- Homepage
- News & Views
- Editor’s Desk
- Yoga
- Spirituality
- Videos
- Book & Film Review
- E-Magazine
- Ayush System
- Media
- Opportunities
- Endorsement
- Top Stories
- Personalities
- Testimonials
- Divine Words
- Upcoming Events
- Public Forum
- Astrology
- Spiritual Gurus
- About Us
Subscribe to Updates
Subscribe and stay updated with the latest Yoga and Spiritual insightful commentary and in-depth analyses, delivered to your inbox.
Author: Kishore Kumar
Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com
वेदान्त के प्रकाशपुंज: जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य
आद्य गुरू शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई दशनामी संन्यास परंपरा – भारत की वैदिक विरासत का आध्यात्मिक स्तम्भ है। इस गौरवशाली परंपरा ने न केवल भारतवर्ष की वैदिक संस्कृति को जीवित रखा, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग भी दिखाया। उनके द्वारा शुरू की गई दशनामी संन्यास परंपरा – भारत की वैदिक विरासत का आध्यात्मिक स्तम्भ है। इस गौरवशाली परंपरा ने न केवल भारतवर्ष की वैदिक संस्कृति को जीवित रखा, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग भी दिखाया। आधुनिक युग में इस परंपरा के अमर दीपक स्वामी विवेकानंद और स्वामी शिवानंद सरस्वती जैसे अनेक ऐसे महापुरुषों…
आसन और प्राणायाम तो योग के अंग हैं, समग्र योग नहीं
हम अक्सर सोचते हैं कि योग मतलब सिर्फ आसन और प्राणायाम। लेकिन योग इससे कहीं ज्यादा है। योग का असली मतलब है—शरीर, मन और भावनाओं में तालमेल। यानी, सामंजस्य। अगर शरीर बीमार है, तो उसे ठीक करना होगा। अगर मन अशांत है, तो उसे शांत करना होगा। बिना सामंजस्य के जीवन अधूरा है।हम योग शुरू करते हैं शरीर से। क्यों? क्योंकि शरीर को हम सबसे बेहतर समझते हैं। दर्द हो, जकड़न हो, या बीमारी—हमें तुरंत पता चलता है। इसलिए, आसन, प्राणायाम और हठ योग के अभ्यास से हम शरीर को संतुलित करते हैं। जब शरीर ठीक होता है, तो मन…
परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती
बीसवीं सदी के महानतम संत और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती पंद्रह साल पूरे होने को हैं। उन्होंने पांच दिसंबर की मध्यरात्रि में महासमाधि ली थी। शिष्यों से वादा करके गए थे – “आऊंगा जरूर, रिटर्न टिकट लेकर जा रहा हूं।“ उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती तो सदैव उनकी दिव्य उपस्थिति महसूस करते हैं। पर, दुनिया भर में फैले शिष्यों की आंखें अपने गुरु को बाल रूप में सर्वत्र तलाशती रहती हैं। किसी भूखे-नंगे बच्चे की आंखें या मुख परमहंस जी से मिलती-जुलती दिख जाए तो भावनाएं हिलोरे लेने लगती हैं कि…
योग का ऑक्सफोर्ड है बिहार योग विद्यालय
बिहार योग विद्यालय उस सुगंधित पुष्प की तरह है, जिसकी खुशबू सर्वत्र फैल रही है। उसकी विलक्षणताओं की वजह से इंग्लैंड सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार “द गार्जियन” ने इसे पूर्व की तरह पहले स्थान पर रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चयनित चार योग संस्थानों में बिहार योग विद्यालय भी है। प्रधानमंत्री पुरस्कार से पहले ही सम्मानित किया जा चुका है। इस संस्थान के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है, जो भारत सरकार द्वारा दिया…
भ्रांतियां दूर हुईं तो बढ़ी श्री चित्रगुप्त भगवान की स्वीकार्यता, भारत-नेपाल में अवतरण दिवस की धूम
भारत और नेपाल में श्री चित्रगुप्त अवतरण दिवस (12 अप्रैल 2025) पर अनुष्ठान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों का इतिहास बन गया। आधुनिक युग में संभवत: पहली बार श्री चित्रगुप्त भगवान कायस्थों ही नहीं, बल्कि अन्य जातियों के लिए भी सहज स्वीकार्य बनें और अनेक स्थानों पर सभी ने मिलकर व्यापक रूप से उनकी पूजा-अर्चना की। भारत-नेपाल में जिस उत्साह के साथ अवतरण दिवस मनाया गया, वह इस बात का जीवंत उदाहरण है कि नई पीढ़ी में श्री चित्रगुप्त भगवान को लेकर बनी भ्रांतियां दूर हो रही हैं। वजहें तो कई हो सकती हैं। पर, प्रमुख वजह श्री चित्रगुप्त भगवान के…
