किशोर कुमार
भारत में पिछले एक दशक के दौरान सरकारी स्तर पर योग को जितनी अमहमित मिली, वह अभूतपूर्व है। सन् 2014 में योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुर्नस्थापित करने के बाद से भारत सरकार अक्सर ऐसे फैसले लेती है, जिनसे न केवल योगियों और योग संस्थानों का सम्मान बढ़ता है, बल्कि योग विद्या का व्यापक प्रचार-प्रसार भी होता है। 75वें गणतंत्र दिवस के मौके पर भी दुनिया ने देखा कि “योग से सिद्धि” झांकी और फ्रांस में वैदिक योग विद्या का व्यापक प्रचार-प्रसार करने वाले 100 वर्षीय योग गुरू चार्लोट चोपिन और भारतीय मूल के फ्रांसीसी योगाचार्य 79 वर्षीय किरण व्यास को पद्मश्री से नवाज कर किस तरह योग को अहमियत दी गई। इतना ही नहीं, देश के विभिन्न राज्यों के 291 योग प्रशिक्षकों को सपरिवार गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने के लिए न्योता गया था, जो देश भर में जमीनी स्तर पर योग के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने में उल्लेखनीय योगदान देते हैं।
पहले बात पद्मश्री से सम्मानित योगियों की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते साल जुलाई में जब फ्रांस गए थे तो पेरिस में प्रसिद्ध फ्रांसीसी योग शिक्षक सुश्री चार्लोट चोपिन से मुलाकात की थी। फिर ट्वीट करके सुश्री चोपिन की भारतीय योग व अध्यात्म के प्रति गहरी आस्था और फ्रांस में योग को बढ़ावा देने के लिए उनके अभूतपूर्व योगदान की सराहना की थी। सुश्री चोपिन ने श्री मोदी को बतलाया था कि फ्रांस में योग कितना समृद्ध हुआ है। साथ ही बतलाया कि योग खुशी ला सकता है और समग्र कल्याण को बढ़ावा दे सकता है, ये बातें फ्रांस के लोगों के लिए अब सैद्धांतिक बातें नहीं रह गईं हैं।
गुजरात में जन्मे और पले-बढ़े फ्रांसीसी योगी किरण व्यास की अनेक उपलब्धियों में एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि उनके कारण ही यूनेस्को तक योग की पहुंच बन पाई थी। इसकी भी मजेदार कहानी है। उन दिनों श्री व्यास यूनेस्को में शैक्षणिक क्षेत्र में काम करते थे। यूनेस्को के महानिदेक थे अमादौ-महतर एम’बो। कुछ खास मेहमानों के लिए एम’बो के घर डिनर पार्टी रखी गई तो एम’बो की पत्नी के विशेष आग्रह पर किरण व्यास भी उस पार्टी में शरीक हुए। पर उनके मन में यह सवाल बना रहा कि दिग्गजों की पार्टी में उन जैसे सामान्य कर्मचारी को क्यों न्योता गया था? रहा न गया तो पार्टी के बाद मन की बात जाहिर कर दी। श्रीमती एम’बो ने जो कुछ कहा, उससे योग विद्या की शक्ति का पता चलता है। उन्होंने कहा कि आप पास होते हैं तो एम’बो कठिन परिस्थितियों में भी बहुत शांत महसूस करते हैं, और खुद को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त करने में सक्षम होते हैं। किरण व्यास ने उन्हें बताया कि शायद ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे योगाभ्यास करते हैं। इस पर श्रीमती एम’बो ने उसने पूछा कि योग क्या है? जब उन्होंने योग विद्या के बारे में बताया तो एम’बो दंपति बेहद प्रभावित हुए और इस तरह यूनेस्को मुख्यालय में योग शिक्षा की बुनियाद पड़ गई थी।
