योग की प्राचीन विद्या के पास मुधमेह की चिकित्सा का अधिक कारगर उपाय है, जो कि हजारों वर्ष पुराना है। यौगिक क्रियाओं द्वारा शरीर की आन्तरिक उत्पादन प्रक्रिया को पुनः सक्रिय कर शरीर-संरचना को संतुलित किया जा सकता है। बीसवीं सदी के महान योगी और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में इस बात की घोषणा की थी तो मरीजों से लेकर चिकित्सक तक चौंक गए थे। पर, स्वामी जी यहीं नहीं रुके थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक यौगिक क्रियाओं द्वारा मधुमेह का इलाज करने के उपरान्त एक पुस्तक प्रकाशित करके इन शक्तिशाली विधियों से मधुमेह पीड़ितों के साथ ही चिकित्सकों को भी अवगत कराया। इसके कोई छह दशकों बाद हाल ही मधुमेह पर योग के प्रभावों को जानने संबंधी जो वैज्ञानिक अध्ययन प्रकाश में आया हैं, उससे भी मधुमेह के उपचार में योग की महत्ता का पता चलता है।
देश के नामचीन चिकित्सा और योग संस्थानों के सामूहिक प्रयास से किया गया यह अध्ययन मधुमेह रोगियों के यौगिक उपचार के मामले में स्पष्ट और व्यापक है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (नीमहांस), स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान, मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के वैज्ञानिकों ने इस शोध को अंजाम दिया है। इस वैज्ञानिक उपलब्धि को अमेरिकी जर्नल “एडवांसेज” ने विस्तार से प्रकाशित किया है। अध्ययन दल में शामिल नीमहांस के वरीय चिकित्सक डॉ हेमंत भार्गव इस निष्कर्ष पर है कि योग शरीर और मन दोनों को संतुलित करता है। जीवनशैली में योग को शामिल करने से दवा पर निर्भरता घटाई जा सकती है और दीर्घकालिक ग्लाइसेमिक नियंत्रण पाया जा सकता है।
वहीं अध्ययन दल के एक अन्य प्रमुख सदस्य और डीएचआरसी, धनबाद (झारखंड) के निदेशक डॉ एनके सिंह कहते हैं – “यह अध्ययन भारत को विश्व में योग-आधारित मधुमेह नियंत्रण के अग्रणी केंद्र के रूप में स्थापित करता है। यह ‘मेड इन इंडिया, प्रूवन बाय साइंस’ का सशक्त उदाहरण है। योग और विज्ञान का यह संगम न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक संदेश है कि पारंपरिक योग पद्धति और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का समन्वय दीर्घकालिक रोग नियंत्रण का प्रभावी मार्ग बन सकता है। भारत, जहाँ योग की उत्पत्ति हुई, अब वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ यह संदेश दे रहा है कि योग केवल व्यायाम नहीं, एक समग्र चिकित्सा दर्शन है।”
इस अध्ययन में पूरे भारत के बारह शहरों से 1,200 से अधिक टाइप 2 डायबिटीज रोगियों को शामिल किया गया था। प्राणायाम, ध्यान, आसन, संतुलित आहार और तनाव-प्रबंधन तकनीको को आधार बनाकर प्रतिभागियों ने एक वर्ष तक योग आधारित जीवनशैली अपनाई। चिकित्सकों और योगियों की देखरेख में एक वर्ष तक अपनाई गई जीवन शैली के परिणाम बेहद सकारात्मक आए। ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (एचबीए1सी) में औसतन 1.25 फीसदी की गिरावट देखी गई, जिससे ग्लूकोज नियंत्रण में 22 फीसदी सुधार हुआ। डिप्रेशन स्कोर में उल्लेखनीय कमी आई, जिससे मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हुई। बॉडी मास इंडेक्स घटा, जिससे वजन नियंत्रण और मेटाबॉलिक दर में सुधार हुआ। थर्मोग्राफी और जीडीवी एनालिसिस से पता चला कि योग अभ्यास से शरीर की ऊर्जा प्रवाह और रक्त संचार में संतुलन बढ़ा। परिणाम