“नाथ संप्रदाय”: हजारी प्रसाद द्विवेदी की कालजयी कृति
“नाथ संप्रदाय” नामक पुस्तक हजारी प्रसाद द्विवेदी की एक ऐसी कालजयी कृति है, जिसमें उन्होंने गोरखनाथ और उनके संप्रदाय को न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक संदर्भ में, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में भी प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी विद्वता और संवेदनशीलता के साथ इस संप्रदाय की ऐसी गहन पड़ताल की, जिससे यह पुस्तक भारतीय दर्शन और साहित्य के अध्येताओं के लिए अमूल्य बन गई।गोरखनाथ को एक योगी, समाज सुधारक, और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में चित्रित करते हुए द्विवेदी जी ने दिखाया कि नाथ संप्रदाय ने मध्यकालीन भारत में योग, तंत्र, और भक्ति के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन…
सेवा, विनय, धर्म और निष्ठा का सन्मार्ग दिखाते श्री हनुमान
श्री हनुमान जी बोले तो ऐसे, मानो हम सबको सन्मार्ग दिखा रहे हों श्री हनुमान जी बोले तो ऐसे, मानो हम सबको सन्मार्ग दिखा रहे हों श्री हनुमान जी बोले तो ऐसे, मानो हम सबको सन्मार्ग दिखा रहे हों हनुमान जयंती की शुभकामनाएं। हम सब जानते हैं कि श्रीराम जी के साथ श्री हनुमान जी का पावन, अनुपम और अद्वितीय संबंध है। तभी उनके श्रीमुख से निकला, “शारीरिक रूप से मैं प्रभु का सेवक हूँ, मानसिक रूप से वह मेरे मित्र हैं और आध्यात्मिक रूप से वह और मैं एक ही हैं।” आइए, इस खास मौके पर इस कथन का…
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में अतिमानसी चेतना
विलियम आर्थर की बर्बरता से तो हम सब परिचित हैं ही। ये वही अंग्रेज अधिकारी हैं, जो 1942 में पटना में जिला मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत थे और उनकी बर्बरता के कारण भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अहिंसक आंदोलन कर रहे सात छात्रों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी। इस लेख का विषय बेशक यह नहीं है, बल्कि महान योगी श्री अरविंदों के वैदिक ज्ञान के आलोक में वैदिक ज्ञान की महत्ता और सुपरमाइंड की संभावना बतलाना है। ताकि युवापीढ़ी में भारत के प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान की समझ बने और उसके पुनर्जनन में उसका योगदान हो। पर…
श्री चित्रगुप्त : अनकही कथाएं, अभिनव मीमांसा
श्रीराम का अवतरण सूर्यवंश (इक्ष्वाकु वंश) में हुआ था, जो क्षत्रिय कुल माना जाता है। श्रीकृष्ण का अवतरण यदुवंश (चंद्रवंश) में हुआ था। हालांकि, उनका पालन-पोषण गोकुल में नंद और यशोदा के द्वारा एक ग्वाला (यादव) परिवार में हुआ, लेकिन उनकी वंशावली चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थी। पर, क्या हमने उन्हें किसी जातीय दायरे में रखने की कभी कोशिश की? नहीं। फिर श्री चित्तगुप्त या श्री चित्रगुप्त, जिन्हें ब्रह्मा जी के चित्त (मन) या काया (शरीर) से अवतरण और ब्रह्मा जी के आदेश से ही भूलोक यानी पृथ्वी पर विशेष उद्देश्य से प्रकटीकरण माना जाता है और जो पाप-पुण्य का लेखा-जोखा…
राम राम सब जगत बखाने, आदि राम कोई बिरला जाने
स्वामी सत्यानंदजी महाराज देश में आर्यसमाज के बड़े आध्यात्मिक नेता थे। सन् 1925 में उन्हें दयानंद जन्मशताब्दी समारोह के दौरान एकांतवास करने की आंतरिक प्रेरणा हुई। चले गए डलहौजी। साधना के दौरान ब्यास पूर्णिमा की रात उन्हें “राम” शब्द बहुत ही सुंदर और आकर्षक स्वर में सुनाई दिया। फिर आदेशात्मक शब्द आया – राम भज…राम भज…राम भज। स्वामी सत्यानंदजी महाराज समझ गए कि श्रीराम की अनुकंपा हो चुकी है। इस तरह वे आर्यसमाज से नाता तोड़कर पूरी तरह राम का गुणगाण करने में जुट गए। इसके बाद “राम शरणम्” नाम से संस्था बनाई, जिसका प्रभाव आज भी खासतौर से उत्तर…
IMAPORTANT LINKS
Subscribe to Updates
Subscribe and stay updated with the latest Yoga and Spiritual insightful commentary and in-depth analyses, delivered to your inbox.