किशोर कुमार
अस्थि रोग को बड़े-बुजुर्गों की बीमारी माना जाता रहा है। पर अब यह बीते दिनों की बात हो गई। खासतौर से गठिया के लक्षण किसी भी उम्र के लोगों में प्रकट हो जा रहे हैं। चिकित्सा जगत में ऐसे ही लक्षणों वाला रूमेटाइड आर्थराइटिस जाना-पहचाना शब्द बन चुका है। इस बीमारी के कारण युवाओं की जिंदगी तबाह हो रही है। ऑटोइम्यून बीमारी है, जो ज्यादातर जोड़ों को प्रभावित करती है। चिकित्सा विज्ञानी कहते हैं कि यह बीमारी तब होती है, जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली, जो आम तौर पर शरीर को संक्रमण और बीमारी से बचाने में मदद करती है, अपने ही ऊतकों पर हमला करती है।
दुनिया भर में इस बीमारी को लेकर शोध किए जा रहे हैं। भारत में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने भी शोध किया है और पता चला कि जिन मरीजों को दवाओं के साथ ही योगाभ्यास भी कराया गया, उन्हें बीमारी को नियंत्रित करने में ज्यादा सफलता मिली। यह शोध 25 से 55 साल के 64 मरीजों पर किया गया था। शोध परिणामों को नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित किया गया है। अमेरिका के अर्थराइटिस फाउंडेशन के परिणाम भी कुछ ऐसे ही रहे। इस संस्थान ने आयंगार योग संस्थान के सहयोग से शोध किया तो मरीजों को इतनी राहत मिली कि अब बड़े पैमाने पर शोध किया जा रहा है।
इसी तरह, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान और स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान ने बंगलुरू में संयुक्त रूप से कमर दर्द से पीड़ित महिला और पुरूषों को मिलाकर 25 मरीजों पर योगाभ्यासों के प्रभाव का अध्ययन किया। इस काम के लिए ऐसे मरीजों को शामिल नहीं किया गया था, जिन्हें किसी बीमारी की वजह से दर्द था या वे गंभीर रूप से बीमार थे। 25 मरीजों में 22 महिलाएं और 13 पुरूष थे। अध्ययन के लिए कराए गए आसन, प्राणायाम और ध्यान संबंधी योगाभ्यासों का नतीजा हुआ कि कमर दर्द से वर्षों से परेशान मरीजों को सात दिनों के भीतर काफी राहत मिल गई थी।
स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के योग तथा मैनेजमेंट स्टडीज विभाग ने पीठ दर्द से परेशान सूचना प्रौद्योगिकी पेशे से जुड़े 46 युवाओं पर योग के प्रभावों का अध्ययन किया। देखा गया कि योगाभ्यास न करने वाले मरीजों की तुलना में योगाभ्यास करने वाले मरीजों को दस दिनों के अभ्यास से अस्सी फीसदी तक राहत मिल गई थी। नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन और बोस्टन मेडिकल सेंटर की ओर से भी ऐसा ही अध्ययन कराया गया था, जिसकी अगुआई डॉ रॉबर्ट सपर की टीम ने की थी। अध्ययन के दौरान देखा गया कि कमर दर्द पुराना हो या नया, आसन, प्राणायाम और ध्यान की कुछ विधियां बेहद कारगर होती हैं। अध्ययन इसके लिए कम आय समूह वाले 320 मरीजों का चयन किया गया था। शोधकर्ता जानना चाहते थे कि ऐसे मरीजों को योग से कितना लाभ मिल सकता है। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि योगाभ्यास से आश्चर्यजनक परिणाम मिलते हैं।
