किशोर कुमार
दुनिया के झंझटों से परेशान होकर कुछ व्यक्ति एक वटवृक्ष के नीचे बैठे वार्तालाप कर रहे थे। सभी विमर्श कर रहे थे कि तपस्या से प्रभावित होकर भगवान ने दर्शन दे दिए और वर मांगने को कहा तो क्या मांगेंगे? किसी ने अन्न मांगने का सुझाव दिया तो किसी ने बल मांगने की इच्छा जताई। विशाल वटवृक्ष उनकी बातों पर ठहाका लगाता हुआ बोला- मेरी बात मानो, तुम लोगों से न तपस्या होगी, न उपलब्धियाँ प्राप्त होंगी, क्योंकि यदि इतना मनोबल होता तो संसार से घबराकर न भागते। मैं बिना मांगे ही एक वरदान देता हूँ, उसका नाम है प्रेम। प्रेम की भावना विकसित करो, फिर देखो जो वस्तु चाहोगे, वहीं प्राप्त करने की क्षमता तुम्हारे अन्दर आ जाएगी। मुंबई में पांच दिनों तक चला गायत्री परिवार का विशाल अश्वमेघ महायज्ञ भी मुख्यत: प्रेम यानी प्राणि मात्र से प्रेम, राष्ट्र से प्रेम के संदेश के साथ संपन्न हो गया। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भी कहना होगा कि यह महायज्ञ समयानुकूल था और तन-मन को स्वस्थ आधार देकर वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को विकासित करने के लिहाज से मील का पत्थर साबित होगा।
भारतीय परंपरा में अश्वमेध यज्ञ का विशेष महत्व है। अश्वमेध यज्ञों के महत्व के वर्णन से वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराणों के पन्ने भरे पड़े हैं। प्राचीन काल में, इन्हें पारिस्थितिक संतुलन प्राप्त करने, ईश्वर की कृपा प्राप्त करने और राष्ट्र को एकजुट करने के लिए किया जाता था। श्रीराम का अश्वमेघ यज्ञ और उस दौरान लव-कुश के युद्ध की कहानी कौन नहीं जानता। श्री राम धर्म के प्रति समर्पित थे और उन्होंने अपने राज्य के कल्याण और सुरक्षा के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यह उनका धर्म के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक था और उनके शासनकाल में धार्मिक न्याय का पालन करने का संकल्प प्रकट करता था। महाभारत का महायुद्ध समाप्त होने के बाद देश में शांति और सद्भाव का साम्राज्य स्थापित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से धर्मराज युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था।
आधुनिक युग की समस्याएँ अलग हैं तो इस यज्ञ का स्वारूप भी बदला हुआ है। कलियुग धर्माचार्यों की चिंता इस बात को लेकर होती है कि किसी विधि मानव में देवत्व का उदय होना चाहिए। ताकि आत्मवत् सर्वभूतेषु (सभी जीवित प्राणी आत्मीय हैं) और वशुधैव कुटुंबकम् (संपूर्ण पृथ्वी हमारा परिवार है) की भावना का विकास हो सके। यह तो तभी संभव होगा जब स्वस्थ शरीर, शुद्ध मन और सभ्य समाज का निर्माण होगा। गायत्री परिवार का मुंबई में 21 से 25 फरवरी तक पांच दिवसीय अश्वमेघ महायज्ञ को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। विज्ञान की कसौटी पर हमें यज्ञ, हवन और मन्त्रोच्चारण के महत्व का पता चल चुका है। अश्वमेघ यज्ञ के रूप में मिनी-कुंभ में पांच दिनों के भीतर 2.4 करोड़ मंत्र-युक्त यज्ञ आहुतियों से अभूतपूर्व सकारात्मकता उत्पन्न हुई, जो आने वाले समय में देश और विशेष रूप से मुंबई शहर के लिए शांति और समृद्धि में परिलक्षित होगी।
अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा संचालित 47वां अश्वमेध महायज्ञ इस मायने में अनूठा था कि यह प्रतिभाओं के परिष्कार तथा नियोजन के साथ नशा मुक्ति को भी समर्पित था। ताकि राष्ट्र को वह ऊर्जा प्रदान हो जिससे राम राज्य की स्थापना हो सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा कि गायत्री परिवार का अश्वमेध यज्ञ, सामाजिक संकल्प का एक महा-अभियान बन चुका है। इस अभियान से जो लाखों युवा नशे और व्यसन की कैद से बचेंगे, उनकी वो असीम ऊर्जा राष्ट्र निर्माण के काम में आएगी।
इस यज्ञ की खास बात यह रही कि गायत्री परिवार ने इसे प्रचलित अनुष्ठान से अलग इसकी वैज्ञानिकता बतलाते हुए हर कार्य संपन्न कराया। नतीजा हुआ कि यज्ञ में भाग लोगों के मन में यज्ञ के परिणामों को लेकर स्पष्टता बनी रही। इससे यज्ञ ज्यादा ही प्रभावशाली बन पड़ा। जैसे, लोगों को पता था कि महायज्ञ में गायत्री मंत्रोचार के परिणाम क्या होने हैं। इसके लिए उनके समक्ष पूर्व में किए गए शोधों के नतीजे थे, जिनमें बताया गया है कि ध्वनि कंपन की शक्ति को विज्ञान के क्षेत्र में क्यों स्वीकार किया गया है और ये कंपन सूक्ष्म और ब्रह्मांडीय स्तर पर ऊर्जा क्षेत्रों में प्रवेश करके क्या परिणाम देते हैं। इसके लिए गायत्री परिवार की ओर से एक अमेरिकी वैज्ञानिक के शोध नतीजों का हवाला दिया गया। अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हॉवर्ड स्टिंगुल ने स्थापित किया था कि गायत्री मंत्र के पाठ से प्रति सेकंड 110,000 ध्वनि तरंगें पैदा होती हैं।
इसी तरह और भी शोध नतीजे लोगों के संज्ञान में लाए गए थे। जैसे, गायत्री परिवार के हरिद्वार स्थित ब्रह्मवर्चस अनुसंधान संस्थान में स्थापित यज्ञोपैथी प्रयोगशाला में एक यज्ञ के अनुष्ठान के दौरान मंत्रोच्चार के साथ जड़ी-बूटियों के उर्ध्वपातन के प्रभाव का अध्ययन से पता चला था कि यह पल्मोनरी टीबी से छुटकारा दिलाने के लिए बड़े महत्व का है। पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस दुनिया भर में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। अकेले भारत में हर साल लगभग अस्सी हजार नए मामले सामने आते हैं। मंत्र के बार-बार लयबद्ध जप और गहरी सांस लेने के कारण, यज्ञ के दौरान उत्पन्न औषधीय वाष्प चमत्कारिक परिणाण देता है।
लोगों ने जाना कि यज्ञ मिर्गी के मरीजों के लिए कितना फलदायी है। भारत में, लगभग 10 मिलियन लोग मिर्गी से पीड़ित हैं। चिंताजनक बात यह है कि ज्यादातर मिर्गी पीड़ितों का कभी इलाज नहीं किया जाता है। दक्षिण अफ़्रीका में पारंपरिक चिकित्सकों ने मिर्गी के मरीजों पर यज्ञों के प्रभावों का अध्ययन किया तो पाया कि यज्ञ की प्रक्रिया वांछनीय औषधीय फाइटोकेमिकल्स और अन्य स्वस्थ पोषक तत्वों के लाभों को बढ़ाती है। इससे मरीजों की रिकवरी आसान होती है।
रूस के यहूदी जीवाणु वैज्ञानिक व्लादीमीर हाफ्किन ने हैजा-रोधी टीका विकसित करके भारत में सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। गायत्री परिवार ने उनके एक शोध परिणाम के हवाला से भी यज्ञ के चिकित्सकीय प्रभावों से लोगों को अवगत कराता रहा है। डॉ. हाफकिन के मुताबिक, “घी और चीनी को मिलाकर जलाने से धुआं निकलता है जो कुछ रोगों के कीटाणुओं को मारता है और श्वास नली से संबंधित कुछ ग्रंथियों से स्राव होता है, जो हमारे दिल और दिमाग को आनंद से भर देता है।”
यज्ञ की वैज्ञानिकता ने युवावर्ग पर व्यापक प्रभाव डाला। खास बात यह रही कि महायज्ञ से आध्यात्मिक लाभ लेने वालों की संख्या ज्यादा थी। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में महायज्ञ के सकारात्मक परिणाम दिखेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)