किशोर कुमार //
महान योगी और दार्शनिक महर्षि अरविंद ने कोई नौ दशक पहले कहा था, ‘‘योग साधना का उद्देश्य केवल वैयक्तिक पूर्णता नहीं, वरन् विश्व उत्थान है। योग की राह पर चलने से समृद्धि आएगी, जो वास्तविक स्वराज्य का मार्ग प्रशस्त करती है, समाज व राष्ट्र की नींव को मजबूत व व्यवस्था को सुदृढ़ रखती है और विकास के नए दरवाजे खोलती है।“ सौ साल बीतत-बीतते यह बात सच होती दिख रही है। दो साल पहले अंतर्ऱाष्ट्रीय योग दिवस का थीम था – मानवता के लिए योग और इस साल का थीम था – स्वंय और समाज के लिए योग। ये दोनों ही थीम थोड़े से अंतर के साथ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हाल के वर्षों तक फोकस इस बात पर था कि करो योग रहो निरोग या योग भगाए रोग। पर जैसे-जैसे योग का प्रचलन बढ़ा, चिंतन-मनन प्रारंभ हुआ और योग के प्रभावों पर शोध कार्य होने लगे, योग के बहुआयामी पक्ष भी उभर कर सामने आ रहे हैं।
जैसे, उत्पादकता बढ़ाने में भी योग की बड़ी भूमिका होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात को शिद्दत से महसूस किया है। 10वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने इस बात की चर्चा भी की। कई अध्ययनों के परिणाम भी इस बात की गवाही देते हैं कि योग उत्पादकता बढ़ाने में मददगार है। उत्पादकता क्या है? संक्षेप में कहा जाए तो उत्पादन एक प्रक्रिया है, जबकि उत्पादकता उत्पादन का माप है। इसलिए, योग से जब खुद की काया स्वस्थ रहती है तो वह सामाजिक बेहतरी का साधन भी बन जाती है। उदाहरण के तौर पर, उत्तरी वेल्स में कर्मचारियों पर किए गए शोध से पता चला है कि योगाभ्यासियों ने गैर योगाभ्यासियों की तुलना में बीमारी के लिए बीस फीसदी कम छुट्टियां लीं। ऐसा ही शोध भारतीय टेलीफोन उद्योग में भी किया गया। पता चला कि योगाभ्यास करने वाले कर्मचारियों ने अन्य कर्मचारियों के मुकाबले दस फीसदी कम छुट्टियां ली थीं। दूसरी तरफ, इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ के अनुसार, अस्सी फीसदी कर्मचारी तनाव में रहते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकता प्रभावित होती है।
योग से काया किस तरह निरोग रहती है, यह बात पहेली नहीं रही, बल्कि अब लाखों-करोड़ों लोगों का अनुभव बन चुकी है। इस बात को दो बहुचर्चित उदाहरणों से समझिए। ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचने वाले एशिया के पहले शख्स दादाभाई नौरोजी के दामाद और पेशे से अभियंता होमी डाडिना शारीरिक रूप से अशक्त हो गए थे। न धन की कमी थी, न प्रभाव कम था। दुनिया का बेहतरीन इलाज उपलब्ध था। पर बात नहीं बन पा रही थी। मुंबई विश्व विद्यालय के कुलपति आरपी मसानी को बात समझ में आ गई थी कि योगाचार्य मणिभाई हरिभाई देसाई की प्रतिभा असाधारण है। लिहाजा उन्होंने मणिभाई को होमी डाडिना से मिलवाया। डाडिना तो स्वस्थ्य हुए ही, साथ ही कुछ अन्य लोगों को बीमारियों से मुक्ति मिल गई थी। इसके साथ ही 18 नवंबर 1897 को जन्में परमहंस माधवदास के योग्य शिष्य रहे मणिभाई योगेंद्र जी के नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए और उनके द्वारा स्थापित “द योगा इंस्टीच्यूट” मौजूदा समय में भारत के दस श्रेष्ठ योग संस्थानों में शूमार हो गया।
