कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण भारत सहित दुनिया भर में योग का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। योगशास्त्रों में योग का अंतिम लक्ष्य आत्मोत्थान कहा गया है। पर, दुनिया भर में ज्यादातर लोग स्वास्थ्य कारणों से योगाभ्यास करते हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) अनुकूलित योग उपायों से स्वास्थ्य संवर्द्धन की चाहत वाले योगाभ्यासियों का कितना हित होगा? कही ऐसा तो नहीं होगा कि एआई अनुकूलित यौगिक उपाय योग विद्या के लिए अभिशाप बन जाएंगे और लाखो योग प्रशिक्षक बेरोजगारी के दंश झेलने को मजबूर हो जाएंगें? इन सारे सवालों को लेकर चल रही छिटपुट चर्चाएं अब धार पाती जा रही हैं।
इस बहस जाने से पहले जरा समझिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अनुकूलित योग के नए-नए उपाय भारत सहित दुनिया भर में इतने लोकप्रिय होते जा रहे हैं कि कई कंपनियों का कारोबार आसमान छू रहा है? दरअसल ये उपाय जिम जाने वालों और ऑनलाइन माध्यमों के सहारे योगाभ्यास करने वालों को ज्यादा लुभा रहे हैं। कारण यह है कि एआई अनुकूलित योग उपाय योगाभ्यासियों की व्यक्तिगत जरूरतों का आकलन करते हैं। तदनुरुप यौगिक अभ्यास सूची तैयार करते हैं। योग मुद्राओं की निगरानी करते हैं। यौगिक मुद्राओं पर रीयल-टाइम फीडबैक देते हैं। इससे आसनों की सही मुद्रा और संभावित गलतियों की पहचान करना आसान हो जाता है और वर्चुअल कक्षाओं की प्रगति की ट्रैकिंग हो जाती है। नतीजतन, प्रशिक्षण ज्यादा असरदार और सुरक्षित हो जाता है। योग कारोबारियों को अतिरिक्त लाभ यह होता है कि उनके लिए स्टूडियो प्रबंधन करना सुविधाजनक हो जाता है।
कोरोना महामारी के बाद ऑनलाइन योग का प्रचलन तेजी से बढ़ा। अब एआई अनुकूलित तकनीकी दक्षता के कारण उसे और गति मिल रही है। भारत में योग हजारों वर्षों से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण का प्रमुख साधन रहा है। परंपरागत रूप से योग का अभ्यास गुरु-शिष्य परंपरा, ग्रंथों एवं मौखिक शिक्षा पर आधारित था। पर, 21वीं सदी की तकनीकी क्रांति ने योग को डिजिटल युग की ओर अग्रसर कर दिया है। आज ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं, जो योग के पारंपरिक ज्ञान को अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से प्रभावी ढंग से सुलभ बना रहे हैं। योगीफाई इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।
योगीफाई स्मार्ट योगा मैट है, जिसमें एक सीमा में तकनीक और योगविद्या का समन्वय दिखता है। बहुचर्चित योगीफाई आईआईटी मंडी के अग्रणी प्रयासों से अस्तित्व में आया, जिसमें अत्याधुनिक सेंसर तकनीक का उपयोग किया गया है। दावा है कि योगाफाई मैट शरीर की चाल, संतुलन और अलग-अलग मुद्राओं को ट्रैक करती है तथा हर आसन के दौरान रीयल-टाइम फीडबैक प्रदान करती है। ज्यादातर योग प्रशिक्षक आसन, प्राणायाम और मानसिक एकाग्रता पर विशेष बल देते हैं। योगीफाई इन्हीं विद्याओं को वैज्ञानिक रूप देकर, योगाभ्यासियों को सही मुद्रा, संतुलन और श्वास नियंत्रण में सहायता देता है। गलत पोज़ होने पर ऑडियो-वीडियो निर्देश भी देता है।
