Author: Kishore Kumar

Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com

विदुषी तोमर //ग्यारह मई मेरे जीवन की उन दुर्लभ स्मृतियों में से एक बन गया है, जिसे मैं शब्दों में समेटने की कोशिश तो कर रही हूँ, पर शायद ये अनुभव शब्दों से कहीं आगे की बात हैं।हमने दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में बिहार स्कूल ऑफ योग द्वारा आयोजित साधना सत्र में भाग लिया। जैसे ही उस पावन परिसर में कदम रखा, लगा जैसे किसी और ही लोक में प्रवेश कर लिया हो—वहाँ की शांति, वहाँ के लोग, वहाँ का वातावरण… सब कुछ भीतर तक छू गया। हर चेहरा एक अलग तरह की शांति बिखेर रहा था। वहाँ कोई भी…

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मनुष्य की अनूठी क्षमता है कि वह अपने विचारों के अनुरूप परिवर्तित हो सकता है। जीवन में दो प्रक्रियाएँ हैं, बनना यानी साधना के माध्यम से नए गुण अपनाना और होना यानी उन गुणों की अभिव्यक्ति। व्यक्तित्व का निर्माण समाज, संस्कृति, शिक्षा और प्रकृति की छह शक्तियों यथा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद व मात्सर्य से होता है। ये शक्तियां शुरू में मित्र के रूप में व्यक्तित्व को आकार देती हैं, लेकिन अनियंत्रित होने पर शत्रु बन जाती हैं। जब मन और आत्मा का संबंध जुड़ता है, तो ये शक्तियाँ विकास में बाधक लगने लगती हैं। संयम के माध्यम से इन्हें नियंत्रित, संशोधित और उत्कृष्ट किया जा सकता है। कैसे? क्या घंटों…

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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस अगले महीने ही है। उसे व्यापक स्तर पर मनाने की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं। जोर इस बात पर है कि शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए योगाभ्यास किया जाना चाहिए। योग के जरिए ईश्वरानुभूति की बात आम आदमी के संदर्भ में बेमानी प्रतीत होती है, इसलिए यह मुद्दा गौण प्राय: ही है। पर बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती और योग की कुछ अन्य परंपराओं के साधक सदैव योग का अंतिम लक्ष्य ईश्वर-दर्शन मानते रहे हैं। आज भी स्वामी सत्यानंद सरस्वती, स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, स्वामी नित्यानंद आदि योग परंपराओं में योग का…

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हर महान यात्रा में एक नया मोड़ आता है। योग के द्वितीय अध्याय के रुप में वह मोड़ आ चुका है, जो अभी-अभी अपने प्रारंभिक कदमों के साथ विश्व के सामने उभर रहा है। जब भगवान राम को वनवास का आदेश मिला था, तो वह एक मोड़ था, नया अध्याय था, जो उन्हें राजसुख छोड़कर सत्य, धर्म और सेवा के पथ पर ले गया। उनकी यह यात्रा केवल व्यक्तिगत त्याग की नहीं, बल्कि समाज के कल्याण और अधर्म पर धर्म की विजय की थी। इसी तरह योग के मामले में भी एक नया मोड़ आया तो नए अध्याय की शुरुआत…

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जब मनुष्य अपने आत्मस्वरूप — सत्य, करुणा और विवेक से विमुख हो जाता है, तब वह हिंसा और विनाश के पथ पर बढ़ता है। आतंकवाद इसी आत्म-विमुखता का चरम रूप है। यह केवल एक राजनीतिक षड्यंत्र या सामाजिक विद्रोह नहीं, बल्कि उस सनकी मनोभाव का विस्फोट है, जिससे घृणा, क्रोध और वैचारिक कट्टरता मनुष्य की चेतना पर पूरी तरह हावी हो जाते हैं।आतंकवाद केवल एक सामाजिक या राजनीतिक समस्या नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक विकृति है। यह घृणा, क्रोध, और वैचारिक कट्टरता से उपजा वह सनकी मनोभाव है, जो संज्ञानात्मक पक्षपात और भावनात्मक असंतुलन का शिकार होकर तर्क,…

