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Author: Kishore Kumar
Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com
षट्कर्म : शुद्धि से सिद्धि तक की सीढ़ी
संत मत है कि घटशुद्धि से ही घटरूपी शरीर हठयोग साधना के योग्य होता है। घट की शुद्धि बिना यह कच्चे घड़े के समान है। यह लेख उसी घटशुद्धि के लिए षट्कर्म रुपी योग विद्या का विज्ञान बताने के लिए है। लेकिन पहले नाथपंथ के सिद्ध योगी चौरंगीनाथ से जुड़े एक प्रसंग पर गौर फरमाइए। चौरंगीनाथ को तमाम कोशिशों के बावजूद योग साधनाओं में सफलता नहीं मिल पा रही थी। तब गुरु को अपनी व्यथा सुनाई। कौन थे गुरु? मत्स्येंद्रनाथ? ज्ञानेश्वरी जैसे ग्रंथ में मत्स्येंद्रनाथ के बाद तथा गोरखनाथ के पहले गुरु-शिष्य परंपरा में चौरंगीनाथ का नाम आता है। दूसरी तरफ कई जगहों पर…
नागपंचमी और उसके आध्यात्मिक आयाम
अद्भुत! जीव-जंतुओं में भी ईश्वर का प्रतिरूप और उसकी पूजा! इसका मर्म वे क्या जानेंगे, जो जड़ों से कट गए और भारत को सपेरों का देश मानने लगे थे। पर, भारत जैसा आध्यात्मिक देश तो अपनी जड़ों से मजबूती से जुड़ा हुआ है। वह जिस तरह राम और रावण में फर्क जानता है, उसी तरह नाग के गुण-दोष को भी समझता है। उसे मालूम है कि वासुकि नाग में विष भरा है तो अमृत निकालने के काम भी वही आता है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। त्रिगुणायत मानवों को ही देख लीजिए। उसमें एक तरफ शील है, मर्यादा…
पराजयवादी प्रवृत्ति को परास्त करो – यही मंत्र संबल बना
“मैं आपको अपने जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताना चाहता हूँ, जो 1958 में घटी। आप में से कुछ ने इसे मेरी पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ में पढ़ा होगा। लेकिन यहाँ उपस्थित युवाओं के लिए, जिन्होंने यह पुस्तक नहीं पढ़ी, मैं इसे दोहराना चाहूँगा। जब मैं एक छोटा बालक था, मेरा सपना था कि मैं उड़ान भरूँ। मेरे पास एक अद्भुत शिक्षक थे, शिवसुब्रमण्या अय्यर, जिन्होंने मुझे विज्ञान की ओर प्रेरित किया और उड़ान से संबंधित कुछ करने का विचार दिया। इसलिए मैंने वैमानिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश लिया और 1957 में स्नातक हुआ, जो बहुत समय पहले…
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से बदलता यौगिक परिदृश्य
कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले योग प्रशिक्षक अब हमारी आपकी दहलीज पर दस्तक देने लगे हैं। एआई अनुकूलित यौगिक उपायो के रुप में उनकी कोंपलें निकल आई हैं। इसके कारण भारत सहित दुनिया भर में योग का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। योगशास्त्रों में योग का अंतिम लक्ष्य आत्मोत्थान कहा गया है। पर, दुनिया भर में ज्यादातर लोग स्वास्थ्य कारणों से योगाभ्यास करते हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) अनुकूलित योग उपायों से स्वास्थ्य संवर्द्धन की चाहत वाले योगाभ्यासियों का कितना हित होगा? कही ऐसा तो नहीं होगा कि एआई अनुकूलित यौगिक उपाय योग विद्या के…
डिजिटल युग के लिए वरदान है त्राटक
स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और डिजिटल उपकरण हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। ये तकनीकें हमें दुनिया से जोड़ती हैं। लेकिन इसका बुरा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। हमारा शरीर केवल मांस, हड्डियों और रक्त का बना कोई यंत्र नहीं, बल्कि अत्यंत सुसंवेदनशील, सजग और लयबद्ध तंत्र है, जो हमारी प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया से प्रभावित होता है। इसलिए, डिजिटल आदतें न केवल हमें थकाती हैं, बल्कि नींद, खुशी और एकाग्रता के लिए आवश्यक सेरोटोनिन और मेलाटोनिन जैसे रसायनों का संतुलन बिगड़ जाता है। छोटे बच्चों का मनोविकार से ग्रस्त होना इस बात का प्रमाण है। ऐसे में योग…
अठारह शिव मंदिरों का अद्भुत विज्ञान!
