Author: Kishore Kumar

Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com

 भारत आज तेजी से आधुनिकीकरण की राह पर अग्रसर है। शहरों की चकाचौंध, तकनीकी क्रांति और वैश्वीकरण की लहरें जहां एक ओर जीवन को सुगम बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर नैतिकता, सांस्कृतिक जड़ों और मानवीय संवेदनाओं का ह्रास हो रहा है। ऐसे में, राष्ट्र की शाश्वत नैतिक एवं सांस्कृतिक नींव से पुनः जुड़ने की एक सशक्त पहल उभर रही है। विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आध्यात्मिक नेता सुधांशु जी महाराज द्वारा प्रारंभ किया गया ‘सनातन संस्कृति जागरण अभियान’ इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अभियान सनातन धर्म की मूल भावना—करुणा, समन्वय और साझा मानवता—को आधुनिक सामाजिक ढांचे…

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अयोध्या की पहचान विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रुप में बन जाए, इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या मास्टर प्लान 2031 की समीक्षा करते हुए कुछ ऐसा ही विजन प्रस्तुत किया है। उसके मुताबिक, कोशिश है कि अयोध्या में प्राचीन आस्था और आधुनिकता का अनुपम संगम हो जाए। योजना के तहत अयोध्या को ज्ञान, उत्सव और हरित ऊर्जा की स्मार्ट नगरी के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसमें तीर्थयात्रियों के लिए सुगम बुनियादी ढांचा, विविध पर्यटन परिपथ, हेरिटेज वॉक और ऐतिहासिक सर्किट शामिल होंगे।विकास क्षेत्र को 18 जोनों में…

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लोक आस्था का महापर्व छठ पर्व अपने चरम पर है। माहौल सर्वत्र भक्तिमय है। इस महापर्व को लेकर कथाएं तो अनेक हैं। पर, आधुनिक युग के लिहाज से सबसे विश्वसनीय कथा यह है कि इस महापर्व ने प्रवासन और आधुनिकीकरण की चुनौतियों के बावजूद, अपनी आस्था की शक्ति से खुद को न केवल बचाए रखा है, बल्कि वैश्विक पहचान बना ली है। साथ ही लाखों लोगों को जड़ों से जोड़े रखकर साझी सांस्कृतिक पहचान प्रदान की है। आने वाले समय में यह महापर्व यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।सृष्टि के प्रारंभ से…

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सारे पर्व-त्योहार इतिहास के पन्ने हैं। जब हम उन ऐतिहासिक घटनाओँ की याद में उत्सव मनाने हैं तो अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े रहते हैं। यौगिक दृष्टिकोण से इससे भी बहुमूल्य बात यह है कि जब हम उन ऐतिहासिक घटनाओँ के संदेशों को आत्मसात करते हुए अपनी चेतना का क्रमिक विकास भी करते हैं तो जीवन में पूर्णता आती है। बात शास्त्रसम्मत और विज्ञानसम्मत दीपावली की हो या लक्ष्मी व काली पूजन की, इन सभी मामलों में ये सिद्धांत ही काम करते हैं। पर, समय व देश-काल की प्रकृति के अनुरुप इन त्योहारों के साथ कई भ्रांत धारणाएं जुड़कर परंपरा…

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एक सौ साठ देश… पाँच हज़ार ध्यान केंद्र… सोलह हज़ार प्रशिक्षक… और दो करोड़ साधक! यह महज़ आँकड़ा नहीं, बल्कि आठ दशकों से प्रवहमान उस यौगिक और आध्यात्मिक यात्रा की जीवंत कहानी है, जो भारत के एक छोटे से कस्बे से आरंभ होकर आज दुनिया भर के लोगों की जीवन-पद्धति का हिस्सा बन चुकी है। श्री रामचंद्र मिशन का अभियान उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ से विस्तार पाता हुआ यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका तक फैल चुका है। दूसरी तरफ रामाश्रम सत्संग है, जो मथुरा के साथ ही देश-विदेशों के कई स्थानों पर लाखों अनुयायियों की आस्था…