विश्व प्रसिद्ध योगी बीकेएस अयंगार के बारे में हम सब जानते ही हैं। पर उन्हें भी प्रसिदधि तब मिली थी, जब इंग्लैंड के विश्व विख्यात वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन रोग मुक्त हो गए थे। वे हाइपरएक्सटेंशन से पीड़ित थे। ब्रेंकियल आर्टरी गंभीर रूप से प्रभावित हो गई थी। न्यूरो कार्डियोलॉजी से संबंधित मामला होने के कारण असहनीय दर्द के साथ ही अन्य संभावित खतरे भी परेशान करने वाले थे। कई-कई दिनों तक सो नहीं पाते थे। उन्हें बीकेएस अय्यंगार के बारे में पता चला तो भारत आए। अय्यंगार योग की शक्ति का कमाल हुआ और मेनुहिन को बीमारी से मुक्ति मिल गई थी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसकी जानकारी मिली तो उन्हें शायद विश्वास न हुआ कि लाइलाज बीमारी योग से ठीक हो सकती है, जबकि वे खुद ही अनेक कठिन योग साधनाएं किया करते थे। खैर, उन्होंने मेनुहिन को अपने निवास स्थान तीन मूर्ति भवन में बुलाया और शीर्षासन करने की चुनौती दी। मेनुहिन ने सहजता से ऐसा कर दिखाया। नेहरू जी इतने प्रभावित और उत्साहित हुए थे कि खुद भी शीर्षासन कर बैठे थे। यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। देश-विदेश के अखबारों की सुर्खियां बनी और योग गुरु बीकेएस अय्यंगार रातों-रात दुनिया भर में मशहूर हो गए थे।
बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने सन् 1983 में पटना स्थित रोटरी क्लब में अपने व्याख्यान में कहा था, “मानव शरीर और मन पर योग के प्रभावों पर जो वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं, उन्हें मैं योग की उपलब्धि मानता हूँ और अपने जीवन की सार्थकता भी मानता हूँ, क्योंकि भारतवर्ष में योग का सामाजिक उपयोग हो सकता है, ऐसा लोग नहीं मानते थे। मैंने पिछले 17 सालों में मैंने 900 से अधिक वैज्ञानिक अनुसंधानों का नेतृत्व किया है या उनके साथ समन्वय किया है। इन अनुसंधानों से केवल एक बात कही जा सकती है-शरीर की बीमारियों में, मन की बीमारियों में और व्यक्तित्व की बीमारियों में जो भूमिका योग निभा सकता है, वह चिकित्सा या मनोचिकित्सक या कोई भी अन्य विज्ञान नहीं निभा सकता। यह एक दम्भपूर्ण वक्तव्य नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक निष्कर्ष है, जिस पर मैं पिछले सत्रह सालों के शोध के बाद पहुंचा हूँ।“
योग इतना प्रभावी क्यों होता है? इसलिए कि इस भौतिक शरीर में दो महान शक्तियां हैं। उनका न केवल रोगों और मानसिक समस्याओं के संदर्भ में, बल्कि ध्यान, एकाग्रता अथवा संकल्प शक्ति को विकसित करने के लिए दोहन करना होता है। ये शक्तियां हैं – पिंगला सूर्य शक्ति और इडा चन्द्र शक्ति। ये दोनों शक्तियाँ प्रकृति प्रदत्त हैं और इन्हीं के माध्यम से समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य सम्पादित होते हैं। जब ये दोनों शक्तियाँ असंतुलित और अस्त-व्यस्त हो जाती हैं, तब हमारे शरीर, मन, एवं संवेग में और अन्यत्र भी समस्याएं पैदा होती हैं। नाना प्रकार की योग विधियां इसी असंतुलन को दूर करने के लिए हैं।
योगेंद्र जी और अय्यंगार से जुड़े प्रसंगों और योग की वैज्ञानिकता से उत्पादकता बढ़ाने और राष्ट्रीय उत्थान में योग की महती भूमिका का पता चलता है।
(लेखक ushakaal.com के संपादक हैं।)