सर्दियों में पेट की समस्याएं बढ़ जाना आम बात है। इसके कई वैज्ञानिक और जीवनशैली से जुड़े कारण होते हैं। शरीर का तापमान गिरने से लेकर खान-पान में बदलाव तक, सब कुछ हमारे पाचन तंत्र पर असर डालता है। ठंड के मौसम में शरीर अपनी ऊर्जा का उपयोग शरीर को गर्म रखने में अधिक करता है। इससे मेटाबॉलिज्म और पाचन क्रिया धीमी हो जाती है। जब खाना धीरे पचता है, तो पेट में भारीपन, गैस और ब्लोटिंग (पेट फूलना) जैसी समस्याएं होने लगती हैं। प्यास कम लगने के कारण शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाने और शारीरिक सक्रियता कम हो जाने के कारण पूर्व से चली आ रही पेट संबंधी समस्याएं विकाराल रुप धारण करती हैं।
कोविड-19 के बाद विभिन्न स्तरों में किए गए अध्ययनों के मुताबिक, फंक्शनल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स (जठरांत्र विकार), हाइपोथायरायडिज्म, पिट्यूटरी ग्रंथि में विकार, मानसिक तनाव और मधुमेह अनियंत्रित होने से पेट संबंधी रोग प्रकट हो रहे हैं। स्वीडेन के गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी के अध्ययन से पता चला है कि केवल फंक्शनल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स यानी जठरांत्र विकार की वजह से ही भारत सहित दुनिया के 33 देशों के औसतन दस में से चार लोग परेशान हैं। यह अध्ययन 73,000 लोगों पर किया गया था। मुंबई स्थित द योगा इस्टीच्यूट के मुताबिक, अनियंत्रित मधुमेह से पाचन तंत्र इसलिए बिगाड़ जाता है, क्योंकि इंसुलिन हार्मोन का स्तर अपर्याप्त होने से नसों को नुकसान होता है, और कब्ज बढ़ जाता है।
पेट की समस्याओं के समाधान के लिए यौगिक उपाय हैं। इसके लिए योग्य योग प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण तो लेना ही चाहिए। साथ ही बिहार योग विद्यालय की पुस्तक “समस्या पेट की समाधान योग का” जरुर पढ़ना चाहिए। अनुभव बताता है कि बीमारी और उसके उपचार के बारे में सैद्धांतिक जानकारी होने से योगाभ्यास का अधिकतम लाभ लेना संभव हो पाता है। पेट की समस्याओं को हल्के से लेना कई बार खतरनाक हो जाता है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते रहे हैं – “पेट की समस्या खासतौर से अपच, जितना हम समझते हैं, उससे भी बड़ी समस्या है। पर, अकेले चिकित्सा विज्ञान पेट के अनेक रोगों का उपचार करने में असमर्थ है, क्योंकि उनकी जड़ों में मानसिक कारण होते हैं। शरीर को शुद्ध एवं मानसिक समस्याओं को दूर करने हेतु शक्तिशाली विधियों की आवश्यकता होती है। योग विज्ञान ने हजारों वर्ष पूर्व ऐसी विधियाँ विकसित कर रखी हैं। लिहाजा, पेप्टिक अल्सर हो या कब्जियत, पेट की बीमारियों को आजीवन चलने वाली असाध्य बीमारी नहीं माना जा सकता।“
पेट संबंधी बीमारियों खासतौर से कब्ज के कारण तो कई हैं। पर मुख्य कारण दो माने गए हैं। पहला है – मानसिक और दूसरा है – आहार संबंधी दोष। “समस्या पेट की समाधान योग का” पुस्तक के मुताबिक, शरीर में कब्ज तभी होता है जब मन में कब्ज हो। पाचन-क्रिया का मन और शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर शोध हुआ था। अमेरिकी चिकित्सक डॉक्टर बीमॉण्ट ने बन्दूक की गोली से घायल एक मरीज का अध्ययन किया और पाया कि भावनात्मक असन्तुलन के समय आमाशय की परत लाल हो जाती है। मरीज के आमाशय में गोली लगी थी, उसका घाव ठीक से भरा नहीं था और पेट में एक छिद्र रह गया था। उसी छिद्र से डॉक्टर बीमॉण्ट ने भूख, दर्द, निराशा, क्रोध, प्रसन्नता, दुःख तथा सन्तोष आदि विभिन्न भावनात्मक अवस्थाओं में रोगी के आमाशय का अध्ययन किया एवं उससे होने वाले स्राव को संग्रहित किया।