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किशोर कुमार // हम सब मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान से तो परिचित हैं ही। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन एकमात्र स्वायत्तशासी संगठन है, जिसका उद्देश्य एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में योग अनुसंधान, योग चिकित्सा, योग प्रशिक्षण और योग शिक्षा को बढ़ावा देना है। नई पीढ़ी के ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगा कि योग के इस मंदिर की स्थापना महान योगी स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की परिकल्पना औऱ उनके श्रमसाध्य प्रयासों का प्रतिफल है। तब यह विश्वायतन योगाश्रम के रूप में जाना जाता था। पर मैं आज स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की जीवनी भी लिखने नहीं बैठा हूं।…

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हंस (आत्मा) उड़ गया। काया (शरीर) मुरझा गई। शास्त्रीय संगीत की एक सशक्त आवाज सदा के लिए खामोश हो गई। जो मृत्युलोक में आया है, उसकी यही गति होनी है। पर, शास्त्रीय गायन की विशिष्ट शैलियों के जरिए ईश्वर से सीधा संवाद करने वाले सुरों, रागों और नादयोग के मर्मज्ञ पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना एक भक्त के जाने जैसा है, जो तभी तक आगे की ओर गति करता है, जब तक कि वह परमात्मा तक पहुंच न जाए। सामान्यत: जाने वाले लौट भी आते हैं। बदले हुए स्वरुप के कारण हम उन्हें पहचान नहीं पाते। पुनर्जन्म का सिद्धांत यही…

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 विजयादशमी का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है और इससे जुड़ी अनेक कथाएं भी हैं। बेशक, ये कथाएं अलग-अलग काल-खंडों के हैं। पर, इन कथाओं से इतना पता चलता है कि शुभ कार्य शुभ समय में ही होते हैं और सदैव असत्य पर सत्य की जीत होती है। त्रेतायुग से महानवमी के बाद विजयादशमी या दशहरा मनाए जाने की कथा श्रीराम से जुड़ी हुई है। श्रीराम ने नवरात्रि के दौरान देवी के नौ स्वरुपों की साधना करके दैवी कृपा प्राप्त की थी। ताकि आसुरी शक्तियों का नाश किया जा सके।श्रीराम को पता था कि सृष्टि के प्रारंभिक दिनों से ही किस…

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दैवी शक्तियों की कथाएं सांकेतिक होती हैं। भारतीय संस्कृति में वैदिककालीन या उसके पूर्व की जितनी भी घटनाएं हैं, उनकी अभिव्यक्ति कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से की गईं। उन कथाओं का सार इसमें है कि उनसे मिले संकेतों के आधार पर हम अपना जीवन किस तरह बेहतर बना पाते हैं। दुर्गासप्तसती की कथाओं से हमें पता चलता है कि माता रानी की दिव्य शक्ति से राक्षसी शक्तियों का संहार होता गया था। सृष्टि के आरंभिक दिनों की ये कथाएं हमारे मानस में रची-बसी हैं तो अकारण ही नहीं है। उन कथाओं के गहरे संदेश हैं। हमारी क्रमिक साधनाओं के…

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नव संवत्सर की शुरुआत ही देवी की आराधना से होगी। सृष्टि की रचना देवी से हुई थी। ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीकात्मक रूप भी वे ही हैं। उपनिषद में कहा गया है कि पराशक्ति ईश्वर की परम शक्ति है। यही विविध रूपों में प्रकट है। आत्मज्ञानी संत प्राचीन काल से कहते रहे हैं कि देवी या शक्ति सभी कामनाओं, ज्ञान और क्रियाओं का मूलाधार है। अब वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि प्रत्येक वस्तु शुद्ध अविनाशी ऊर्जा है। यह कुछ और नहीं, बल्कि उस दैवी शक्ति का एक रूप मात्र है, जो अस्तित्व के प्रत्येक रूप में मौजूद है। नवरात्रि के दौरान हम उसी…

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