आत्मज्ञानी संतों की सूक्ष्म ऊर्जा हमें हर पल, हर क्षण स्पंदित करती है और सत्कर्मों के लिए प्रेरित करती है। इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस (इस्कॉन) की स्थापना करके कृष्ण-भक्ति आंदोलन के जरिए दुनिया भर में छा जाने वाले श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपादजी इसके उदाहरण हैं। वे यदि भौतिक शरीर में होते तो आज 129 वर्ष पूरे कर चुके होते। उनकी महासमाधि के भी लगभग 47 साल होने को हैं। पर, उनकी सूक्ष्म ऊर्जा की शक्तियां भक्तों को उनकी उपस्थिति का सदैव अहसास कराती रहती है, प्रेरित करती रहती हैं।
इसे कुछ उदाहरणों से समझिए। आध्यात्मिक फिल्म “महावतार नरसिम्हा” भारत के कोने-कोने में धूम मचा रही है। यह फिल्म वैसे तो भगवान विष्णु के नरसिम्हा अवतार की पौराणिक कथा पर आधारित है, जो विष्णु पुराण, नरसिम्हा पुराण और श्रीमद् भागवत पुराण से प्रेरित है। पर, इसका आधार है स्वामी श्रील प्रभुपादजी की शिक्षाएं और उनकी सूक्ष्म शक्तियां। फिल्म के निर्माता कुशल देसाई और निर्देशक अश्विन कुमार इस्कॉन और श्रील प्रभुपाद के विचारों से इतने प्रेरित हुए कि उनकी शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक एनिमेशन फिल्म का निर्माण कर दिया।
यदि संत की सूक्षम शक्तियों का प्रकाश न मिला होता तो यह फिल्म भी सामान्य व्यावसायिक फिल्मों की श्रेणी में खड़ी हो चुकी होती। पर, यह फिल्म रुपहले पर्दे पर ऐसी धूम मचा रही है कि पचास साल पूर्व की भक्ति फिल्म “जय संतोषी मां” की याद ताजा हो आई है। उस फिल्म ने भी बड़ी धूम मचाई थी। सिनेमा घर मंदिरों जैसे हो गए थे। अश्विन कुमार को इस्कॉन का भक्त माना जाता है, और वे इस्कॉन के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को अपनी रचनात्मक प्रक्रिया में शामिल कर चुके हैं। उन्होंने कई इंटरव्यू और सोशल मीडिया पोस्ट में स्पष्ट किया कि इस फिल्म के कथानाक और इसके गीत इस्कॉन के संस्थापक भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की शिक्षाओं से ही प्रेरित हैं।
संतों की सूक्ष्म शक्तियां आधुनिक जमाने के रिमोट कंट्रोल की तरह होती हैं। विज्ञान ने इतनी प्रगति की है कि हमारे हाथो का एक छोटा-सा डिवाइस टीवी से लेकर ड्रोन तक को नियंत्रित और संचालित करता है। संतों की सूक्ष्म शक्तियां भी इसी तरह काम करती हैं। इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस (इस्कॉन) के कार्यकलापों में भी इसके चिन्हें स्पष्ट रुप से दिखते हैं। तभी प्रभुपाद जी की समाधि (14 नवंबर 1977) के बाद भी इस्कॉन का लगातर विस्तार होता रहा है। सन् 1977 तक इस्कॉन ने लगभग 108 मंदिर, केंद्र, स्कूल, और फार्म कम्युनिटी थे। आज विश्व भर में लगभग 500 से अधिक केंद्र हैं। इस्कॉन के मयापुर (पश्चिम बंगाल), वृंदावन, और मुंबई स्थित प्रमुख तीर्थ स्थलों को भव्यता प्रदान की जा चुकी है। इनसे लाखों अनुयायी भक्तिभाव से जुड़े हुए हैं।
श्रील प्रभुपाद के जीवन पर गौर करें तो पता चलता है कि वे जन्म-जन्मांतर से कृष्ण-भक्त थे। जन्म के बाद ज्योतिष ने भी भविष्यवाणी की थी कि शुभ लक्षणों से युक्त यह बालक सत्तर वर्ष की अवस्था में समुद्र पार जाएगा और महान धर्म गुरु के रुप में 108 मंदिरों की स्थापना करेगा। उनकी ही पुस्तकों में इस बात का उल्लेख है। दिव्य जीवन संघ, ऋषिकेश के संस्थापक और बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी स्वामी चिदानंद सरस्वती कहते थे, “कर्म और पुनर्जन्म का नियम कोई “हिंदू सिद्धांत” नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक और सार्वभौमिक नियम है, जैसे गुरुत्वाकर्षण या आर्किमिडीज का सिद्धांत। यह नियम हमेशा से अस्तित्व में था और ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है।“ नीमहांस के मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे डॉ सतवंत पसरीचा ने शोध करके इस बात को प्रमाणित किया था।
कलकत्ते में जन्मे श्रील प्रभुपाद में पूर्व जन्मों के संस्कार और ज्योतिष की भविष्यवाणी के लक्षण बचपन से दिखने लगे थे। पर जब श्री चैतन्य महाप्रभु की परंपरा वाले संत श्रील भक्तिसिद्धांत ठाकुर की उन पर दृष्टि पड़ी तो ऐसा लगा मानो वे श्रीकृष्ण की कृपा रुपी वर्षा में पूरी तरह नहा गए। अब उन पर चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन को विस्तार देते हुए श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार करने की जिम्मेवारी थी। वे गुरु के निर्देश पर सत्तर साल की अवस्था में सन् 1965 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में पहुंचे तो वहां के लिए अजनबी थे। पर, अमेरिका की धरती पर वेद-वेदांग और श्रीकृष्ण-भक्ति के बीज पड़ चुके थे। स्वामी विवेकानंद ने वेद-वेदांग का प्रचार कर रखा था तो परमहंस योगानंद कृष्ण और क्राइस्ट की साम्यता बताते हुए श्रीमद्भगवतगीता का प्रचार कर चुके थे। महर्षि महेश योगी और परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती से लेकर बीकेएस आय्यंगार तक अमेरिका और यूरोप में योग का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। पर, कृष्ण-भक्ति को आंदोलन बनाने का श्रेय श्रील प्रभुपाद को ही जाता है।
पश्चिमी देशों में भारतीय आध्यात्मिक संतों के चरण जहां-जहां पड़ चुके थे, वहां श्रील प्रभुपाद का काम आसान हो गया। जैसे, विश्व प्रसिद्ध रॉक बैंड बीटल्स के जार्ज हैरिसन सन् 1970 में श्रील प्रभुपाद से मिले और इंग्लैंड में इस्कॉन के मंदिर की स्थापना का काम आसान हो गया। जार्ज हैरिसन महर्षि महेश योगी के शिष्य थे। इस कारण से उनका अध्यात्म के प्रति झुकाव हो चुका था। उन्होंने ऋषिकेश स्थित महर्षि योगी के आश्रम में रहकर लंबे समय तक साधना भी की थी। खैर, तात्कालिक परिस्थितियों का निर्माण चाहे जिस वजह से भी हुआ हो, पर इतना तो सत्य है कि ईश्वर का काम रुकता नहीं। फिर, चैतन्य महाप्रभु ने भी कह रखा था कि कृष्णभावनामृत विश्व के गांव-गांव में पहुंचेगा। सत्स्वरुप दास गोस्वामी लिखित पुस्तक “प्रभुपाद” में इसका उल्लेख है। इस तरह, तमाम भविष्यवाणियां और गुरु की अपेक्षाएं श्रील प्रभुपाद के जरिए फलित हो गईं।
श्रील प्रभुपाद का प्रमुख मंत्र “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” था, जिसके साथ उन्होंने विश्व में कृष्ण भक्ति का प्रचार किया था। मंत्र मानव की चेतना को किस तरह प्रभावित करती है, इसके वैदिक औऱ वैज्ञानिक साक्ष्य भरे पड़े हैं। ध्यानपूर्वक सिर्फ पाँच मिनटों तक ओम जप से अल्फा और डेल्टा तरंगों में वृद्धि हो जाती है। इससे शरीर की स्नायविक उत्तेजनाओं में कमी आती है। मस्तिष्क की अतिसक्रियता कम हो जाती है। फिर महामंत्र के साथ संकीर्तन का प्रभाव तो कई गुणा ज्यादा होता है।
इन सबके अलावा, कृष्ण परंपरा पर सत्तर से ज़्यादा खंडों में लिखी गई उनकी पुस्तकें श्रील प्रभुपाद द्वारा दुनिया को दिया गया महत्वपूर्ण उपहार हैं। विश्वास है कि उनकी सूक्ष्म शक्तियां पूर्ववत हम सबको सत्कर्मों के लिए प्रेरित करती रहेंगी। 129वीं जयंती पर सादर नमन।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)