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Author: Kishore Kumar
Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com
सर्दियों के लिए आजमायी हुईं यौगिक विधियां
सर्दियों के मौसम में कई स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ जाती हैं। अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, जोड़ों का दर्द, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी और विशेष रूप से उच्च रक्तचाप की समस्याएं सताने लगती हैं। वैसे तो उच्च रक्तचाप की वजहें और भी हैं। मुंबई की विख्यात चिकित्सक रह चुकीं बिहार योग विद्याय की संन्यासी और “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कैंसर” की लेखिका डॉ. स्वामी निर्मलानंद सरस्वती का कहना है कि धमनियों के सिकुड़ जाने से उच्च रक्तचाप और हृदयरोग को सीधा निमंत्रण मिलता है। सर्दियों के साथ ही, अस्वस्थ्यकर जीवन पद्धति और खानपान की वजह से आदमी मोटा होता है तो भी धमनियां सिकुड़…
मधुमेह, योग और चिकित्सा विज्ञान
योग की प्राचीन विद्या के पास मुधमेह की चिकित्सा का अधिक कारगर उपाय है, जो कि हजारों वर्ष पुराना है। यौगिक क्रियाओं द्वारा शरीर की आन्तरिक उत्पादन प्रक्रिया को पुनः सक्रिय कर शरीर-संरचना को संतुलित किया जा सकता है। बीसवीं सदी के महान योगी और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में इस बात की घोषणा की थी तो मरीजों से लेकर चिकित्सक तक चौंक गए थे। पर, स्वामी जी यहीं नहीं रुके थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक यौगिक क्रियाओं द्वारा मधुमेह का इलाज करने के उपरान्त एक पुस्तक प्रकाशित करके…
गुरु कृपा से प्रभु मिलते हैं, और प्रभु कृपा से गुरु
इसमें दो मत नहीं कि सद्गुरु की कृपा भगवान की विशेष अनुकंपा से ही प्राप्त होती है। मनुष्य जब तक संसार के आकर्षणों में रमा रहता है, तब तक उसे अपने भीतर के सत्य की खोज का भाव नहीं जागता। लेकिन जब वह भोगों, आकांक्षाओं और असफलताओं के अनुभवों से थक जाता है, तब धीरे-धीरे उसके भीतर वैराग्य का एक सूक्ष्म बीज अंकुरित होता है।यह वैराग्य ही आत्मा की जागृति का प्रथम संकेत है। संसार की क्षणभंगुरता जब स्पष्ट होने लगती है, तब मनुष्य की दृष्टि बाहर से हटकर भीतर की ओर मुड़ती है। उसी क्षण ईश्वर की प्रेरणा कार्य…
चिंता की मूल पर प्रहार हैं ये यौगिक उपाय
हम सब बचपन से ही संत कबीर की साखी “चिंता से चतुराई घटे, दुःख से घटे शरीर” पढ़ते-सुनते बड़े हुए। वैदिक ग्रंथों में भी अनेक ऐसे प्रसंग हैं, जिनसे ऐसे ही भाव प्रकट होते हैं। चतुराई के सामान्य अर्थ तो बुद्धि की तीक्ष्णता, कुशाग्रता, चालाकी आदि होते हैं। पर, वैदिक ग्रंथों से लेकर संत कबीर की वाणी तक में जिस चतुराई की बात की गई है, वह सही-गलत की पहचान करने वाली आंतरिक बुद्धि की बात है। जब मन चिंता में डूबा होता है, तो विवेक की मलिनता से चतुराई घटती है। जबकि चतुराई कैसी होनी चाहिए? संत कबीर अपनी…
सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण हेतु सुधांशु जी महाराज का अभियान
भारत आज तेजी से आधुनिकीकरण की राह पर अग्रसर है। शहरों की चकाचौंध, तकनीकी क्रांति और वैश्वीकरण की लहरें जहां एक ओर जीवन को सुगम बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर नैतिकता, सांस्कृतिक जड़ों और मानवीय संवेदनाओं का ह्रास हो रहा है। ऐसे में, राष्ट्र की शाश्वत नैतिक एवं सांस्कृतिक नींव से पुनः जुड़ने की एक सशक्त पहल उभर रही है। विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आध्यात्मिक नेता सुधांशु जी महाराज द्वारा प्रारंभ किया गया ‘सनातन संस्कृति जागरण अभियान’ इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अभियान सनातन धर्म की मूल भावना—करुणा, समन्वय और साझा मानवता—को आधुनिक सामाजिक ढांचे…