स्वरुप, लगभग 18 फीसदी प्रतिभागियों में दवाओं की खुराक घटानी पड़ी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 7.7 करोड़ लोग इस बीमारी के शिकार हैं। वैश्विक पैमाने पर हर छठा भारतीय व्यक्ति इस रोग की गिरफ्त में हैं। हालात जब इतने चिंताजनक हैं तो मधुमेह पर यह अध्ययन बेहद उम्मीद जगाता है। भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधकर्ताओं की बहु-विषयक टीम के अध्ययन का सार यह है कि आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान समन्वित योग यानी षट्कर्म, आसन, प्राणायाम और सजगता के नियमित अभ्यासों के साथ सामंजस्य बैठाकर मधुमेह जैसी जटिल जीवनशैली-जनित बीमारी के नियंत्रण में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता है।
बिहार योग पद्धति में मधुमेह के मरीजों को शुद्धिकरण की क्रियाओं में शंखप्रक्षालन तथा कुंजल व नेति; आसनों में पश्चिमोत्तानासन, अर्द्ध मत्स्येंद्रासन, भुंजगासन, धनुरासन, सर्वांगासन और हलासन; प्राणायामो में नाड़ी शोधन, भ्रामरी और भस्त्रिका और ध्यान के अभ्यासों में योगनिद्रा व अजपाजप करने की सलाह दी जाती है। साप्ताहिक अभ्यास में पवनमुक्तासन पर बल दिया जाता है। ऐसा इसलिए कि कभी योगाभ्यास नहीं करने वाले मरीजों को योग करने योग्य तैयार किया जा सके। यह आसन वातरोग, गठिया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग के मरीजों को भी काफी फायदा पहुंचाता है।
मधुमेह की रोकथाम में शंखप्रक्षालन और कुंजल क्रियाओं की बड़ी भूमिका होती है। आमतौर पर अंतड़ियों में कचरा और मल भरा रहता है उसके भीतरी दीवारों पर इकट्ठा होता जाता है। यह सूखकर खून को विषाक्त बनाता है। इन यौगिक क्रियाओं से अन्न पथ की पूर्ण सफाई हो जाती है और अधिक ग्लुकोज का उपभोग न किया जाए तो ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। कुंजल क्रिया से अधिक मात्रा में खाए हुए भोजन और शरीर में सड़े भोजन से बचाव होता है। मधुमेह में तंत्रिका तंत्र को क्षति होती है। डायबिटिक पेरिफेरल न्यूरोपैथी इसी वजह से होती है। आसन का प्रभाव यह है कि तंत्रिका आवेगों और ग्रंथि क्षेत्रों में रक्त के समुचित वितरण हो जाता है। इससे मधुमेह से संबंधित अवयवों की क्रियाएं समायोजित होती हैं। प्राणायाम से शरीर के उन भागों में ऊर्जा पहुंचने लगती है, जहां इसकी कमी की वजह से रोग में इजाफा हो रहा होता है। मस्तिष्क से ले कर पैक्रियाज तक को फायदा पहुंचता है।
ताजा वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि ध्यान से हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-अधिवृक्क अक्ष को संतुलित करने में मदद करता है। यह वही प्रणाली है, जो हमारे तनाव और हार्मोन संतुलन को नियंत्रित करती है। जब कोई व्यक्ति लगातार तनाव में रहता है, तो शरीर में कोर्टिसोल नामक हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। यह कोर्टिसोल ही धीरे-धीरे शरीर के ग्लूकोज संतुलन को बिगाड़ता है। ध्यान के अभ्यासों जैसे अजपा जप जैसी क्रियाओं के अभ्यास से अनुकम्पी तन्त्रिका-तन्त्र शान्त और शिथिल होता है। योगनिद्रा के अभ्यास से हाइपोथैलेमस प्रभावित होता है। इससे पिट्यूटरी ग्रंथि का स्त्राव नियमित होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में योग की जन्मभूमि से कलंक समान मधुमेह से मुक्ति मिलेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

