Author: Kishore Kumar

Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com

किशोर कुमार // हम सब मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान से तो परिचित हैं ही। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन एकमात्र स्वायत्तशासी संगठन है, जिसका उद्देश्य एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में योग अनुसंधान, योग चिकित्सा, योग प्रशिक्षण और योग शिक्षा को बढ़ावा देना है। नई पीढ़ी के ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगा कि योग के इस मंदिर की स्थापना महान योगी स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की परिकल्पना औऱ उनके श्रमसाध्य प्रयासों का प्रतिफल है। तब यह विश्वायतन योगाश्रम के रूप में जाना जाता था। पर मैं आज स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की जीवनी भी लिखने नहीं बैठा हूं।…

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अध्यात्म जीवन को नियंत्रित नहीं, बल्कि रूपांतरित कर देता है। दुनिया भर में यह समझ जैसे-जैसे बढ़ रही है, फिल्मकारों की रूचि भी इन विषयों में बढ़ती जा रही हैं। आध्यात्मिक फिल्मों के निर्माण के प्रति बढ़ती रूचि को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। हाल ही भारत में एक फिल्म रिलीज हुई है – कर्तम् भुगतम्। यानी जो जैसा करेगा, वैसा ही फल पाएगा। हालांकि इस फिल्म में कर्म सिद्धांतों पर उस तरह फोकस नहीं है, जैसा कि किसी आध्यात्मिक साधक की अपेक्षा हो सकती है। इस फिल्म में जादू-टोने से अगाह करते हुए बताने की कोशिश है कि…

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पुनर्जन्म होता है, इसके उदाहरण अक्सर मिलते रहते हैं। बंगलुरू स्थित नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइसेंज (नीमहांस) के वरीय मनोचिकित्सक डॉ सतवंत के पसरीचा सन् 1974 से ही पूर्व जन्म की घटनाओं का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने अब तक पांच सौ से ज्यादा मामलों का अध्ययन किया है। उनका निष्कर्ष है कि पांच साल तक की उम्र के सत्तर फीसदी बच्चों को पूर्वजन्म की घटनाएं याद थी। पर आठ साल या किसी मामले में दस साल की उम्र होते-होते पूर्वजन्म की यादें धूमिल हो जाती थीं। इन घटनाओं से योगशास्त्र के संचित कर्मों वाले सिद्धांत की पुष्टि…

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योग के आदिगुरू शिव हैं, यह निर्विवाद है। पर कल्पना कीजिए कि शक्ति-स्वरूपा पार्वती ने यदि मानव जाति के कल्याण के लिए, आत्म-रूपांतरण के लिए शिव से 112 समस्याओं का समाधान न पूछा होता तो क्या योग जैसी गुप्त विद्या सर्व सुलभ होने का आधार तैयार हुआ होता? मत्स्येंद्रनाथ का प्रादुर्भाव हुआ होता? गोरखनाथ और नाथ संप्रदाय के साथ ही पाशुपत योग के रूप में हठयोग, राजयोग, भक्तियोग, कर्मयोग आदि से आमजन परिचित हुए होते? कदापि नहीं। सच तो यह है कि योग की जितनी भी शाखाएं हैं, सबका आधार शिव-पार्वती संवाद ही है। अलग-अलग काल खंडों में भी योग…

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मन का उपद्रव किस तरह खत्म हो कि शांति मिले? दुनिया भर के लिए यह सवाल यक्ष प्रश्न की तरह है।   माता पार्वती ने आदियोगी शिव जी से कुछ ऐसा ही सवाल किया था तो शिव जी  ने एक सरल उपाय बता दिया था – “दृष्टि को दोनों भौंहों के मध्य स्थिर कर चिदाकाश में ध्यान करें। मन शांत होगा, त्रिनेत्र जागृत हो जाएगा।“ पर बात इतनी सीधी न थी। लिहाजा, सवाल दर सवाल खड़े होते गए। नतीजा हुआ कि आदियोगी शिव को कुल एक सौ बारह तरीके बतलाने पड़ गए थे। कुरूक्षेत्र के मैदान में अर्जुन के सामने भी…

