Author: Kishore Kumar

Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com

हंस (आत्मा) उड़ गया। काया (शरीर) मुरझा गई। शास्त्रीय संगीत की एक सशक्त आवाज सदा के लिए खामोश हो गई। जो मृत्युलोक में आया है, उसकी यही गति होनी है। पर, शास्त्रीय गायन की विशिष्ट शैलियों के जरिए ईश्वर से सीधा संवाद करने वाले सुरों, रागों और नादयोग के मर्मज्ञ पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना एक भक्त के जाने जैसा है, जो तभी तक आगे की ओर गति करता है, जब तक कि वह परमात्मा तक पहुंच न जाए। सामान्यत: जाने वाले लौट भी आते हैं। बदले हुए स्वरुप के कारण हम उन्हें पहचान नहीं पाते। पुनर्जन्म का सिद्धांत यही…

Read More

 विजयादशमी का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है और इससे जुड़ी अनेक कथाएं भी हैं। बेशक, ये कथाएं अलग-अलग काल-खंडों के हैं। पर, इन कथाओं से इतना पता चलता है कि शुभ कार्य शुभ समय में ही होते हैं और सदैव असत्य पर सत्य की जीत होती है। त्रेतायुग से महानवमी के बाद विजयादशमी या दशहरा मनाए जाने की कथा श्रीराम से जुड़ी हुई है। श्रीराम ने नवरात्रि के दौरान देवी के नौ स्वरुपों की साधना करके दैवी कृपा प्राप्त की थी। ताकि आसुरी शक्तियों का नाश किया जा सके।श्रीराम को पता था कि सृष्टि के प्रारंभिक दिनों से ही किस…

Read More

दैवी शक्तियों की कथाएं सांकेतिक होती हैं। भारतीय संस्कृति में वैदिककालीन या उसके पूर्व की जितनी भी घटनाएं हैं, उनकी अभिव्यक्ति कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से की गईं। उन कथाओं का सार इसमें है कि उनसे मिले संकेतों के आधार पर हम अपना जीवन किस तरह बेहतर बना पाते हैं। दुर्गासप्तसती की कथाओं से हमें पता चलता है कि माता रानी की दिव्य शक्ति से राक्षसी शक्तियों का संहार होता गया था। सृष्टि के आरंभिक दिनों की ये कथाएं हमारे मानस में रची-बसी हैं तो अकारण ही नहीं है। उन कथाओं के गहरे संदेश हैं। हमारी क्रमिक साधनाओं के…

Read More

नव संवत्सर की शुरुआत ही देवी की आराधना से होगी। सृष्टि की रचना देवी से हुई थी। ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीकात्मक रूप भी वे ही हैं। उपनिषद में कहा गया है कि पराशक्ति ईश्वर की परम शक्ति है। यही विविध रूपों में प्रकट है। आत्मज्ञानी संत प्राचीन काल से कहते रहे हैं कि देवी या शक्ति सभी कामनाओं, ज्ञान और क्रियाओं का मूलाधार है। अब वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि प्रत्येक वस्तु शुद्ध अविनाशी ऊर्जा है। यह कुछ और नहीं, बल्कि उस दैवी शक्ति का एक रूप मात्र है, जो अस्तित्व के प्रत्येक रूप में मौजूद है। नवरात्रि के दौरान हम उसी…

Read More

वाराणसी के रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला के बारे में तो आपने सुना ही होगा। ऐसी अनूठी रामलीला, जिसके लिए पूरा नगर ही विशाल रंगमंच बन जाता है। गंगा तट अयोध्या तो बड़ा मैदान जनकपुर और किले के पास का इलाका लंका बन जाता है। यह कोई दस दिनों तक चलने वाली रामलीला नहीं होती, बल्कि महीना भर राम कथाओं की प्रगति श्रीराम के जीवन की क्रमवार यात्रा के रूप में होती रहती है। बस, बाकी रामलीलाओं से अलग यह होता है कि रावण मारा नहीं जाता, बल्कि वह श्रीराम के चारणों में समर्पण कर देता है। सन् 1830 में काशी…