आईआईटी-बीएचयू के सहयोग से अस्तित्व में आया एमपीवाईजी यानी मल्टीप्लायर योगा गेमप्ले नेस्कॉम फाउंडेशन और अमेरिकी बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनी सिस्को के सीएसआर विंग सिस्को थिंगक्यूबेटर की समन्वित पहल का परिणाम है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वास्तविकता का भान कराने वाली ऑगमेंटेड रियलिटी तकनीक के समन्वय के कारण यह प्लेटफार्म समुदाय आधारित और इंटरेक्टिव बन पड़ा है। यह एआई अनुकूलित प्लेटफार्म योगाभ्यासियों के यौगिक पोज़ का रीयल-टाइम विश्लेषण करता है। ऑटो-डिटेक्शन फ़ीचर से अनुकूलित होने के कारण गलत योग मुद्राओं की ट्रैकिंग होता है और तुरंत ही सुधार का निर्देश मिल जाता है।
इसी तरह “कल्ट फीट” भारत की एक प्रमुख फिटनेस और वेलनेस कंपनी है, जो फिटनेस, पोषण, और मानसिक स्वास्थ्य को एकीकृत करता है। इसकी स्थापना मुकेश बंसल, अंकित नागोरी, और ऋषभ तैलंग ने सन् 2016 में की थी। कम समय में ही इसका कारोबार 700 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का हो चुका है। इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है, और यह छह सौ से अधिक केंद्रों के साथ नब्बे से ज्यादा शहरों में संचालित होने लगा है। कल्ट फिट सेलेब्स के लिए खास इसलिए है कि फिटनेस, योग, न्यूट्रिशन, वेलनेस और हेल्थकेयर का पूर्ण समाधान एक जगह मिल जाता है। इस तरह भारत में विकसित कई योगा सल्यूशंस बाजार में उपलब्ध हैं। “योगहेल्प” विशेष रुप से सूर्यनमस्कार के लिए ज्यादा उपयोगी है। इस तरह योग विद्या को तकनीकी रुप से दक्ष बनाने के लिए दुनिया भर में अहर्निश काम चल रहा है।
भारत ने इस मामले में अब तक जो उपलब्धियां हासिल की है, उससे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चमत्कृत है। उसने एक बुकलेट जारी करके खासतौर से आयुष प्रणालियों, जिनमें योग भी शामिल है, के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता-एआई को एकीकृत करने में भारत के अग्रणी प्रयासों को मान्यता दी है। इन उपलब्थियों के देखते हुए इस बात को बल मिलता है कि आने वाले वर्षों में एडवांस्ड एआई ‘डिजिटल गुरु’ के रुप में दार्शनिक संवाद, ग्रंथ, और टेस्ट आधारित ज्ञान देने में दिलचस्प भूमिका निभा सकता है। हालांकि इसकी कई कमजोर कड़ियां भी गिनाई जा रही हैं, जिनकी ऊपर चर्चा की गई हैं। पर, हमें समझना होगा कि अभी तो एआई शैशवावस्था में है। उसे लंबी दूरी तय करनी है। ऐसे में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। याद कीजिए, कंप्यूटर के शुरुआती दिनों में क्या कम आशंकाओं के बादल उमड़-घुमड़ रहे थे।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुकूलित यौगिक उपायो से योग के मौलिक स्वरुप को खतरा मानने वालों के लिए अरण्य सहाय की चर्चित फिल्म “ह्यूमन्स इन द लूप” में संदेश है। आदिवासी पृष्ठभूमि वाली डेटा लेबलर नेहमा को काम करते हुए एआई में उन मानवीय पक्षपातों की झलक दिखाई देने लगती है, जो उसके समुदाय के खिलाफ़ रूढ़ियों को और गहरा करते हैं। फिर समझ बनती है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता को हम उसे जिस भावना से विकसित होने देंगे, प्रतिक्रिया उसी के अनुरुप मिलेगी। इस दृष्टिकोण से एआई के दौर में परंपरागत योग के मूल स्वरुप को लेकर चिंता अकारण नहीं है। पर, एआई रुपी वृक्ष की कोपलों को मानवीय ज्ञान-विवेक और संस्कारों से संस्कारित और परिपक्व बनाया जा सका तो यह बड़ी उपलब्धि होगी। श्रीमद्भगवतगीता का संदेश भी तो है, “संसार परिवर्तनशील है, पर आत्मा शाश्वत है।” इसलिए, उम्मीद करनी चाहिए कि योग की बहुमूल्य परंपरा अक्षुण रहेगी और उसमें देशकाल के लिहाज से नवीनता का समावेश हो जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)