श्रावण महीना हिंदू धर्म में भगवान शिव की भक्ति के लिए विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। यह महीना भक्ति, तपस्या, और आध्यात्मिक साधना के लिए समर्पित है, क्योंकि इस समय प्रकृति और मानव चेतना का तालमेल विशेष रूप से शक्तिशाली होता है। पर, शिव-शक्ति आकाश रेखा पर अवस्थित मंदिरों का विशेष आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। ये मंदिर न केवल भगवान शिव और शक्ति के प्रतीक हैं, बल्कि प्राचीन भारतीय यौगिक विज्ञान और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ मानव जीवन के संबंधों को भी दर्शाते हैं।
जरा सोचिए, हज़ारों साल पहले, जब न कोई उपग्रह था, न जीपीएस, न ही आधुनिक मापन के उपकरण, तब भी एक देशांतर रेखा पर अठारह मंदिरों का निर्माण किया जाना, नि:संदेह चौंकाने वाली बात है। पर, इसके साथ ही इस बात की पुष्टि भी होती है कि प्राचीन काल में भारतीय वास्तु विद्या समृद्ध थी और योगियों की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समझ गहन थी। तभी तो सदियों से कहा जाता रहा है कि भारत केवल भूमि नहीं, बल्कि वैदिक विज्ञान और आध्यात्म की पावन धरा है!
जिस रेखा पर अठारह मंदिर अवस्थित हैं, उसे “शिव-शक्ति आकाश रेखा” के नाम से जाता है। उत्तराखंड का केदारनाथ मंदिर, तेलांगना का कालेश्वरम मुक्तेश्वर स्वामी मंदिर, आंध्र प्रदेश का श्रीकालहस्ती मंदिर, तमिलनाडु का रामनाथस्वामी मंदिर आदि शिव शक्ति आकाश रेखा पर ही हैं, जो प्राचीन भारत के यौगिक विज्ञान, खगोल शास्त्र और वास्तुकला का अद्भुत संगम है। इन मंदिरों में पांच मंदिर प्रकृति के पांच तत्वों के साथ मानव जीवन के गहरे संबंधों को भी अभिव्यक्त करते हैं। प्रत्येक मंदिर का विशिष्ट तत्व और उसका प्रतीकात्मक लिंग भक्तों को उस तत्व की शक्ति और महत्व को समझने में मदद करता है। चार मंदिर तमिलनाडु में और एक आंध्र प्रदेश में है।
वायु तत्व का प्रतीक श्रीकालहस्ती मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक की लौ निरंतर हिलती-डुलती रहती है, जो वायु की उपस्थिति को दर्शाती है। हम जानते हैं कि वायु तत्व जीवन शक्ति और गति का प्रतीक है। यह मंदिर, आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति के निकट स्वर्णमुखी नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन और पवित्र शिव मंदिर है। इसे दक्षिण का कैलाश या दक्षिण का काशी भी कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएँ इसे और भी विशेष बनाती हैं। शिव पुराण के अनुसार, आदिवासी भक्त कन्नप्पा ने एक दिन देखा कि शिवलिंग की आंख से रक्त बह रहा है। उसने अपनी एक आंख निकाली और शिवलिंग में लगा दी। पर इसके साथ ही दूसरी आंख से भी रक्तस्रात शुरु हो गया। उसने अपनी दूसरी आँख भी निकालने लगा। तभी भगवान शिव साक्षात् प्रकट हो गए और उसे मोक्ष प्रदान किया।
पृथ्वी तत्व का प्रतीक कांचीपुरम का एकंबरेश्वर मंदिर का शिवलिंग रेत से बना हुआ स्वयंभू लिंग है। शिव पुराण में वर्णित कथाओं के मुताबिक, सती ने शिव जी से विवाह करने के लिए यहीं एक आम के वृक्ष के नीचे रेत के शिवलिंग के समक्ष तपस्या की थी। वह वृक्ष आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। कथा है कि भगवान शिव ने पार्वती जी की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए पास की वेगवती नदी, जो कभी स्वर्णमुखी नदी के रूप में विख्यात थी, में बाढ़ उत्पन्न कर दी। ताकि रेत का शिवलिंग बह जाए। लेकिन पार्वती जी ने शिवलिंग को अपनी बाहों में लपेटकर बाढ़ से बचा लिया था। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