ज्यादातर अध्ययनों के दौरान देखा गया कि पवन मुक्तासन, मार्जारि आसन और भुजंगासन मेरूदंड और दूसरे जोड़ों को लचीला बनाने में काफी मददगार है। पीठ दर्द में प्रारंभिक स्तर पर सुप्त वज्रासन, ताडासन, कटिचक्रासन और मत्स्येंद्रासन लाभप्रद पाए गए। सायटिका के दर्द से राहत पाने में वज्रासन, मकरासन और बेहद सावधानी के साथ भुजंगासन व शलभासन लाभप्रद साबित हुए। स्लिप डिस्क के मरीजों को विशेष रूप से अद्वासन औऱ मकरासन से काफी लाभ मिला। एक बात और जो बेहद महत्वपूर्ण है। शरीर में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होने से उसका अवशेष जैसे, यूरिक एसिड बाहर नहीं निकल पाता तो हड्डियों के जोड़ों में अपना स्थान बना लेता है। जिन लोगों की पाचन क्रिया ठीक न होती है, वे भी शारीरिक कड़ेपन के शिकार हो जाते हैं। इसलिए पीठ व कमर दर्द से मुक्ति पाने के लिए दवाइयां और योगाभ्यास ही काफी नहीं होता। खानपान पर भी ध्यान देना जरूरी होता है।
योग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्राप्त मुंबई स्थित “द योगा इस्टीच्यूट” ने आधुनिक जीवन पद्धति की वजह से पीठ दर्द की समस्या पर व्यापक अध्ययन किया है। साथ ही भागदौड़ की जिंदगी में समयाभाव को देखते हुए समस्याग्रस्त लोगों के लिए कुछ आसान टिप्स सुझाए हैं। उसके मुताबिक आसनों में मुख्यत: पर्वतासन और कपालभाति, नाड़ी शोधन प्राणायाम व भ्रामरी प्राणायाम पीठ दर्द से मुक्ति दिलाकर रीढ की हड्डियों को स्वस्थ रखने में मददगार है। बशर्ते विटामिन डी का लेवल संतुलित रखा जाए। साथ ही लगातार एक ही मुद्रा में बैठकर या खड़े होकर काम करने से बचा जाए। कसे हुए परिधान और जूते भी रीढ़ की हड्डियों के लिए समस्या पैदा करते हैं।
श्रीश्री स्कूल ऑफ योगा ने भुजंगासन पर अध्ययन किया तो पाया कि यह पीठ व कमर दर्द के लिए अनुशंसित योगासनों में भुजंगासन बेहद असरदार है। यह आसन स्पांडिलाइसिस के मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। इस आसन का अभ्यास आसान तो है। पर कई सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। जैसे, कार्पल टनल सिंड्रोम यानी हाथ और कलाई में उत्पन्न होने वाला तड़पा देने वाला दर्द, हर्निया, पेट दर्द या पीठ, कलाई या पसलियों में दर्द हो तो यह योगभ्यास कदापि नहीं किया जाना चाहिए।
पीठ दर्द और कमर दर्द पर प्रकाशित पुस्तकों में अमेरिका के हड़्डी रोग विशेषज्ञ हैमिल्टन हॉल की पुस्तक “द बैक डॉक्टर” अत्यधिक चर्चित है। उसमें कहा गया है कि कारण चाहे जो भी हो, पर अस्सी फीसदी लोग अपने जीवनकाल में गठिया, पीठ दर्द या कमर दर्द के शिकार होते ही हैं। भारत के महानगरों और औद्योगिक शहरों के लिए कमर और पीठ दर्द बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी से पीड़ितों में सत्तर फीसदी तक लोग महानगरों व औद्योगिक क्षेत्रों के होते हैं। खास बात यह है कि किशोर वय वाले भी तेजी से इस बीमारी की जद में आ रहे हैं। लैंसेट के एक कार्यदल ने बीते साल पीठ व कमर दर्द की समस्या का अध्ययन किया था। उससे पता चला कि ऐसे मामलों में मरीजों को सर्जरी से विशेष लाभ नहीं हुआ था। इन तथ्यों का सार यह कि प्रशिक्षित योगाचार्यों की निगरानी में अस्थि रोग से पीड़ित लोग योगाभ्यास करें तो कम समय में कष्टों से छुटकारा मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)