श्रावण महीना हिंदू धर्म में भगवान शिव की भक्ति के लिए विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। यह महीना भक्ति, तपस्या, और आध्यात्मिक साधना के लिए समर्पित है, क्योंकि इस समय प्रकृति और मानव चेतना का तालमेल विशेष रूप से शक्तिशाली होता है। पर, शिव-शक्ति आकाश रेखा पर अवस्थित मंदिरों का विशेष आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। ये मंदिर न केवल भगवान शिव और शक्ति के प्रतीक हैं, बल्कि प्राचीन भारतीय यौगिक विज्ञान और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ मानव जीवन के संबंधों को भी दर्शाते हैं।जरा सोचिए, हज़ारों साल पहले, जब न कोई उपग्रह था, न जीपीएस, न ही…
परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती : ऐसे मिल गए थे गुरु
आध्यात्मिक खोज का पथ कभी सुगम नहीं होता। यह एक ऐसी यात्रा है, जो हृदय की गहराइयों से शुरू होती है और अनंत की ओर बढ़ती है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था। पिता पुलिस अधिकारी थे। किशोरावस्था में ही उनके मन में आध्यात्मिक जिज्ञासा ने जन्म ले लिया था। संसार की क्षणभंगुरता और जीवन के गहरे अर्थ की खोज ने उन्हें बेचैन कर दिया। लिहाजा, घर की सुख-सुविधाओं का परित्याग कर सत्य की तलाश में निकल पड़े थे। वे सबसे पहले…
पूर्णिमा किसकी, गुरू की या शिष्य की?
वैदिक परंपरा में गुरु को वह प्रकाश माना गया है, जो शिष्य के जीवन से अज्ञान के अंधेरे को दूर करता है। चाहे वह आदियोगी शिव हों, ऋषि वशिष्ठ हों, भगवान श्रीकृष्ण हों, आद्यगुरू शंकराचार्य हों, या द्रोणाचार्य, सभी ने अपने शिष्यों को न केवल ज्ञान दिया, बल्कि उन्हें जीवन के उच्च आदर्शों, धर्म, और कर्तव्य के प्रति जागरूक किया। गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है। अच्छी बात यह है कि…
अद्भुत अवतार, जय श्री जगन्नाथ!
भगवान श्री जगन्नाथ की रथयात्रा तो हर साल होती है। पर उनका नवकलेवर तभी होता है, जब हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास में अधिक मास (दो आषाढ़ मास) पड़ता है, जो आमतौर पर 8, 12, या 19 वर्षों के अंतराल पर होता है। उदाहरण के लिए, सन् 2015 में नवकलेवर हुआ था, तो यह संयोग सन् 2034 में बनने की संभावना है। फिर भी समस्त जड़ और चेतन के स्वामी, जगत के नाथ श्री जगन्नाथ का नवकलेवर चर्चा में है। इसकी वजह बनी है नवकलेवर पर निर्मित फिल्म। वैसे तो भगवान जगन्नाथ की महिमा पर आधारित कई फिल्में बन चुकी हैं। इनमें कोई पंद्रह भाषाओं…
आसन, प्राणायाम से आगे की बात
प्राचीनकाल में जिस योग और वैदिक ज्ञान की अखंड धारा ने भारत को ‘विश्वगुरु’ का गौरव प्रदान किया था, आज उसी अमर परंपरा को पुनर्जीवन मिलता दिख रहा है। 11वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर इसकी झलक दिखी, जब भारत ने योग को केवल आसन-प्राणायाम तक सीमित न रखकर, एक समग्र जीवनदर्शन के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। काल के प्रवाह में क्षीण हुई ज्ञान-गंगा, जो मानवता को सत्य, शांति और सामंजस्य की ओर ले जाती थी, योग के माध्यम से पुनः प्रवाहित होती दिखी। यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना के अनुरुप है।अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रारंभ होने…
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