अब बात योग से सिद्धि की। महान योगी श्रीराम शर्मा आचार्य कहा करते थे कि साधना का अर्थ है अपने आपे को साधना और इसका क्षेत्र अन्तःजगत है। अपने ही भीतर इतने खजाने दबे-गढ़े हैं कि उन्हें उखाड़ लेने पर ही कुबेर जितना सुसंपन्न बना जा सकता है। फिर किसी बाहर वाले से माँगने जाँचने की दीनता दिखाकर आत्म-सम्मान क्यों गँवाया जाए? और भारत तो अलौकिक प्रतिभा संपन्न योगियों की ही भूमि है। हम सबने पढ़ा है, सुना है तैलंग स्वामी के बारे में। उन्हें बनारस का चलता-फिरता महादेव कहा जाता था। उनसे जुड़ी चमत्कारिक कहानियों का उल्लेख बनारस गजेटियर में भी है। अपने योग बल से 280 वर्षों तक एक ही शरीर धारण किए रहे। लाइलाज बीमारियां उनकी दृष्टि पड़ते ही ठीक हो जाती थी। काशी राजा के अंग्रेज अधिकारी ने नाव से यात्रा करते समय तैलंग स्वामी को गांगाजी में जल के सतह पर पद्मासन लगाए देखा तो उन्हें अपनी नाव में बैठाकर कुछ बात करनी चाही। नाव में सवार होने के कुछ क्षण बाद ही स्वामी जी ने अफसर से देखने के लिए उसकी तलवार मांगी। पर तलवार गंगा जी में गिर गई। जाहिर है कि अफसर बेहद नाराज हुआ। तब स्वामी जी ने गांगा जी में हाथ डाला और उनकी हाथ में तीन तलवारें आ गईं। स्वामी जी ने कहा, इनमें से जो तुम्हारी हो उसे पहचान कर ले लो। यह चमत्कार देख कर अफसर तो भौचक्का रह गया और अपने अपराध के लिए क्षमा मांग ली थी।
गणतंत्र दिवस समारोह में योग से जिस सिद्धि की बात कही गई थी, निश्चित रूप से उनका अभिप्राय ऐसी सिद्धियों से नहीं था। किसी भी युग में ऐसी सिद्धियां हर किसी के वश की बात रही भी नहीं होगी। जिस सिद्धि की बात की गई, वह स्वस्थ्य काया और शारीरिक-मानसिक संतुलन के संदर्भ में थी। हम सब ने योगबल का जादू देखा भी कि फौजी महिलाएं किस तरह कठिनतम काम आसानी से कर पा रही थीं। गणतंत्र दिवस समारोह के लिए कई-कई दिनों तक अभ्यास होता है। इस अभ्यास के दौरान भी योगाभ्यास अनिवार्य रूप से शामिल था। संदेश यही दिया गया कि आधुनिक युग में सबके लिए योग जरूरी है। ताकि काया स्वस्थ रहे और शारीरिक-मानसिक संतुलन बना रहे, जो श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार करने के लिए बेहद जरूरी है।
यह सुखद है कि केंद्र सरकार ने योगासन को खेल विधा के रूप में भी मान्यता दी है और इसे प्राथमिकता श्रेणी में रखा है। योग को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। कई विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रम में योग को शामिल कर लिया है। आयुष मंत्रालय ने वन-स्टॉप स्वास्थ्य समाधान के रूप में नमस्ते योग ऐप प्रस्तुत कर चुका है, जो लोगों को योग से संबंधित जानकारियों, कार्यक्रमों और योग कक्षाओं तक पहुंचने में सक्षम बनाता है। इसी तरह, योग का लाभ दुनिया भर में पहुंचाने के लिए वाई-ब्रेक और डब्ल्यूएचओ-एम योगा भी लॉन्च किया गया है। देश भर में आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र खोले गए हैं। योग इन केंद्रों का महत्वपूर्ण हिस्सा है और शिक्षक/प्रशिक्षक योग को जमीनी स्तर तक ले जाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं।
भारतीय योग विद्या को बढ़ावा देने और योग का सम्मान करने की दिशा में भारत सरकार जिस तरह आगे बढ़कर काम कर रही है, वह प्रशंसनीय है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)