष्टि करने के लिए अभी लंबी दूरी तय करनी होगी। पर, योगनिद्रा स्वस्थ्य के दृष्टिकोण से कितना महत्वपूर्ण है, इसकी पुष्टि भी आधुनिक युग के लिहाज से उपलब्धि ही है।
वैज्ञानिकों को शोध से जो परिणाम मिले, उसके मुताबिक योगनिद्रा अभ्यास के दौरान गहन विश्राम मिलता है। साथ ही जागरूकता में अभिवृद्धि होती है। शोध कार्य में भाग लेने वाले योगाभ्यासियों का एमआरआई कराया गया तो पता चला कि मस्तिष्क में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव हो गए थे, जो मानव को रुपांतरित करने में बहुत ही मददगार थे। वैज्ञानिकों को मस्तिष्क संचार पैटर्न में अंतर से यह समझने में मदद मिली कि योगनिद्रा मस्तिष्क के कार्यों को कैसे नियंत्रित करती है कि जागरूक रहते हुए गहन विश्राम संभव हो पाता है। शोध से यह भी पता चला कि योगनिद्रा अभ्यास की अवधि कम और ज्यादा होने का भी मस्तिष्क पर असर होता है। अवधि बढ़ने से मस्तिष्क की गतिविधि में परिवर्तन ज्यादा होता है। इस अध्ययन के लिए दो समूहों में तीस-तीस प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था। इस बात की फिर पुष्टि हुई कि योगनिद्रा से गहरे अवचेतन मन में दबे “संस्कारों” को सतह पर लाने में मदद मिलती है, जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह बड़े महत्व का होता है।
योग साधकों का भी अनुभव रहा है कि योगनिद्रा से मुख्यत: दो लाभ प्राप्त होते हैं। पहला, इसके अभ्यास से थकावट मिटती है और स्फूर्ति आती है। दूसरा, मानसिक तनाव दूर होता है तो मन-मस्तिष्क तनावरहित हो जाता है। इसके फलस्वरूप खुशी का हार्मोन सक्रिय हो जाता है। योगियों के इस अनुभव से विज्ञान भी सहमत है कि अवचेतन मन में दैनिक जीवन की जो अनुभूतियां एकत्र होती रहती हैं, उसके कारण आगे चलकर मन-मस्तिष्क पर हानिकारक असर पड़ता है। इसलिए योगी कहते हैं कि जिस प्रकार मकान को गंदगी से मुक्त रखने के लिए उसकी प्रतिदिन सफाई आवश्यक है, उसी प्रकार स्वस्थ व्यक्तित्व के लिए अवचेतन मन पर प्रतिदिन जमने वाले संस्कारों को हटाना जरूरी है। योगनिद्रा हमारी इस आवश्यकता की पूर्ति करती है। अवचेतन मन के अवरोधों को दूर कर यह हमें आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर करती है।
वैदिक ग्रंथों में योगनिद्रा का उल्लेख है। विष्णु भगवान की योगनिद्रा के बारे में भला कौन नहीं जानता? आधुनिक युग में परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने उसी योगनिद्रा को लोगों की जरूरतों के लिहाज से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया था। अच्छा है कि अब वैज्ञानिक भी योगनिद्रा की वैज्ञानिकता बताने में पीछे नहीं हैं। हम सब जानते हैं कि महर्षि पतंजलि ने योग को चित्तवृत्ति-निरोध के रूप में परिभाषित किया है। उससे पता चलता है कि मन की चेतन, अवचेतन एवं अचेतन अवस्थाएँ ही हमारा चित्त है, और हमारा व्यवहार हमारी चित्तवृत्तियों का ही परिणाम है। मन के इन तीनों आयामों की समग्र सजगता ही ‘अहं अस्मि’ अर्थात् ‘मैं हूँ’ की भावना है। जिस अवस्था में हम सजग तो रहते हैं, पर जागरूक नहीं होते कि हम सजग हैं, उस अवस्था का अनुभव योगनिद्रा में होता है, और हमारे भीतर परिष्करण की एक सूक्ष्म, किंतु निश्चित प्रक्रिया घटने लगती है।
योगनिद्रा की चमत्कारिक शक्ति के बारे में इस कॉलम में पहले भी चर्चा हुई है। बावजूद प्रत्याहार को शोध कर तैयार की गई इस योगनिद्रा विधि के जनक ब्रह्मलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के प्रवचनों और योग रिसर्च फाउंडेशन के दस्तावेजों पर गौर करें तो ऐसे तथ्यों का पता चलता है, जिनकी चर्चा प्राय: कम ही होती है। योग रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन के नतीजों पर गौर करें तो पता चलता है कि योगनिद्रा की नियमित साधना से अनिद्रा तो क्या कैंसर सहित अनेक घातक बीमारियों से उबरने में भी मदद मिल सकती है। दूसरी तरफ आपराधिक मनोवृत्तियों का भी शमन हो सकता है।
सबसे पहले सामान्य निद्रा और योगनिद्रा में अंतर समझिए। योगनिद्रा शब्द से प्राय: समझ लिया जाता है कि यह गहरी निद्रा में सोने का अभ्यास है, जबकि ऐसा नहीं है। इस अभ्यास के दौरान बार-बार यह संकल्प लेने का निर्देश दिया जाता है कि नींद में सोना नहीं है। दरअसल, जागृत और स्वप्न के बीच जो स्थिति होती है, उसे ही योगनिद्रा कहते है। जब हम सोने जाते हैं तो चेतना इन दोनों स्तरों पर काम कर रही होती है। हम न नींद में होते हैं और जगे होते हैं। यानी मस्तिष्क को अलग करके अंतर्मुखी हो जाते हैं। पर एक सीमा तक बाह्य चेतना भी बनी रहती है। वजह यह है कि हम अभ्यास के दौरान अनुदेशक से मिलने वाले निर्देशों को सुनते हुए मानसिक रूप से उनका अनुसरण भी करते रहते हैं। ऐसा नहीं करने से सजगता अचेतन में चली जाती है और मन निष्क्रिय हो जाता है। फिर गहरी निद्रा घेर लेती है, जिसे हम सामान्य निद्रा कहते हैं।
अब जानिए कि योगनिद्रा के दौरान मस्तिष्क किस तरह काम करता है? इस मामले में परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने अनुभवों से जो कुछ कहा था, विज्ञान ने लगभग उन्हीं तथ्यों पर मुहर लगाई है। उसके मुताबिक, गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। यही नहीं, योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है औऱ अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह साबित हुआ कि योगनिद्रा के दौरान बीटा औऱ थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है।
योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक योगनिद्रा में इतनी शक्ति है कि सुषुम्ना या केंद्रीय नाड़ी मंडल क्रियाशील रखकर पूरे मस्तिष्क को जागृत कर देता है। यह अवस्था ज्ञान अर्जन के लिए आदर्श स्थिति होती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि योगनिद्रा मानव को मिला अनुपम उपहार है। पर, जैसा कि परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहा करते थे कि मिर्गी या अवसाद के पुराने मरीजों को योगनिद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
(लेखक उषाकाल के संपादक व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)
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