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महानिर्वाण तंत्र में एक कथा है। आदियोगी शिव जी ने पार्वती जी को चित्त की एकाग्रता, मन की शांति के लिए शांभवी मुद्रा का अभ्यास बताया था। अवसाद की विश्वव्यापी समस्या के आलोक में अमेरिका के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इस योग मुद्रा की शास्त्रसम्मत व्याख्या, उसके प्रभाव और उन प्रभावों की वैज्ञानिकता का अध्ययन किया गया तो खुद वैज्ञानिक चौंक उठे। इसलिए कि पुराण की बातें विज्ञान की कसौटी पर सच साबित होती दिखीं। शोध के दौरान भावनात्मक संतुलन, आंतरिक शांति और मानसिक स्पष्टता के अलावा मानव शरीर पर इसके कई अन्य सकारात्मक प्रभाव भी दिखे। अब तो पश्चिम का अशांत मन…

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आजकल उपलब्ध सुसंगठित योग पुस्तकों में आसन प्राणायाम मुद्रा बंध को अंतर्राष्ट्रीय जगत में एक विशेष स्थान प्राप्त है। बिहार योग विद्यालय द्वारा सन् 1969 में इसके प्रकाशन के बाद से कम से सोलह बार इस पुस्तक का पुनर्मुद्रण हो चुका है। अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किए गए। इस बहुआयामी संदर्भ ग्रंथ में स्पष्ट सचित्र विवरण के साथ ही क्रमबद्ध दिशा-निर्देश एवं चक्र-जागरण हेतु विस्तृत मार्ग-दर्शन प्रदान किए गए हैं। योगाभ्यासियों एवं योगाचार्यों को इस ग्रंथ से हठयोग के सरलतम से उच्चतम योगाभ्यासों का परिचय प्राप्त होता है। चिकित्सकों के लिए भी यह बेहतर ग्रंथ है। बिहार योग…

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भारत में नौ फीसदी लोगों की मौत कैंसर हो जाती है। कैंसर के मरीजों की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है। इस जानलेवा बीमारी के इलाज में योग की महत्ता सिद्ध हो चुकी है। आस्ट्रेलिया में कैंसर के चार मरीजों ने लंबे इलाज के बाद जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। चिकित्सकों ने अधिकतम छह महीने की आयु बताई थी। पर योग की शक्ति से कमाल हो गया। वे सभी मरीज बारह से पंद्रह साल तक जीवित थे। बिहार योग विद्यालय की संन्यासी स्वामी निर्मलानंद सरस्वती पेशे से एमबीबीएस, डीए, एमडी (मुंबई) हैं। उन्होंने बिहार योग विद्यालय…

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किशोर कुमार // वेदों में ईश्वर के विषय में प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि वह सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् सर्वद्रष्टा कर्माध्यक्ष और कर्मफलदाता है, जो समस्त जीवों को उनके कर्मों के अनुसार ही न्यायपूर्वक फल प्रदान करता है। पर सवाल है कि सूक्ष्म जगत में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा और कर्मफल कैसे तय होता होगा? इस लेख का प्रतिपाद्य विषय यही है। वैदिक शास्त्रों के इस कर्मफल-सिद्धांत से जहां चित्रगुप्त भगवान का सीधा वास्ता जुड़ा हुआ है। वहीं, वैदिक ज्योतिष में शनिदेव को भी कर्मफलदाता और न्याय प्रदाता माना गया है। इसे महज संयोग मानिए या किसी प्रकार का अंतर्संबंध कि…

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महर्षि उद्दालक आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु चौबीस वर्ष तक गुरु-गृह में रह कर चारों वेदों का पूर्ण अध्ययन करके घर लौटा, तो उसने मन ही मन विचार किया कि मैं वेद का पूर्ण ज्ञाता हूँ, मेरे समान कोई पंडित नहीं है, मैं सर्वोपरि विद्वान और बुद्धिमान हूँ। इस प्रकार के विचारों से उसके मन में गर्व उत्पन्न हो गया और वह उद्धत एवं विनय रहित होकर बिना प्रणाम किये ही पिता के सामने आकर बैठ गया। आरुणि ऋषि उसका नम्रता रहित उद्धत आचरण देख कर जान गये कि इसको वेद के अध्ययन से बड़ा गर्व हो गया है। तो भी…

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