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Author: Kishore Kumar
Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती : आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत
किशोर कुमार // योग की बेहतर शिक्षा किस देश में और वहां के किन संस्थानों में लेनी चाहिए? यदि इंग्लैंड सहित दुनिया के विभिन्न देशों से प्रकाशित अखबार “द गार्जियन” से जानना चाहेंगे तो भारत के बिहार योग विद्यालय का नाम सबसे पहले बताया जाएगा। चूंकि ऐसा सवाल पश्चिमी देशों में आम है। इसलिए “द गार्जियन” ने लेख ही प्रकाशित कर दिया। उसमें भारत के दस श्रेष्ठ योग संस्थानों के नाम गिनाए गए हैं। बिहार योग विद्यालय का नाम सबसे ऊपर है। इस विश्वव्यापी योग संस्थान के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की समाधि के दस साल होने को हैं। फिर भी बिहार योग का आकर्षण…
ऐसे मिलेगा शक्तिशाली योग विज्ञान का अधिकतम लाभ
ऐसे मिलेगा शक्तिशाली योग विज्ञान का अधिकतम लाभ परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती // योग को चार भागों में बांटा गया है। एक भौतिक शरीर के लिए, दूसरा प्राण-शक्ति के लिए, तीसरा विश्राम और चौथा ध्यान। योग का मतलब क्या है? इसका अर्थ है शारीरिक मुद्रा, श्वास लेने के व्यायाम, विश्राम और ध्यान, ये योग के चार भाग हैं। अब, पहला क्या है? इसे शारीरिक आसन यानी हठ योग आसन कहा जाता है। किसी विशेष शारीरिक मुद्रा को धारण करने से मानव ग्रंथियां प्रभावित होती हैं। शरीर में कई ग्रंथियां हैं, जो शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। जैसे, थायरॉयड…
योग का फैलता क्षितिज और बढ़ता सम्मान
किशोर कुमार भारत में पिछले एक दशक के दौरान सरकारी स्तर पर योग को जितनी अमहमित मिली, वह अभूतपूर्व है। सन् 2014 में योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुर्नस्थापित करने के बाद से भारत सरकार अक्सर ऐसे फैसले लेती है, जिनसे न केवल योगियों और योग संस्थानों का सम्मान बढ़ता है, बल्कि योग विद्या का व्यापक प्रचार-प्रसार भी होता है। 75वें गणतंत्र दिवस के मौके पर भी दुनिया ने देखा कि “योग से सिद्धि” झांकी और फ्रांस में वैदिक योग विद्या का व्यापक प्रचार-प्रसार करने वाले 100 वर्षीय योग गुरू चार्लोट चोपिन और भारतीय मूल के फ्रांसीसी योगाचार्य 79 वर्षीय…
चिकित्सा जगत की नजर में सूर्य नमस्कार
किशोर कुमार परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा विकसित योगनिद्रा और महर्षि महेश योगी द्वारा विकसित ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन यानी भवातीत ध्यान के बाद सूर्य नमस्कार ही एक ऐसी योग पद्धति है, जिसके चिकित्सकीय प्रभावों पर दुनिया भर में सर्वाधिक वैज्ञानिक शोध किए गए हैं। योगियों को तो पहले से ज्ञान था कि सूर्य नमस्कार मानव तन-मन के लिए अमृत समान है। सौ दुखों की एक दवा है। पर कोराना महामारी के बाद चिकित्सा विज्ञानियों ने भी इसके महत्व को शिद्दत से स्वीकार किया। नतीजा है कि चिकित्सा विज्ञानियों के साथ ही दवा बनाने वाली कंपनियां भी अपने सामुदायिक विकास मद के…
Blessing and Inspiration
योग और अध्यात्म इस शताब्दी की महान शक्ति है। पर इससे हमारा जीवन, हमारा समाज कितना बदलेगा? शास्त्रों में उल्लेख है और प्राचीन काल से ऋषि मुनि कहते रहे हैं कि संसार त्रिगुणात्मक है। यानी तमस्, रजस और सत्व इन तीन गुणों की लीला भूमि है। इसलिए यह भ्रम तो नहीं रहना चाहिए कि शक्तिशाली योग के वैश्विक संस्कृति बनने से तमाम विषमताएं दूर हो जाएंगी। पर इतना जरूर है कि हमारे विचार औऱ ज्ञान की गुणवत्ता बेहतर हो जाएगी। इसलिए कि योग मनुष्य के आंतरिक व्यक्तित्व परिवर्तन का विज्ञान है। इससे जीवन की समस्याओं को समझ कर सकारात्मक दिशा…
अस्थि रोग, वैज्ञानिक शोध और योग