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अब यह कोई रहस्य नहीं रहा कि आधुनिक जीवन की जटिलताओं में ध्यान यानी मेडिटेशन मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुलन का सरल, प्रभावी उपाय है। चाहे मानसिक तनाव कम करना हो, एकाग्रता बढ़ानी हो, भावनात्मक संतुलन बनाना हो, स्वास्थ्य जीवन जीना हो या आत्म-खोज के मार्ग पर आगे बढ़ना हो, ध्यान ही इन सबकी कारगर और आजमायी हुई दवा है।जीवन में ध्यान घटित हो, इसके लिए हमारे संतों और योगियों ने अनेक मार्ग सुझाए, अनेक विधियां बतलाई, जो उनके अनुभवों पर आधारित हैं और आधुनिक विज्ञान भी उन विधियों की पुष्टि करता है। पर, आज पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) है…

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भारतीय वैदिक ग्रंथों के संदेश पूरी प्रामाणिकता के साथ धरोहर के रूप में संरक्षित रहे, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? भारत कभी विश्व गुरू अपनी बौद्धिक धरोहर की बदौलत ही था। आधुनिक युग में भी हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी धरोहर को न केवल संरक्षित करें, बल्कि उसे गर्व के साथ विश्व पटल पर स्थापित करें। इस लिहाज से विश्व धरोहर दिवस (18 अप्रैल) के मौके पर श्रीमद्भागवत गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र का यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना वाकई गौरव की बात है। वैसे, यह पहला मौका…

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आद्य गुरू शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई दशनामी संन्यास परंपरा – भारत की वैदिक विरासत का आध्यात्मिक स्तम्भ है। इस गौरवशाली परंपरा ने न केवल भारतवर्ष की वैदिक संस्कृति को जीवित रखा, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग भी दिखाया। उनके द्वारा शुरू की गई दशनामी संन्यास परंपरा – भारत की वैदिक विरासत का आध्यात्मिक स्तम्भ है। इस गौरवशाली परंपरा ने न केवल भारतवर्ष की वैदिक संस्कृति को जीवित रखा, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग भी दिखाया। आधुनिक युग में इस परंपरा के अमर दीपक स्वामी विवेकानंद और स्वामी शिवानंद सरस्वती जैसे अनेक ऐसे महापुरुषों…

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हम अक्सर सोचते हैं कि योग मतलब सिर्फ आसन और प्राणायाम। लेकिन योग इससे कहीं ज्यादा है। योग का असली मतलब है—शरीर, मन और भावनाओं में तालमेल। यानी, सामंजस्य। अगर शरीर बीमार है, तो उसे ठीक करना होगा। अगर मन अशांत है, तो उसे शांत करना होगा। बिना सामंजस्य के जीवन अधूरा है।हम योग शुरू करते हैं शरीर से। क्यों? क्योंकि शरीर को हम सबसे बेहतर समझते हैं। दर्द हो, जकड़न हो, या बीमारी—हमें तुरंत पता चलता है। इसलिए, आसन, प्राणायाम और हठ योग के अभ्यास से हम शरीर को संतुलित करते हैं। जब शरीर ठीक होता है, तो मन…

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बीसवीं सदी के महानतम संत और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती पंद्रह साल पूरे होने को हैं। उन्होंने पांच दिसंबर की मध्यरात्रि में महासमाधि ली थी। शिष्यों से वादा करके गए थे – “आऊंगा जरूर, रिटर्न टिकट लेकर जा रहा हूं।“ उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती तो सदैव उनकी दिव्य उपस्थिति महसूस करते हैं। पर, दुनिया भर में फैले शिष्यों की आंखें अपने गुरु को बाल रूप में सर्वत्र तलाशती रहती हैं। किसी भूखे-नंगे बच्चे की आंखें या मुख परमहंस जी से मिलती-जुलती दिख जाए तो भावनाएं हिलोरे लेने लगती हैं कि…

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