क्या भगवान का अस्तित्व है? जिस देश को कभी सपेरों का देश कहा जाता था, वहां के लोग बिना देरी किए हां में उत्तर दे तो बात समझ में आती है। पर, इस बार बारी है हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ विली सून की। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में लंबे समय तक गणितीय आधार पर शोध किया और इस निष्कर्ष पर हैं कि भगवान का अस्तित्व है। वे कहते हैं कि ब्रह्मांड की संरचना और उसमें मौजूद संतुलन इतना सटीक है कि यह संयोग मात्र नहीं हो सकता। यह जागरूक बुद्धिमत्ता से किया गया डिज़ाइन प्रतीत होता है।
डॉ सून का यह तर्क “फाइन-ट्यूनिंग तर्क” पर आधारित है, जो गणितीय सूत्रों पर आधारित है। वे कहते हैं कि ब्रह्मांड में जीवन के लिए आवश्यक भौतिक स्थिरांक (physical constants), जैसे गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुम्बकीय बल, और परमाणुओं की संरचना, इतने सटीक ढ़ंग से “ट्यून” किए गए हैं कि अगर इनमें ज़रा सा भी बदलाव होता, तो जीवन का अस्तित्व असंभव हो जाता। उदाहरण के लिए, यदि गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता में मामूली अंतर होता, तो तारे और ग्रहों का निर्माण नहीं हो पाता, और न ही जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बन पातीं। इसी तरह, विद्युत चुम्बकीय बल का मान अगर थोड़ा कम या ज़्यादा होता, तो परमाणुओं का गठन ही नहीं हो पाता।
उन्होंने इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह सटीकता एक गणितीय पैटर्न को दर्शाती है, जो संभावना (probability) के सामान्य नियमों से परे है। उनके अनुसार, यह संकेत देता है कि ब्रह्मांड को किसी बुद्धिमान शक्ति ने बनाया है। इतना सामर्थ्यवान “भगवान” के सिवा और कौन हो सकता है? डॉ. सून ने इस संदर्भ में प्रसिद्ध गणितज्ञ पॉल डिराक के विचारों का भी उल्लेख किया, जिन्होंने कहा था कि ब्रह्मांड की गणितीय सुंदरता किसी बड़े गणितज्ञ (ईश्वर) की मौजूदगी की ओर इशारा करती है।
हालांकि, डॉ. सून का यह दावा वैज्ञानिक समुदाय में सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया गया है। कई वैज्ञानिक इसे एक दार्शनिक व्याख्या मानते हैं। फिर भी, उनके तर्क ने विज्ञान और धर्म के बीच एक नई बहस को जन्म दिया है और इस बहस में गणित एक सेतु के रूप में कार्य कर रहा है।
डॉ सून का तर्क जिस फाइन ट्यूनिंग तर्क पर आधारित है, जरा उसके बारे में भी जान लीजिए। फाइन-ट्यूनिंग तर्क एक दार्शनिक और वैज्ञानिक तर्क है। उसके अनुसार ब्रह्मांड के भौतिक नियम और स्थिरांक (constants) इतने सटीक रूप से “ट्यून” किए गए हैं कि वे जीवन के अस्तित्व को संभव बनाते हैं। इसकी सटीकता किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि बुद्धिमान डिज़ाइनर का तानाबाना लगता है। ब्रह्मांड में मौजूद कई मूलभूत स्थिरांक और नियम ऐसे हैं कि अगर उनमें बहुत मामूली बदलाव भी हो जाए, तो जीवन—जैसा कि हम जानते हैं—असंभव हो जाएगा। जैसे, गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक तारों, ग्रहों और आकाशगंगाओं के निर्माण को नियंत्रित करता है। विद्युत चुम्बकीय बल परमाणुओं और रासायनिक बंधनों के लिए ज़रूरी। प्रबल परमाणु बल प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को परमाणु नाभिक में एक साथ रखता है और कॉस्मिक विस्तार दर ब्रह्मांड के विस्तार की गति को नियंत्रित करता है।
डॉ सून के मुताबिक, इन स्थिरांकों के मान इतने सटीक हैं कि इनमें बहुत छोटा बदलाव भी जीवन को असंभव बना सकता है। उदाहरण के लिए यदि गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक थोड़ा मज़बूत होता, तो तारे बहुत जल्दी जल जाते और जीवन के लिए समय नहीं बचता। अगर यह कमज़ोर होता, तो तारे और ग्रह बन ही नहीं पाते। यदि कॉस्मिक विस्तार दर थोड़ी तेज़ होती, तो पदार्थ फैल जाता और आकाशगंगाएँ नहीं बनतीं; अगर धीमी होती, तो ब्रह्मांड ढह जाता। इन्हीं बातों को ईश्वर के अस्तित्व के समर्थन में प्रस्तुत किया गया है।
भौतिक विज्ञानी रोजर पेनरोज़ ने गणना की कि ब्रह्मांड की प्रारंभिक एन्ट्रॉपी की सटीकता एक अत्यंत छोटी संभावना के क्रम में थी। एन्ट्रॉपी एक भौतिक अवधारणा है, जो किसी सिस्टम में “विकार” या “अव्यवस्था” की मात्रा को मापती है।