किशोर कुमार //
योगाभ्यासों के जरिए कैंसर जैसी घातक बीमारी को काबू में करने के दिशा में हम एक-दो कदम नहीं, बल्कि कई कदम आगे बढ़ गए हैं। तीन दशक पहले तक हम इस पड़ताल में थे कि क्या कैंसर से जूझ रहे मरीजों की मानसिक यंत्रणा कम करने में योगाभ्यासों की भूमिका हो सकती है? इस बात को लेकर दुनिया भर में हुए शोधों के से निष्कर्ष निकला कि खास तरीके से “योग निद्रा” योग और कुछ अन्य योगाभ्यासों से कैंसर मरीजों को मानसिक लाभ ही नहीं मिलता, बल्कि कैंसर के जीवाणुओं का विकास धीमा हो जाता है, कई बार रूक भी जाता है। ऐसे भी उदाहरण हैं कि योगाभ्यासी कैंसर के मरीज चमत्कारिक तरीके से कैंसर से मुक्त हो गए, जबकि मेडिकल साइंस के मुताबिक ऐसा परिणाम असंभव था।
इन अध्ययनों के नतीजों का असर यह हुआ है कि विभिन्न प्रकार की धार्मिक मान्यताओं से परे कैंसर के मरीजों में योग निद्रा और योग अन्य क्रियाएं तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम आश्रम में बीते सप्ताह ही विभिन्न शोधों के परिणामों के आधार पर योगाभ्यासों से कैंसर मरीजों के उपचार को लेकर छह दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया गया। इसमें मोटोको सैटो और नीरज सिंह ने कैंसर की रोकथाम में योगाभ्यासों की भूमिका पर पेपर प्रस्तुत किए। स्वामी कुवलयानंद योग को आधुनिक वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर इसका प्रसार करना चाहते थे। ताकि योग के चिकत्सकीय पहलू को लोगों के सामने लाया जा सके। इसके लिए उन्होंने 1924 में कैवल्यधाम नाम से दुनिया का पहला योग रिचर्स इंस्टीट्यूट स्थापित किया था। यह मुंबई-पुणे के बीच लोनावाला में स्थापित है। स्वामी कुवलयानंद के संकल्पों को आत्मसात करते हुए वहां योग विज्ञान पर अनेक शोध कार्य किए जा रहे हैं। उनमें कैंसर पर शोध भी शामिल है।
दूसरी तरफ योग की विभिन्न क्रियाओं से कैंसर को काबू में करने के लिए अनुसंधानों का दायरा बढ़ता जा रहा है। यह सच है कि अभी तक इस बात के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि योग की क्रियाओं से कैंसर का शर्तिया इलाज हो सकता है। पर भारत से लेकर अमेरिका तक के योग विज्ञानियों में यह धारणा बलवती हुई है कि योग निद्रा जैसे शिथलीकरण के योगाभ्यासों की बदौलत कैंसर के गंभीर मरीजों की रिकवरी में तेजी आती है। कई चिकित्सकों का दावा है कि “योग निद्रा” योग कैंसर मरीजों के लिए चमत्कारिक औषधि की तरह साबित हुआ है।
टेक्सास के रेडियोथैरेपिस्ट डॉ ओसी सीमोनटन ने अपने प्रयोग में पाया कि रेडियोथेरेपी से गुजर रहे कैंसर के एक रोगी को ध्यान के बाद योग निद्रा योग का अभ्यास कराया गया था। उस रोगी को कहा गया कि वह योग निद्रा के अभ्यास के दौरान कल्पना करे कि उसके शरीर का सफेद रक्त कैंसर के जीवाणुओं से लड़ते हुए उन्हें नष्ट कर रहा है। इस अभ्यास का नतीजा यह हुआ कि मरीज का जीवनकाल काफी ब़ढ़ गया। आस्ट्रेलिया के मनश्चिकित्सक़ डॉ एइनसाई मीरेस के शोध का नतीजा पूर्ववर्ती शोध के नतीजों से एक कदम बढ़कर था। उन्होंने अपने प्रयोगों से साबित किया कि ध्यान और योग निद्रा के अभ्यासों की बदौलत मलाशय का कैंसर कम हो जाता है। वहीं फेफड़ों में प्राथमिक कैंसर से उत्पन्न होने वाले द्वितीयक कैंसर का बढ़ना रूक जाता है।
यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने बीते दो दशकों में किए गए शोधों का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि अभी तक ऐसे कोई नतीजे सामने नहीं आए, जिनके आधार पर कहा जा सके कि योग की कोई क्रिया शरीर को पूरी तरह कैंसर-मुक्त करने में कारगर है। पर इतना जरूर है कि कैंसर के मरीजों पर शिथलीकरण के योगाभ्यासों के प्रभाव आशाजनक हैं। इसलिए चिकित्सक मरीजों के उपचार के दौरान योगाभ्यासों की सहायता लेने लगे हैं। कैंसर रिसर्च यूके के अध्ययनों के नतीजे भी कुछ ऐसे ही हैं। इस संस्थान को अध्ययन के दौरान ऐसे भी मरीज मिले, जिन्होंने स्वीकार किया कि शिथलीकरण के योगाभ्यासों की वजह से न केवल उनकी रिकवरी तेजी से हुई, बल्कि बीमारी के दुष्परिणामों से जूझने की भी शक्ति मिली।
सवाल है कि यह योग निद्रा योग हैं क्या? महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में अष्टांग योगों की चर्चा की है। वे हैं – १) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि। प्रत्याहार को शोधकर ही शिथलीकरण के लिए योग निद्रा पद्धति विकसित की गई थी। प्रत्याहार का मतलब होता है इंद्रियों पर संयम। योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक विज्ञान की कसौटी पर साबित हो चुका है कि व्यक्ति जब योग निद्रा का अभ्यास कर रहा होता है तो वह मन उबाऊ एकाग्रता का शिकार नहीं होता। बल्कि उसकी चेतना कई अवस्थाओं से होकर गुजरती है। इससे मन हल्का होता है, नियंत्रित होता है। लिहाजा कैंसर सहित अन्य मनोदैहिक बीमारियों पर काबू पाना आसान हो जाता है। इसलिए योग की इस पद्धति को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सफलतापूर्वक अपनाया जा रहा है।
सच तो यह है कि चिकित्सा विज्ञान ने योग निद्रा योग का लोहा मान लिया। जर्मनी सरकार ने सन् 2013 में बारहवीं के विद्यार्थियों के लिए योग निद्रा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी थी। योग निद्रा अभ्यास के दौरान ऐसा लगता है कि व्यक्ति सोया हुआ है। पर हकीकत में उसकी चेतना सजगता के अधिक गहरे स्तर पर कार्य कर रही होती है। दूसरे शब्दों में योग निद्रा पूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है।
बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग निद्रा के गूढ़ ज्ञान को वैज्ञानिक ढ़ंग से विकसित करके उससे पहली बार दुनिया को परिचय कराया था। उन्होने ही तंत्र शास्त्र में वर्णित न्यास पद्धति के गूढ़ ज्ञान को वैज्ञानिक ढ़ंग से विकसित करके उससे दुनिया को परिचित कराया था। स्वामी सत्यानंद 35 वर्ष की उम्र में जब अपने गुरू स्वामी शिवानंद सरस्वती के ऋषिकेश स्थित आश्रम में थे तो एक ऐसा अनुभव हुआ कि उन्हें योग निद्रा के विज्ञान को विकसित करने में रूचि पैदा हो गई थी। योग निद्रा योग और उसके अन्य रोगों पर होने वाले प्रभावों के बारे में चर्चा फिर कभी।