आधुनिक यौगिक व तांत्रिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत तथा इस शताब्दी के महानतम संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय व विश्व योगपीठ के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनूठी मिसाल हैं। जो लोग सत्यानंद योग परंपरा के करीब नहीं हैं, उन्हें यह बात चौंकाने वाली लग सकती है कि मुंगेर स्थित शाही जामा मस्जिद के इमाम रहे अब्दुल्लाह बुखारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के परम मित्र रहे हैं।
मुंगेर में सन् 2013 में जब अभूतपूर्व विश्व योग सम्मेलन हुआ था तो स्वामी जी ने अतिथियों से पहले ईश्वर को धन्यवाद देते हुए मक्का-मदीना को भी न केवल याद किया और धन्यवाद दिया था, बल्कि उन्होंने बुखारी साहब के हाथों अरबी भाषा में अपना पैगाम शुकराना के तौर पर मक्का-मदीन भेजा था। इस उम्मीद के साथ कि परवरदिगार के दरबार में यह जरूर कबूल होगा। यहां प्रस्तुत है अरबी भाषा में लिखा गया सदशुक्र खत और उसका हिंदी अनुवाद।
अस्सलाम अलै कुम,
मैं खैरियत से रहकर खुदावन्द करीम का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि बिहार योग विद्यालय, योग के मुतअलिक अवलीन, जानी-मानी व मशहूर अदारह है। तमाम मुल्क के तालिब-ए-इल्म यहाँ आकर योग मश्क की तालीम उस्ताद की निगरानी में सीखते हैं, जो इंसान की सेहत को ठीक रखने में मुआविन है। साथ ही जेहन व जज्बात के लिये भी बेहतर है।
इंसान की खिदमत करने के लिये ही हमारे आला उस्ताद स्वामी शिवानंद जी ने दुनिया के लोगों को योग का तआरुफ कराया। सन् 1953 में योग का पहला जलसा ऋषिकेश (हिन्दुस्तान) में हुआ था। उसके बाद से हर बीस बरस के वक्फे में यह योग का जलसा बीन अल कवामी कान्फेरेंस के तौर पर मनाया जाता है। इस सिलसिले में स्वामी शिवानंद जी के गद्दी नशीन स्वामी सत्यानंद जी ने सन् 1973 में मुंगेर (हिन्दुस्तान) में यह जलसा किया। सन् 1973 के बाद ही योग एक तहरीक के तौर पर फैल गया। इसके बाद अल्लाह की मेहरबानी से इस नाचीज को दूसरा बीन अल कवामी कान्फरेंस सन् 1993 मुंगेर में करने का मौका मिला। बीस बरस के बाद दोबारह सन् 2013 में यह कान्फरेंस हुआ, जिसमें ‘बिहार योग विद्यालय’ के पचास बरस पूरे होने का जश्न भी मनाया गया। स्वामी सत्यानंद जी ने इंसान के इल्म के दायरे को बढ़ाने के लिये योग की अशाअत ही थी। मुआशरे की जरूरतों को समझने के लिये हिन्दुस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका और पाकिस्तान से लेकर बर्मा तक का सफर किया और जायजह लिया। इसके बाद मुंगेर में आकर ‘बिहार योग विद्यालय’ कायम किया।
आज अक्टूबर सन् 2013 में यह जलसा बहुत ही बड़े पैमाने पर शानों-शौकत के साथ हुआ, जिसमें 56 मुल्कों के 20,000 से ज्यादा लोगों ने शिरकत की। 23 से 27 अक्टूबर तक हुये इस कान्फरेंस को पूरी दुनिया ने इस्तकबाल किया। इसमें योगी, डॉक्टर, साइंस दा, फनकार और आलिम व आम जनता वगैरह शामिल हुये। सन् 1963 में ‘बिहार योग विद्यालय’ के कयाम के वक्त स्वामी सत्यानंद जी ने पेशगोई की थी कि ‘योग आज की जरूरत और कल की तहजीब होगी और दुनिया के वाकियात को मुतासिर करेगी।’
आज उनके ये लफ्ज अल्लाह के रहमो-करम से सच साबित हो रहे हैं जिसके लिये मैं खुदावन्द करीम का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूँ।
मैं अपने आपको खुशनसीब समझ रहा हूँ कि मेरी खिदमत और खुदा के बन्दों में मुहब्बत भरा यह पैगाम खुदा के दरबार में पहुँच रहा है, जहाँ खुदा की रहमत हर पल बरसती रहती है और उसके महबूब पैगम्बर मोहम्मद साहब के दरबार में शहर मदीना में पहुंचायी जा रही है। खुदा तआला इसे बामेहरबानी कुबूल करें। आमीन !
नाचीज
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर