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Author: Kishore Kumar
Spiritual journalist & Founding Editor of Ushakaal.com
आसन प्राणायाम मुद्रा बंध
आजकल उपलब्ध सुसंगठित योग पुस्तकों में आसन प्राणायाम मुद्रा बंध को अंतर्राष्ट्रीय जगत में एक विशेष स्थान प्राप्त है। बिहार योग विद्यालय द्वारा सन् 1969 में इसके प्रकाशन के बाद से कम से सोलह बार इस पुस्तक का पुनर्मुद्रण हो चुका है। अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किए गए। इस बहुआयामी संदर्भ ग्रंथ में स्पष्ट सचित्र विवरण के साथ ही क्रमबद्ध दिशा-निर्देश एवं चक्र-जागरण हेतु विस्तृत मार्ग-दर्शन प्रदान किए गए हैं। योगाभ्यासियों एवं योगाचार्यों को इस ग्रंथ से हठयोग के सरलतम से उच्चतम योगाभ्यासों का परिचय प्राप्त होता है। चिकित्सकों के लिए भी यह बेहतर ग्रंथ है। बिहार योग…
यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कैंसर
भारत में नौ फीसदी लोगों की मौत कैंसर हो जाती है। कैंसर के मरीजों की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है। इस जानलेवा बीमारी के इलाज में योग की महत्ता सिद्ध हो चुकी है। आस्ट्रेलिया में कैंसर के चार मरीजों ने लंबे इलाज के बाद जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। चिकित्सकों ने अधिकतम छह महीने की आयु बताई थी। पर योग की शक्ति से कमाल हो गया। वे सभी मरीज बारह से पंद्रह साल तक जीवित थे। बिहार योग विद्यालय की संन्यासी स्वामी निर्मलानंद सरस्वती पेशे से एमबीबीएस, डीए, एमडी (मुंबई) हैं। उन्होंने बिहार योग विद्यालय…
तो इसलिए नहीं मिट पाता कर्मों का लेख
किशोर कुमार // वेदों में ईश्वर के विषय में प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि वह सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् सर्वद्रष्टा कर्माध्यक्ष और कर्मफलदाता है, जो समस्त जीवों को उनके कर्मों के अनुसार ही न्यायपूर्वक फल प्रदान करता है। पर सवाल है कि सूक्ष्म जगत में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा और कर्मफल कैसे तय होता होगा? इस लेख का प्रतिपाद्य विषय यही है। वैदिक शास्त्रों के इस कर्मफल-सिद्धांत से जहां चित्रगुप्त भगवान का सीधा वास्ता जुड़ा हुआ है। वहीं, वैदिक ज्योतिष में शनिदेव को भी कर्मफलदाता और न्याय प्रदाता माना गया है। इसे महज संयोग मानिए या किसी प्रकार का अंतर्संबंध कि…
जब श्वेतकेतु का अहंकार आत्मज्ञान में बाधक बन गया था
महर्षि उद्दालक आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु चौबीस वर्ष तक गुरु-गृह में रह कर चारों वेदों का पूर्ण अध्ययन करके घर लौटा, तो उसने मन ही मन विचार किया कि मैं वेद का पूर्ण ज्ञाता हूँ, मेरे समान कोई पंडित नहीं है, मैं सर्वोपरि विद्वान और बुद्धिमान हूँ। इस प्रकार के विचारों से उसके मन में गर्व उत्पन्न हो गया और वह उद्धत एवं विनय रहित होकर बिना प्रणाम किये ही पिता के सामने आकर बैठ गया। आरुणि ऋषि उसका नम्रता रहित उद्धत आचरण देख कर जान गये कि इसको वेद के अध्ययन से बड़ा गर्व हो गया है। तो भी…
Baba Gorakhnath
गोरखनाथ या गोरक्षनाथ जी महाराज प्रथम शताब्दी के पूर्व नाथ योगी के थे ( प्रमाण है राजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाया गया पञ्चाङ्ग जिन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत प्रथम शताब्दी से की थी जब कि गुरु गोरक्ष नाथ जी राजा भर्तृहरि एवं इनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य के समय मे थे ) [1][2] गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। गोरखनाथ जी का मन्दिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है।[3] गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरखनाथ के शिष्य बाबा भैरौंनाथ जी थे जिनका वध…
सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देता योग
किशोर कुमार // योग इतना प्रभावी क्यों है? दरअसल, भौतिक शरीर में दो महान शक्तियां हैं – पिंगला सूर्य शक्ति और इडा चन्द्र शक्ति। ये दोनों शक्तियाँ प्रकृति प्रदत्त हैं और इन्हीं के माध्यम से समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य सम्पादित होते हैं। जब ये दोनों शक्तियाँ असंतुलित और अस्त-व्यस्त हो जाती हैं, तब हमारे शरीर, मन, एवं संवेग में और अन्यत्र भी समस्याएँ पैदा होती हैं। योग विधियां इसी असंतुलन को दूर करने के लिए हैं। मानवता के लिए योग और स्वंय एवं समाज के लिए योग, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवसों के ये दोनों ही थीम थोड़े से अंतर के…
स्वामी कुवल्यानंद : ऐसे कराया योग और विज्ञान का मिलन
बीसवीं सदी के प्रारंभ में योग विधियों पर शोध करके यौगिक चिकित्सा का अलख जगाने वाले स्वामी कुवलयानंद के गुजरे पांच दशक से ज्यादा बीत चुके हैं। पर उनकी ज्ञान-गंगा का प्रवाह अनवरत जारी है। उन्होंने जब योग-मार्ग पर यात्रा शुरू की थी तो योग साधु-संतों तक ही सीमित था और गृहस्थों के बीच उसको लेकर नाना प्रकार की भ्रांतियां थीं। उन्होंने जब आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर साबित कर दिया कि यह विश्वसनीय विज्ञान है तो देश-विदेश के लोग बरबस ही उस ओर आकृष्ट हुए। एक तरफ महात्मा गांधी ने उनकी योग विद्या का लाभ लिया तो दूसरी तरफ…
आईआईटी कानपुर की गीता सुपरसाइट की धूम
गीता सुपरसाइट यानी इंटरनेट पर भारतीय दार्शनिक ग्रंथों का भंडार। इस तरह के कार्य टुकड़ों में तो संगठनों या व्यक्तियों किया है। पर किसी एक प्लेटफार्म पर इतना व्यापक कार्य कही नहीं है। आईआईटी, कानपुर की वजह से यह कार्य संभव हो सका है। वेबसाइट लिंक इस प्रकार है – https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/, जिस पर वेद हो या उपनिषद, ब्रह्मसूत्र हो या योगसूत्र, महाभारत हो या रामायण प्राय: सभी वैदिक ग्रंथ अंग्रेजी सहित ग्यारह भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराए गए हैं। सभी मूल ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं। वेबसाइट इस तरह तैयार किया गया है कि दो ग्रंथों का तुलनात्मक अध्ययन एक…
फिर छा गया महर्षि महेश योगी का भावातीत ध्यान
किशोर कुमार // महर्षि महेश योगी ज्योतिर्मठ के शंकाराचार्य रहे ब्रह्मलीन ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। हिमालय की गोद में कठिन साधना और अपने गुरू की ऊर्जा का असर ऐसा हुआ कि महेश प्रसाद वर्मा महर्षि महेश योगी बन गए थे। ब्रह्मानंद सरस्वती ने जब तय किया कि वे शंकराचार्य नहीं रहेंगे तो उनके सामने विकल्प था कि वे महर्षि योगी को शंकराचार्य बना सकते थे। पर उन्होंने ऐसा न करके उन्हें आशीर्वाद दिया दिया था – “तुम्हारी ख्याति दुनिया भर में होगी।“ कालांतर में ऐसा ही हुआ भी। शंकराचार्य के पद पर रहते हुए शायद यह संभव न था।…
श्रीकृष्ण की बांसुरी, गोपियां और स्वामी सत्यानंद की दिव्य-दृष्टि
रासलीला, श्रीकृष्ण की बांसुरी, उसकी सुमधुर धुन और गोपियां…. इस प्रसंग में बीती शताब्दी के महानतम संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की व्याख्या एक नई दृष्टि प्रदान करती है। यह शास्त्रसम्मत है, विज्ञानसम्मत भी है। जन्माष्टमी के मौके पर विशेष तौर से ज्ञान मार्ग के लोगों के लिए एक प्रेरक कथा। परमगुरू और कोई सौ से ज्यादा देशों में विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुकी बिहार योग पद्धति के जन्मदाता परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के श्रीमुख से सत्संग के दौरान अनेक भक्तों ने यह कथा सुनी होगी। फिर भी यह सर्वकालिक है। प्रासंगिक है। श्रीकृष्ण को अपनी बांसुरी से…
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