भारत में कोविड-19 के मामले एक बार फिर तेजी से बढ़ रहे हैं। चार साल पहले इस अनजान बीमारी ने लाखों लोगों की जान ली थी, और आज भी इसके दंश को लोग झेल रहे हैं। एक तरफ फेफड़े की बीमारियां तेजी से बढ़ गई तो दूसरी ओर हृदयाघात आम बात हो गई है। ऐसे में, फिर से कोरोना ने दस्तक दी है तो चिंता की लकीरें खिंच जाना वाजिब ही है। इसके साथ ही योग को फिर से एक प्रभावी हथियार के रूप में देखा जाने लगा है। इसलिए कि कोरोनाकाल में षट्कर्मों में विशेष तौर से नेति व कुंजल, आसन, प्राणायाम की दो-तीन विधियों और योगनिद्रा जैसे सुरक्षित, सुलभ व वैज्ञानिक उपायों की वजह से लाखों लोगों को राहत मिली थी।
भारत के योगी तो सदियों से योग की महिमा बताते रहे हैं। कोरोना महामारी के अनुभवों के आधार पर चिकित्सा विशेषज्ञ भी मान रहें हैं कि नियमित योगाभ्यास इस महामारी से बचाव और तेजी से रिकवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ‘जर्नल ऑफ अल्टरनेटिव एंड कॉम्प्लिमेंट्री मेडिसिन’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, नियमित योगाभ्यास खासतौर से नेति-कुंजल, आसन, प्राणायाम और योगनिद्रा जैसी प्रत्याहार क्रिया का अभ्यास करने वालों में कोविड-19 के लक्षण गंभीर नहीं थे, और उनकी तेेजी से रिकवरी हुई थी। स्पष्ट है कि ये क्रियाएं श्वसन तंत्र को मजबूत करने और संक्रमण से बचाव में सहायक थीं। इसलिए, इस लेख में योग की इन विधाओं के महत्व, उनके वैज्ञानिक आधार, और सावधानियों की चर्चा होगी।
पहले बात प्राणायाम की। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की प्राणायाम पर एक चर्चित पुस्तक है – “प्राण और प्राणायाम”। इसमें बताया गया है कि किस तरह प्राणायाम केवल श्वास का व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन-ऊर्जा के नियमन की एक प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति है। मानव सामान्य अवस्था में हर मिनट लगभग 15 बार श्वास लेता है। श्वास में 20 फीसदी ऑक्सीजन, 79 फीसदी नाइट्रोजन और 0.04 फीसदी कार्बन-डाइऑक्साइड होता है। नाइट्रोजन की तो कोई भूमिका नहीं, लेकिन ऑक्सीजन हमारे लिए जीवनदायिनी है। जब हम श्वास छोड़ते हैं तो ऑक्सीजन घटकर 16 फीसदी और कार्बन-डाइऑक्साइड बढ़कर 4.04 फीसदी हो जाता है। श्वास छोड़ते समय नमी और गर्मी भी बाहर निकलती है, जिससे शरीर का तापमान 20 फीसदी कम हो जाता है। स्पष्ट है कि श्वास लेना केवल एक स्वचालित क्रिया नहीं, बल्कि एक जटिल जैविक प्रक्रिया है, जो ऑक्सीजन को शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचाकर ऊर्जा प्रदान करता है और कार्बन-डाइऑक्साइड जैसे अपशिष्ट को बाहर निकालता है।
योग के मनीषियों ने श्वास को जीवन की कुंजी माना। योग चूड़ामणि उपनिषद में कहा गया है कि जिस प्रकार सिंह, बाघ और हाथी को धीरे-धीरे वश में कर लिया जाता है, उसी प्रकार प्राण को भी धीरे-धीरे नियंत्रित करना चाहिए। इसके लिए शुरुआत नाड़ी शोधन प्राणायाम से करनी चाहिए। नाड़ियों में अवरोध बने रहने से किसी भी प्राणायाम का समुचित लाभ मिल पाना संभव नहीं होता। नाड़ी शोधन प्राणायाम एक प्रभावी और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित योग विधि है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और ऊर्जा संतुलन में सुधार होता है। इसके नियमित अभ्यास से तनाव, पाचन समस्याएं, श्वसन संबंधी विकार, और हृदय स्वास्थ्य में लाभ होता है। साथ ही पूरे अभ्यास के दौरान सजगता बनी रहनी चाहिए। ताकि ध्यान श्वास पर रहे। नाड़ी शोधन प्राणायाम से पहले षट्कर्म और कुछ आसनों का अभ्यास जरूर कर लेना चाहिए। योगी कहते हैं कि यदि साधक नया हो तो नाड़ी शोधन प्राणायाम में सीधे प्रवेश करना ज्यादा फलदायी नहीं होता। “प्राण और प्राणायाम” पुस्तक में कहा गया है कि नए अभ्यासियों को पहले उदर श्वसन का अभ्यास कर लेना चाहिए।
