किशोर कुमार //
बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद भगवान शिव को प्रिय सावन महीने और भक्ति की बात आते ही अपने शिष्यों को किसी पूरन चंद की कथा जरूर सुनाते थे। बताते, पूरन चंद वांछित फल पाने के लिए आध्यात्मिक साधनाएं किया करता था। पर लंबे समय में कोई फल न मिलता दिखा तो गुरु की शरण में पहुंच गया। कहने लगा, “नारायण की मूर्ति की छह महीने पूजा की। कोई लाभ नहीं हुआ। कृपया कोई अधिक शक्तिशाली उपाय बताइए।” गुरु ने पूरन को शिव की मूर्ति देते हुए कहा, “शिव पंचाक्षर मंत्र, ‘ॐ नमः शिवाय’ की साधना करो। शिव जी दयालु हैं। वे तुम्हारी मनोकामनाएं पूरी कर देंगे।”
पूरन चंद अगले छह महीनों तक शिव पंचाक्षर मंत्र की साधना करता रहा और नारायण की मूर्ति को किनारे कर दिया। पर शिव मंत्र भी काम आता न दिखा तो फिर गुरु से कहा, “इस साधना से भी कोई फायदा नहीं दिखता। कृपा करके मुझे वह मंत्र दीजिए, जिससे मेरा कल्याण हो जाए।” गुरु मुस्कुराए। उन्होंने कहा, “इस युग में माँ काली सबसे दयालु हैं। उनकी पूजा करो। नवार्ण मंत्र – “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” का जाप करो।”
अब काली की पूजा शुरू हुई। शिव की मूर्ति उसी स्थान पर रख दिया, जहां नारायण की मूर्ति रखी थी। मां काली की भक्ति में डूबा पूरन चंद मां को धूप दिखा रहा था तो उसका ध्यान गया कि धूप की खुशबू शिव और नारायण को भी मिल रही है। यह बात पूरन को मंजूर न था। लिहाजा उसने पहले शिव जी की मूर्ति हाथ में ली और ऐसा व्यवहार किया मानो वह मूर्ति न हो, साक्षात शिव जी हों। वह शिव जी की नाक में रुई डालने की कोशिश करने लगा। तभी चमत्कार हुआ। हाथ से मूर्ति गायब हो गई और साक्षात शिव जी उपस्थित हो गए। पूरन दंग रह गया। भगवान ने कहा, “कोई भी वरदान मांगो, पूरन। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।” पूरन ने कहा, “प्रभु, मैं हैरान हूँ। जब मैंने आपकी आराधना की, तब आपने मुझे आशीर्वाद देने की कृपा नहीं की। लेकिन अब मैं आपको त्याग चुका हूं तो आप खुद प्रकट हो गए हैं। आपकी यह लीला मेरी समझ से परे है।”
शिव जी ने कहा, “मेरे बच्चे, इसमें कुछ भी रहस्य नहीं है। जब तक तुम मुझे धातु का टुकड़ा मात्र मानकर अपनी कामनाओं की सिद्धि के लिए पूजा करते रहे, तो मेरा प्रकट होना संभव न था। लेकिन जब तुमने मेरा अस्तित्व स्वीकार कर लिया तो मैं तुमसे दूर कैसे रह सकता था?” पूरन भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति से भर गया और उनके चरणों में लेट गया। अब मांगने को कुछ भी न रहा। अपनी निश्छलता और भक्ति से सब कुछ पा चुका था।