अयोध्या को विश्व की आध्यात्मिक राजधानी बनाने की कवायद
अयोध्या की पहचान विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रुप में बन जाए, इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या मास्टर प्लान 2031 की समीक्षा करते हुए कुछ ऐसा ही विजन प्रस्तुत किया है। उसके मुताबिक, कोशिश है कि अयोध्या में प्राचीन आस्था और आधुनिकता का अनुपम संगम हो जाए। योजना के तहत अयोध्या को ज्ञान, उत्सव और हरित ऊर्जा की स्मार्ट नगरी के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसमें तीर्थयात्रियों के लिए सुगम बुनियादी ढांचा, विविध पर्यटन परिपथ, हेरिटेज वॉक और ऐतिहासिक सर्किट शामिल होंगे।विकास क्षेत्र को 18 जोनों में…
छठ महापर्व : आस्था, भक्ति और ज्ञान का संगम
लोक आस्था का महापर्व छठ पर्व अपने चरम पर है। माहौल सर्वत्र भक्तिमय है। इस महापर्व को लेकर कथाएं तो अनेक हैं। पर, आधुनिक युग के लिहाज से सबसे विश्वसनीय कथा यह है कि इस महापर्व ने प्रवासन और आधुनिकीकरण की चुनौतियों के बावजूद, अपनी आस्था की शक्ति से खुद को न केवल बचाए रखा है, बल्कि वैश्विक पहचान बना ली है। साथ ही लाखों लोगों को जड़ों से जोड़े रखकर साझी सांस्कृतिक पहचान प्रदान की है। आने वाले समय में यह महापर्व यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।सृष्टि के प्रारंभ से…
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय…
सारे पर्व-त्योहार इतिहास के पन्ने हैं। जब हम उन ऐतिहासिक घटनाओँ की याद में उत्सव मनाने हैं तो अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े रहते हैं। यौगिक दृष्टिकोण से इससे भी बहुमूल्य बात यह है कि जब हम उन ऐतिहासिक घटनाओँ के संदेशों को आत्मसात करते हुए अपनी चेतना का क्रमिक विकास भी करते हैं तो जीवन में पूर्णता आती है। बात शास्त्रसम्मत और विज्ञानसम्मत दीपावली की हो या लक्ष्मी व काली पूजन की, इन सभी मामलों में ये सिद्धांत ही काम करते हैं। पर, समय व देश-काल की प्रकृति के अनुरुप इन त्योहारों के साथ कई भ्रांत धारणाएं जुड़कर परंपरा…
श्री रामचंद्र उर्फ लाला जी महाराज का फलता-फूलता “सहज मार्ग”
एक सौ साठ देश… पाँच हज़ार ध्यान केंद्र… सोलह हज़ार प्रशिक्षक… और दो करोड़ साधक! यह महज़ आँकड़ा नहीं, बल्कि आठ दशकों से प्रवहमान उस यौगिक और आध्यात्मिक यात्रा की जीवंत कहानी है, जो भारत के एक छोटे से कस्बे से आरंभ होकर आज दुनिया भर के लोगों की जीवन-पद्धति का हिस्सा बन चुकी है। श्री रामचंद्र मिशन का अभियान उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ से विस्तार पाता हुआ यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका तक फैल चुका है। दूसरी तरफ रामाश्रम सत्संग है, जो मथुरा के साथ ही देश-विदेशों के कई स्थानों पर लाखों अनुयायियों की आस्था…
जब योग के प्रचारक बन गए थे जेपी
किशोर कुमार // हम सब मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान से तो परिचित हैं ही। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन एकमात्र स्वायत्तशासी संगठन है, जिसका उद्देश्य एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में योग अनुसंधान, योग चिकित्सा, योग प्रशिक्षण और योग शिक्षा को बढ़ावा देना है। नई पीढ़ी के ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगा कि योग के इस मंदिर की स्थापना महान योगी स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की परिकल्पना औऱ उनके श्रमसाध्य प्रयासों का प्रतिफल है। तब यह विश्वायतन योगाश्रम के रूप में जाना जाता था। पर मैं आज स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की जीवनी भी लिखने नहीं बैठा हूं।…
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