किशोर कुमार अस्थि रोग को बड़े-बुजुर्गों की बीमारी माना जाता रहा है। पर अब यह बीते दिनों की बात हो गई। खासतौर से गठिया के लक्षण किसी भी उम्र के लोगों में प्रकट हो जा रहे हैं। चिकित्सा जगत में ऐसे ही लक्षणों वाला रूमेटाइड आर्थराइटिस जाना-पहचाना शब्द बन चुका है। इस बीमारी के कारण युवाओं की जिंदगी तबाह हो रही है। ऑटोइम्यून बीमारी है, जो ज्यादातर जोड़ों को प्रभावित करती है। चिकित्सा विज्ञानी कहते हैं कि यह बीमारी तब होती है, जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली, जो आम तौर पर शरीर को संक्रमण और बीमारी से बचाने में मदद…
अद्भुत है चक्रासन की उपचारात्मक ऊर्जा
किशोर कुमार बीसवीं सदी के महानतम संत और ऋषिकेश स्थित दिव्य जीवन संघ के संस्थापक स्वामी शिवानंद कहते थे कि योग-शक्ति हममें निहित है। आसन का निरन्तर अभ्यास तथा नियमित श्वास-प्रक्रिया का सुव्यवस्थित प्रयास हमारे अन्दर नवीन शक्ति व ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास के लिए जरूरी है। आंतरिक शक्ति प्रस्फुटित होते ही हमारा व्यक्तित्व आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। इसलिए कि शरीर में जो कुछ परिवर्तन होते हैं, वे एक आन्तरिक वातावरण उत्पन्न कर देते हैं, जो अपने आस-पास समस्त वस्तुओं को आकर्षित करता है।इस बार बात योगासनों में एक महत्वपूर्ण योगासन “चक्रासन”…
राष्ट्रीय उत्थान में योग की महती भूमिका
किशोर कुमार //महान योगी और दार्शनिक महर्षि अरविंद ने कोई नौ दशक पहले कहा था, ‘‘योग साधना का उद्देश्य केवल वैयक्तिक पूर्णता नहीं, वरन् विश्व उत्थान है। योग की राह पर चलने से समृद्धि आएगी, जो वास्तविक स्वराज्य का मार्ग प्रशस्त करती है, समाज व राष्ट्र की नींव को मजबूत व व्यवस्था को सुदृढ़ रखती है और विकास के नए दरवाजे खोलती है।“ सौ साल बीतत-बीतते यह बात सच होती दिख रही है। दो साल पहले अंतर्ऱाष्ट्रीय योग दिवस का थीम था – मानवता के लिए योग और इस साल का थीम था – स्वंय और समाज के लिए योग। ये दोनों ही थीम…
ब्रह्म-विद्या और योग शास्त्र-सिद्धांत दोनों ही है श्रीमद्भगवत गीता
तमिलनाडु के त्रिचि में मशहूर रामकृष्ण तपोवनम् आश्रम और विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के संस्थापक रहे स्वामी चिद्भवानंद जी ने जीवन पर्यंत स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर जितने श्रेष्ठ कार्य किए, उनसे दुनिया के कोने-कोने में लोगों को प्रेरणा मिली। वे तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले में सन् 1898 में जन्मे थे और सन् 1985 में अपना भौतिक शरीर त्याग दिया था। उन्होंने अपने जीवन-काल में वैसे तो 186 आध्यात्मिक पुस्तकें लिखीं। पर श्रीमद्भगवत गीता पर उनके कार्य उल्लेखनीय हैं। युवाओं और विद्यार्थियों के लिए श्रीमद्भगवद् गीता की महत्ता के बारे में तो हमारे वैज्ञानिक संत सदियों से बतलाते रहे हैं।…
नीचे धरती ऊपर अंबर, बीच में तपे दिगंबर
साधु-संन्यासियों की संगठित फौज नहीं, उनका कोई नगर नहीं, राजधानी नहीं….यहां तक कि ज्ञात किला भी नहीं। पर ये लड़ाकू साधु-संन्यासी अंग्रेजी फौज से दो-दो हाथ करने से नहीं घबड़ातें। उन्हें धूल चटा देते हैं….। कलकत्ते में बैठकर पूरे देश पर नियंत्रण बनाने का ख्वाब रखने वाले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को ये बातें बेहद परेशान करती थीं। वे कई बार साधु-संन्यासियों की हरिध्वनि से वे कांप जाते थे। उनके सिपाही भी भयभीत रहने लगे थे। ”वंदे मातरम्…” गीत के रचयिता कवि-उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के कालजयी उपन्यास “आनंदमठ” में अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध का यह वृतांत बड़ी खूबसूरती…
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