Author: Kishore Kumar

Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com

अब अमेरिकी शोध संस्थानों ने भी कहा – कोविड-19 के वैक्सीन आने तक योग ही सहारा है। योग और ध्यान के जरिए ही कोरोना संक्रमण से अधिकतम बचाव संभव है। भारतीय मूल के अमेरिकी योग गुरू दीपक चोपड़ा, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और इस अध्ययन के लिए हार्वड यूनिवर्सिटी से संबद्ध मासेचुसेट्स इस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी ने यौगिक उपायों पर अध्ययन करके यह निषकर्ष निकाला है। https://timesofindia.indiatimes.com/home/science/considering-meditation-and-yoga-as-adjunctive-treatment-for-covid-19-study/articleshow/77038071.cms

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कोरोना महामारी कहर बरपा ही रही है। बरसात शुरू होते ही अब डेंगू और चिकनगुनिया ने भी दस्तक दे दी है। पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्वामी रामदेव ने इंडिया टीवी पर बताया है कि यौगिक विधियों खासतौर से प्राणायाम और घरेलू दवाओं से किस तरह इन बीमारियों से मुकाबला किया जा सकता है। https://www.indiatvnews.com/health/treat-dengue-chikungunya-with-yoga-pranayam-and-home-remedies-by-swami-ramdev-635344

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भारत सरकार ने प्रकारांतर से स्वीकार कर लिया है कि वैक्सीन आने तक कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए योग ही सर्वोत्तम उपाय है। विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों के आधार पर सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है।   https://www.livemint.com/news/india/govt-plans-yoga-lessons-for-covid-19-patients-11594989168013.html

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ऑनलाइन योग कारोबार भले चमकता हुआ दिख रहा है। पर इस चमक के पीछे छिपा है योग प्रशिक्षकों का बेबस दर्द। लगभग दो तिहाई योग प्रशिक्षकों के पास या तो कोई काम नहीं है या मामूली काम है। कई योग प्रशिक्षक तो रोजमर्रे की जरूरतें पूरी करने के लिए हर्बल दवाइयां बेच रहे हैं। कोरोनाकाल योग के लिए स्वर्णिम काल और बहुत सारे योग संस्थानों और योग प्रशिक्षकों के लिए संकट काल है। सुनने में यह विरोधाभासी बातें लग सकती हैं। पर यही हकीकत है। ऑनलाइन योग के कारोबार की जैसी चमक दिख रही है, उसकी असलियत कुछ और है।…

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विज्ञान के इस युग में क्या ऐसा समय आएगा कि हमारे पास ऐसी टाइम मशीन होगी कि हम अपनी उम्र घटाने-बढ़ाने में सक्षम होंगे। पौराणिक कथाओं के पात्रों की तरह तीनों लोकों की यात्रा कर सकेंगे और अतीत और भविष्य को देख पाने में सक्षम हो पाएंगे? ये सवाल बेतुके जान पड़ते हैं। पर अध्ययन और महापुरूषों के साथ सत्संग से मेरी धारणा बदलती जा रही है। लगता है कि ब्रह्मांड में जो चीजें घटित हो रही हैं, वे हमारे जीवन में आज न कल साकार जरूर होंगी। आखिर प्राचीन ऋषि-मुनियों की तरह हम भी तरंगों के जरिए बातचीत कर…

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भक्तिकाल के महान संत अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ उर्फ रहीम का एक प्रसिद्ध दोहा है – “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥“ हम सब बोलचाल में इसी बात को कहते भी हैं कि जहां सुई की जरूरत है, वहां तलवार का क्या काम? पश्चिम के दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने लॉ ऑफ इंस्ट्रुमेंट कहा। पर अब्राहम मास्लो की व्याख्या सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई – यदि आपके पास केवल और केवल हथौड़ा ही है तो आप हर वस्तु को कील समझने लगते हैं। गुरूत्तर उद्देश्य वाली योग विद्या के साथ व्यवहार रूप में ऐसा…

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नेत्र रोग ही नहीं, हृदय रोग से लेकर अनिद्रा जैसी बीमारियों में भी त्राटक योग बेहतर परिणाम देता है। कुछ विकसित देशों में तो त्राटक पर काफी अध्ययन किया जा चुका है। पर अब भारत में भी इस क्रिया की महत्ता को समझते हुए सीमित संसाधनों के बावजूद कई अध्ययन किए जा चुके हैं। यह सिलसिला जारी है। ज्यादातर अध्ययन आंखों से संबंधित बीमारियों को लेकर किए गए हैं। अब मनोकायिक और हृदय संबंधी बीमारियों में त्राटक के प्रभावों पर अध्ययन पर जोर ज्यादा है। महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग के षटकर्मों में प्रमुख त्राटक क्रिया के बारे में…

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दुनिया भर में योग की बढ़ती स्वीकार्यता की वजह से धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा खड़ी की गई मजहब की दीवारें गिर रही हैं। विभिन्न प्रकार के शारीरिक औऱ मानसिक संकटों से जूझते लोगों के जीवन में योग चमत्कार पैदा करता है तो उन्हें यह स्वीकार करने में तनिक भी कठिनाई नहीं होती कि योग विज्ञान है और इसका किसी मजहब ले लेना-देना नहीं है। यही वजह है कि इस्लामिक देशों में भी सूर्य नमस्कार योग को लेकर पहले जैसा आग्रह नहीं रहा। भारत में भी ऐसे योगाभ्यासियों की तादाद तेजी से बढ़ी है, जो योग को धर्मिक कर्मकांडों का हिस्सा या…

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गुरू पूर्णिमा के मौके पर “उषाकाल” बेवसाइट आप सबके समक्ष औपचारिक रूप से प्रस्तुत करते हुए खुशी हो रही है। यह योग पत्रकारिता का “उषाकाल” है। योग विज्ञान और वैज्ञानिक आध्यात्मवाद की बातें पत्रकारीय दृष्टिकोण से परख कर योगाभ्यासियों के साथ साझा करने का छोटा-सा प्रयास है। बेशक, नई किस्म की पत्रकारिता है। पर आधुनिक युग की जरूरतों के अनुरूप है। ऐसी पत्रकारिता की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही थी। यह निर्विवाद है कि आज की अनेक समस्याओं की जड़ में व्यक्तिगत और सामाजिक असंतुलन है। समाज विज्ञानियों, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों से लेकर वैज्ञानिक संतों तक ने इस विषय…

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किशोर कुमार // अपने देश में योग की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है। अब वह दिन लदने को है, जब आत्म-ज्ञान दिलाने वाली यह महान विद्या कमर दर्द, वजन घटाने आदि तक सीमित होती जा रही थी और पश्चिम के विकसित देश हमारे परंपरागत योग को विज्ञान की कसौटी पर कसने के बाद उसे ऐसे प्रस्तुत करने लगे थे मानों उन्होंने कुछ नया आविष्कार कर दिया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योग में विशेष दिलचस्पी की वजह से हालात बदले हैं। वैसे तो बिहार योग विद्यालय और कैवल्यधाम जैसे कई योग संस्थान वर्षों से परंपरागत की मशाल जलाए हुए हैं। पर उन्हें…

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