थिरुवनैकवल का जंबुकेश्वर मंदिर जल तत्व का प्रतीक है। इस मंदिर में शिवलिंग के नीचे एक प्राकृतिक जल स्रोत है और उसका जल गर्भगृह में शिवलिंग को स्पर्श करता है। कथा है कि भगवान शिव यहाँ एक जामुन के पेड़ के नीचे प्रकट हुए थे। शिव पुराण और स्कंद पुराण के मुताबिक, एक हाथी प्रतिदिन कावेरी नदी से अपनी सूँड में जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करता था। दूसरी तरफ, एक मकड़ी शिवलिंग के चारों ओर जाले बुनती थी। ताकि उसे धूल, कीटों आदि से बचाया जा सके। दोनों को एक दूसरे के तरीके विपरीत मालूम पड़ते थे। पर, भगवान दोनों की भक्ति से प्रसन्न हुए और मोक्ष प्रदान किया। कथा के अनुसार, मकड़ी अगले जन्म में चोल वंश के राजा कोचेंगन्नन के रूप में जन्मी, जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण या जीर्णोद्धार करवाया था।
थिरुवन्नामलई का अन्नामलैयर मंदिर न केवल अग्नि का प्रतीक है, बल्कि शिव के अग्नि-लिंग स्वरूप, ब्रह्मा-विष्णु की कथा, महादीपम उत्सव आदि मंदिर को दक्षिण भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक बनाते हैं। शिव पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर बहस हो गई। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव एक अनंत अग्नि-स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जो आकाश से पाताल तक फैला था। उन्होंने दोनों को चुनौती दी कि जो इस स्तंभ के आदि या अंत का पता लगा लेगा, उसे श्रेष्ठ माना जाएगा। ब्रह्मा जी ने झूठ का सहारा लिया और बोल दिया कि उन्होंने शीर्ष देख लिया है। विष्णु भगवान ने आधार न पाकर अपनी हार स्वीकार कर ली। शिव जी ने ब्रह्मा जी की झूठ से क्रोधित उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा धरती पर नहीं होगी, जबकि सत्य-निष्ठा के लिए विष्णु जी को वरदान दिया।
चिदंबरम का नटराज मंदिर आकाश तत्व का प्रतीक है। इस मंदिर में भगवान शिव नटराज यानी नृत्य मुद्रा के रूप में पूजे जाते हैं, और यहाँ का आकाश-लिंग निराकार है, जो आकाश की अनंतता और व्यापकता को दर्शाता है। मंदिर में एक विशेष स्थान, जिसे चिदंबरम रहस्य कहा जाता है, वहाँ एक खाली स्थान (आकाश) को पूजा जाता है, जो शिव की निराकार प्रकृति को दर्शाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, पतंजलि योगसूत्र के रचयिता ऋषि पतंजलि ने सर्प रूप में चिदंबरम में भगवान शिव की तपस्या की थी। वे शिव के तांडव को देखना चाहते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें नटराज स्वरूप में दर्शन दिए और तिल्लई वन में अपना स्थायी निवास बनाया।
इस तरह, इन मंदिरों का वैदिक विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य, आत्म-जागरूकता, विज्ञान और आध्यात्मिकता का संतुलन, भक्ति, निष्ठा, और सादगीपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है। ताकि हम आधुनिक चुनौतियों जैसे पर्यावरण संकट, मानसिक तनाव सामाजिक विखंडन आदि से निपट सकें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक है)