यह प्रसंग किसी को कल्पित कथा लग सकती है। पर महाकवि और शिव भक्त विद्यापति से जुड़ा प्रसंग भी कम रोचक नहीं है। इस प्रसंग से साबित हुआ कि यदि शुद्ध भक्ति-भाव हो तो भगवान को अपने सेवक का सेवक बनने से भी परहेज नहीं होता। बिहार के मधुबनी जिले के भवानीपुर गांव में उगना महादेव मंदिर है। कथा हैं कि तपती गर्मी में राह चलते विद्यापति जी का गला सूखने लगा तो साथ चल रहे अपने सेवक उगना से जल का प्रबंध करने को कहा। उगना जंगल में गया और जल ले आया। जल पीते ही विद्यापति जी को यह समझते देर न लगी कि यह साधारण जल नहीं, बल्कि गंगाजल है। उन्हें संदेह हुआ कि उगना कोई अवतारी पुरुष है। वे उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर साथ रहने लगे थे। विद्यापति जी ने उगना के चरण पकड़ लिए। उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। वह कोई और नहीं, बल्कि साक्षात शिव थे। उगना महादेव मंदिर शिव जी की कृपा का परिणाम बताया जाता है।
अब आपको नब्बे के दशक का एक प्रसंग बताता हूं, जो बीसवीं सदी के महान संत स्वामी सत्यानंद सरस्वती की तपोभूमि झारखंड के देवघर जिला स्थित रिखिया धाम से संबंधित है। वहां यूगोस्लाविया की एक महिला अपने पांच साल के बच्चे के साथ पांच दिवसीय राम नाम आराधना सत्र में भाग लेने गई थी। बच्चे का नाम ओम था। संभवत: परमहंस जी ने ही यह नामकरण किया था। ओम का मन भगवान की मूर्तियों में रम गया था। वह भगवान की छवि वाले खिलौने ही स्वीकार करता। बाकी फेंक देता था। एक दिन तो हद हो गई। ओम आश्रम में ही गणेश जी की मूर्ति को हॉर्लिक्स पिलाता दिखा। लोगों ने समझाया कि यह असली गणेश जी नहीं हैं तो वह असली गणेश जी के साथ ही शिव जी से मिलने को बेचैन हो गया।
बात परमहंस जी तक पहुंची। परमहंस जी ने इतना ही कहा कि बच्चे की निश्छल जिद को तो प्रभु को पूरी करनी होती है। इसके बाद आराधना सत्र के अंत तक परमहंस जी ने ओम के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा और ओम ने भी असली शिव जी से मिलने की इच्छा व्यक्त नहीं की। लेकिन आराधना सत्र के बाद उस युगोस्लाव ने अपने बच्चे के साथ मुंगेर स्थित गंगा दर्शन आश्रम के लिए प्रस्थान किया तो रास्ते में ओम ने बताया कि उसने रिखिया में असली शिव को देखा था। उनके चारों ओर बाघ की खाल होती थी और हाथ में त्रिशूल। बार-बार पूछने पर भी पांच वर्षीय ओम् एक जैसी कहानी ही सुनाता था। परमहंस जी को फिर सब कुछ बताया गया तो वे केवल मुस्कुरा कर रह गए। इस चमत्कार के बारे में कहा कुछ भी नहीं। बल्कि अपने पुराने वक्तव्य को दोहराया, अगली सदी भक्तियोग की सदी होगी। पदार्थ, वैद्युतिकी, नाभिकीय भौतिकी आदि पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक भक्ति पर अनुसंधान करके बताएंगे कि आस्था, विश्वास और भक्ति का मानव पर किस तरह प्रभाव डालता है? भक्ति मानव मस्तिष्क के विद्युत चुंबकीय तरंगों को किस तरह प्रभावित करती है?
सच है कि बीते पांच दशकों में आध्यात्मिकता, भक्ति और मंत्रों की शक्ति पर अनेक वैज्ञानिक शोध हुए हैं। साबित हुआ कि इनसे आंतरिक ऊर्जा ऊर्ध्वगामी बनाती है। भक्ति – समर्पण, श्रद्धा का मार्ग है। मंत्रों की शक्ति से चार चांद लग जाती है। इसलिए, गुरुजन कहते हैं कि शिव प्रिय पवित्र सावन माह में ईश्वर में भक्ति को प्रबल बनाकर विज्ञानसम्मत शिव पंचाक्षर मंत्र, ‘ॐ नमः शिवाय’ को ही साध लिया जाए, तो जीवन रूपांतरित और आनंदित हो जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व “उषाकाल” के प्रमोटर-संपादक हैं।)