इस्कॉन (अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ) के वरिष्ठ संन्यासी और प्रचारक इंद्रद्युम्न स्वामी की आत्मकथा “एडवेंचर्स ऑफ ए ट्रैवलिंग मॉंक” चर्चा में है। इस पुस्तक में स्वामी जी के वैश्विक प्रचार और आध्यात्मिक यात्राओं की यादें हैं। उनके 52 वर्षों के अनुभव, विभिन्न देशों में भक्ति प्रचार, उत्सवों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और इस्कॉन के संदेश को फैलाने के प्रयासों का जीवंत चित्रण किया गया है।
वे अपने गुरु श्रील प्रभुपाद के निर्देशानुसर विभिन्न महाद्वीपों में कृष्णभावनामृत का प्रचार करते रहे और भक्ति योग, कीर्तन और सत्संग के माध्यम से आध्यात्मिक संदेश फैलाते रहे। यात्रा के दौरान नाना प्रकार की चुनौतियों के बावजूद अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका और एशिया में धार्मिक आयोजन करके स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के साथ कृष्ण भक्ति का समन्वय बखूबी किया। इस तरह इस पुस्तक में न केवल स्वामी जी की आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन है, बल्कि बताने की कोशिश है कि भक्ति, करुणा और सेवा के माध्यम से दुनिया को कैसे जोड़ा जा सकता है।
इस तरह यह भक्तों, प्रचारकों और आध्यात्मिक खोजियों के लिए प्रेरणादायक ग्रंथ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस आत्मकथा के कायल हैं और वे इसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी एक प्रेरणादायक आत्मकथा के रूप में देखते हैं, जो भारत की वैदिक परंपराओं को वैश्विक स्तर पर प्रसारित करने में सहायक है। यह पुस्तक किंडल संस्करण में उपलब्ध है और वैश्विक पाठकों के लिए सुलभ है। यह आध्यात्मिक साधना, प्रचार और वैश्विक एकता को समर्पित जीवन की प्रेरणादायक झलक प्रदान करती है।
इंद्रद्युम्न स्वामी सन् 1971 में कृष्ण भावनामृत आंदोलन से जुड़े थे और बाद में श्रील प्रभुपाद से दीक्षा ग्रहण की थी। बीते पाँच दशकों में उन्होंने दुनिया भर में भगवद्गीता और गौड़ीय वैष्णव परंपरा का सघन प्रचार किया।