उदर श्वसन या पेट से सांस लेना एक प्राकृतिक और प्रभावी श्वसन विधि है। इसमें मध्यपट (डायफ्रॉम) नामक गुंबद जैसी मांसपेशी काम करती है, जो फेफड़ों को पेट की गुहा से अलग करती है। सांस लेते समय यह मध्यपट नीचे की ओर जाता है, जिससे पेट के अंग बाहर की ओर फैलते हैं, और सांस छोड़ते समय ऊपर उठता है, जिससे पेट अंदर की ओर सिकुड़ता है। मध्यपट की सही गति यह दर्शाती है कि फेफड़ों के निचले भाग का अच्छी तरह उपयोग हो रहा है। इससे फेफड़ों की सभी कूपिकाएँ अच्छी तरह फैलती हैं, लसीका प्रणाली बेहतर काम करती है, और यकृत, आँतें और अन्य उदरस्थ अंग मालिश पाकर स्वस्थ रहते हैं। साथ ही हृदय को लाभ पहुंचता है और रक्त में ऑक्सीजन का संचार बेहतर होता है। हालांकि तनाव, गलत बैठने की आदतें और कसे हुए कपड़े इस श्वसन को प्रभावित करते हैं, फिर भी इसे अपनी दैनिक जीवन-शैली में शामिल करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार होता है। इस प्राणायाम के महत्व का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके प्रभाव को जानने के लिए सैकड़ो वैज्ञानिक शोध किए जा चुके हैं।
अब बात योगनिद्रा की। वैदिक शास्त्रों में योगनिद्रा का उल्लेख है। विष्णु भगवान की योगनिद्रा के बारे में भला कौन नहीं जानता? आधुनिक युग में परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने उसी योगनिद्रा को लोगों की जरूरतों के लिहाज से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया था। अब तो वैज्ञानिक भी योगनिद्रा के फायदे बताने में पीछे नहीं हैं। कुछ साल पहले ही नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान ने बिहार योग विद्यालय के सहयोग से योगनिद्रा पर अध्ययन किया था। इन चिकित्सा विज्ञानियों ने देखा कि गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। यही नहीं, योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है और अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह साबित हुआ कि योगनिद्रा के दौरान बीटा और थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है। बिहार योग विद्यालय के अधीन संचालित योग रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार, उच्च रक्तचाप में योगनिद्रा उज्जायी प्राणायाम से अधिक प्रभावी पाई गई। इससे न केवल ब्लड प्रेशर बल्कि हार्ट रेट भी संतुलित हुआ। योगनिद्रा से दवा निर्भरता कम हुई और कई मरीजों की दवाएं पूरी तरह बंद हो गईं। इन उपलब्धियों से योगनिद्रा के महत्व का पता चलता है।
षट्कर्मों का महत्व भी गौरतलब है। योग शास्त्र में वर्णित षट्कर्म (छः शुद्धि क्रियाएँ) शरीर और मन की शुद्धि के प्राचीन व वैज्ञानिक उपाय हैं। इनमें नेति और कुंजल क्रियाएँ श्वसन और पाचन तंत्र की शुद्धि से जुड़ी हुई हैं, जिनका आज के युग में भी विशेष महत्व और मान्यता है। नेति क्रिया मुख्यतः नासिका मार्ग की शुद्धि के लिए की जाती है। नेति क्रिया नासिका में जमे धूल, श्वास के जरिए नाक में पहुंचे हुए फूलों के सूक्ष्म कण यानी परागकण, कफ एवं अन्य अवरोधकों को दूर करती है। आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, नेति क्रिया त्रिकुटि क्षेत्र (भृकुटि के बीच का स्थान) को भी सक्रिय करती है, जिससे पीनियल और पिट्यूटरी ग्रंथियाँ उत्तेजित होती हैं। इससे मानसिक थकान दूर होती है और ध्यान लगाना आसान होता है। कुंजल क्रिया में गुनगुना नमकीन जल पीकर उसे स्वेच्छा से वमन के द्वारा बाहर निकाला जाता है। यह क्रिया आमाशय की शुद्धि के लिए की जाती है। आज के खानपान के कारण पेट में अम्लता, अपच और एसिड रिफ्लक्स जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं। कुंजल क्रिया से पेट की दीवारों पर जमा अशुद्धियाँ और अतिरिक्त अम्ल बाहर निकलता है, जिससे राहत मिलती है।
परंपरागत योग के संतों की वाणी और वैज्ञानिक अध्ययनों के संदेशों के आधार पर कहा जा सकता है कि यौगिक अभ्यास कोरोना संक्रमण से बचाव और संक्रमित होने पर उनसे त्वरित छुटकारा पाने के लिए बेहद कारगर है। चार साल पहले कोरोना महामारी के दौरान भी योगाभ्यासियों का अनुभव कुछ ऐसा ही रहा। इसलिए संकटमोचक योग को दिनचर्या में शामिल कर लेना समय की मांग है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)