Read More

तपस्या केवल बाहरी कठोर साधना नहीं है, बल्कि इन्द्रियों की शुद्धि, हृदय की पवित्रता और प्रभु से एकत्व का अनुभव ही वास्तविक तप है। इसी से ज्ञान की प्राप्ति होती है। वही अमृत है, वही मुक्ति है। छांदोग्य उपनिषद, कठोपनिषद और श्रीमद्भगवतगीता जैसे ग्रंथों की गूढ़ बातें ब्रह्मर्षि कृष्णदत्त जी महाराज शवासन शवासन की अवस्था में ठीक वैसे ही सुना रहे थे, जैसे दिव्य दृष्टि वाले संजय महाभारत की घटनाओं का आंखों देखा हाल सुना रहे थे।  ऐसा कोई पहली बार नहीं था। बाल्यावस्था से ही वे जब कभी शवासन में होते, तो उनकी स्थिति योग समाधि जैसी बन जाती…

Read More

बीसवीं सदी के महानतम संत और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की महासमाधि के पंद्रह साल पूरे होने को हैं। उन्होंने पांच दिसंबर की मध्यरात्रि में महासमाधि ली थी। शिष्यों से वादा करके गए थे – “आऊंगा जरुर, रिटर्न टिकट लेकर जा रहा हूं।“ उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती तो सदैव उनकी दिव्य उपस्थिति महसूस करते हैं। पर, दुनिया भर में फैले शिष्यों की आंखें अपने गुरू को बाल रुप में सर्वत्र तलाशती रहती हैं। किसी भूखे-नंगे बच्चे की आंखें या मुख परमहंस जी से मिलती-जुलती दिख जाएं तो भावनाएं हिलोरे लेने…

Read More

कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई…. छह दशक पहले कवि प्रदीप का गाया यह गीत आज भी लोगों की जुबान पर आ ही जाता है। खासतौर से तब, जब व्यक्ति कठिन दौर से गुजर रहा होता है। वैदिक ग्रंथों में भी प्रसंग है कि कर्म का फल भोगे बिना करोड़ों कल्प में कर्म क्षीण नहीं होता। चित्तगुप्त या चित्रगुप्त के बारे में भी यही मत है कि वे कर्मों के भले-बुरे प्रभावों का न्यायपूर्ण लेखा-जोखा रखते है, और प्रत्येक व्यक्ति को उसी अनुसार फल मिलता है।लेकिन, बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती शिष्यों…

Read More

आत्मज्ञानी संतों की सूक्ष्म ऊर्जा हमें हर पल, हर क्षण स्पंदित करती है और सत्कर्मों के लिए प्रेरित करती है। इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस (इस्कॉन) की स्थापना करके कृष्ण-भक्ति आंदोलन के जरिए दुनिया भर में छा जाने वाले श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपादजी इसके उदाहरण हैं। वे यदि भौतिक शरीर में होते तो आज 129 वर्ष पूरे कर चुके होते। उनकी महासमाधि के भी लगभग 47 साल होने को हैं। पर, उनकी सूक्ष्म ऊर्जा की शक्तियां भक्तों को उनकी उपस्थिति का सदैव अहसास कराती रहती है, प्रेरित करती रहती हैं।इसे कुछ उदाहरणों से समझिए। आध्यात्मिक फिल्म “महावतार नरसिम्हा”…

Read More

महाराष्ट्र के योगी स्वामी कुवल्यानंद यौगिक क्रियाओं से मिलने वाले परिणामों को विज्ञान की कसौटी पर भी सिद्ध करके भारत के साथ ही पश्चिमी देशों में भी ख्याति अर्जित कर रहे थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को खुद ही कुवल्यानंद जी के योगाश्रम कैवल्यधाम में जाकर उनकी उपलब्धियों का साक्षी बनना चाहते थे। लिहाजा वे महाराष्ट्र के लोनावाला पहुंच गए, जहां कैवल्यधाम आकार ले रहा था। वे स्वामी जी की उपलब्धियों से बेहद खुश हुए। पर तुरंत ही उन पर संशय के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे। दरअसल, उन्हें आश्रम में पता चला कि स्वामी जी को अमेरिका में…

Read More