वैज्ञानिक शोधों से आहार और रोग के बीच का अंतर्संबंध का भी पता चल चुका है। उसके मुताबिक, आधुनिक समाज में कैंसर, गठिया, दमा, हृदयरोग तथा अन्य भयंकर रोगों का सम्बन्ध आहार से ही है। कुछ विशेषज्ञों का तो यह भी कहना है कि पाचन सम्बन्धी अनेक सामान्य असन्तुलन इन भयंकर रोगों के उत्पन्न होने के प्रारम्भिक संकेत हैं। ‘यू.एस. सीनेट सिलेक्ट कमेटी ऑन न्यूट्रीशियन एण्ड ह्यूमन नीड्स’ की 85 पेज की रिपोर्ट में इस बात को विस्तार से बताया गया है। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने शोधों और अनुभवों के आधार पर कहा था – “गठिया और कैंसर जैसे अनेक रोगों का यौगिक उपचार करते में हमने पाया है कि पाचन प्रणाली की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इतना ही नहीं कि हमने अपच और दोषपूर्ण आहार की आदतों को शारीरिक ह्रास एवं गम्भीर जीर्ण रोगों का मुख्य कारण पाया है।“
बिहार योग विद्यालय, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान और द योग संस्थान इस बात पर एकमत हैं कि रोगियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए षट्कर्म की क्रियाओं शंख प्रक्षालन, नेति व कुंजल के अलावा सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, सरल मत्स्यासन, भुजंगासन, धनुरासन, गोमुखासन, वज्रासन, शशांकासन, उष्ट्रासन, मार्जरी आसन, वक्रासन, ताड़ासन व कटिचक्रासन, प्राणायाम की विधियों में कपालभाति, उज्जायी व भ्रामरी प्राणायाम और प्रत्याहार की विधियों में केवल योगनिद्रा का अभ्यास कराया जाए तो समस्या का काफी हद तक समाधान होता है। पर, योग प्रशिक्षकों की सलाह इसलिए जरुरी है कि एक ही योग विधि अलग-अलग परिस्थितियों में भिन्न परिणाम देती हैं। जैसे, पश्चिमोत्तानासन को कब्ज और पाचन संबंधी विकारों के लिए उत्कृष्ट आसन माना जाता है, किन्तु उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और स्पॉडिलाइटिस से पीड़ित लोग करें तो घातक हो जाता है।
पाचन तंत्र को ठीक रखने में प्राणायाम की भी बड़ी भूमिका होती है। पाचन तंत्र और मस्तिष्क का सीधा संबंध है। तनाव होने पर शरीर फाइट या फ्लाइट मोड में चला जाता है। दरअसल, जब हमारा मस्तिष्क किसी खतरे को महसूस करता है, तो हमारा सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है, जो शरीर को दो विकल्पों के लिए तैयार करता है। पहला, उस खतरे का सामना करो (लड़ो) या वहां से बचकर निकल जाओ (भागो)। जब शरीर लड़ नहीं पाता तो पाचन-तंत्र धीमा हो जाता है। प्राणायाम से रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है और तनाव कम होता है। इससे शरीर का पाचन-तंत्र व्यवस्थित होता है। आमतौर पर कपालभाति, उज्जायी और भ्रामरी प्राणायाम की अनुशंसा की जाती है। मानसिक संतुलन के लिए एकाग्रता भी काफी मायने रखती है। इस काम में सरल योगनिद्रा के चमत्कारिक परिणाम मिलते है।
इस तरह हम देखते हैं कि योगासन के साथ ही आहार भी संतुलित हो तो पेट संबंधि समस्याएं तो दूर होती ही हैं, कई गंभीर रोग होने की संभवानाएं भी क्षीण हो जाती हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

