यदि आप गलत जीवन शैली की वजह से उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन के शिकार हो चुके हैं तो कुछ कीजिए न कीजिए, योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में उज्जायी प्राणायाम और योग निद्रा योग का अभ्यास नियमित रूप से जरूर कीजिए। अंग्रेजी दवाएं भले इस बीमारी से छुटकारा दिलाने में नाकाम हो चुकी हों, ये योगाभ्यास चमत्कार कर सकते हैं। जीने की कुछ शर्तों के साथ दवाओं से हमेशा के लिए मुक्ति दिला सकते हैं। भारत सहित दुनिया भर में कई स्तरों पर किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह निष्कर्ष निकला है।
हम सब जानते हैं और सरकारी दस्तावेज भी इस बात के गवाह हैं कि भारत में उच्च रक्तचाप महामारी का रूप ले चुका है। हर दस में तीन व्यक्ति इस महामारी की चपेट में है। स्वस्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में होने वाली सभी मौतों में से 17.5 फीसदी मौतों और साथ ही 9.7 फीसदी अक्षमता-समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाईएस) के लिए उच्च रक्तचाप जिम्मेदार है। डीएएलवाईएस कुल बीमारी के बोझ और विकलांगता, बीमारियों और प्रारंभिक मौत के कारण खो गए वर्षों को मापता है। इस बीमारी को लेकर दुनिया भर में अनुसंधान हुए और हो रहे हैं। जड़ कहां है, इसकी काफी हद तक पड़ताल की जा चुकी है। पर इससे मुक्ति के विज्ञान सम्ममत उपाय योग में ही हैं। एलोपैथिक दवाओं की सीमाएं वर्षों के अनुसंधान के बावजूद अपनी जगह बरकरार हैं। अनुसंधानों से साबित हुआ कि विशेष परिस्थितियों को छोड़ दें तो खानपान में बदलाव करके कुछ खास किस्म के योगाभ्यासों की बदौलत इस महामारी से मुक्ति पाई जा सकती है।
दुनिया भर में बीते पांच सालों में इस विषय को लेकर कई अनुसंधान हुए। पर सबके नतीजे भारत के योग रिसर्च फाउंडेशन (वाईआरएफ) और भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) के संयुक्त तत्वावधान में हुए अनुसंधान के नतीजों की पुष्टि करने वाले ही हैं। वाईआरएफ-भेल ने इस विषय पर अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत उच्च रक्तचाप के 48 मरीजों का चयन किया था। इनमें से इनमें से 34 मरीजों का योग ग्रुप बनाया गया और 14 मरीजों का कंट्रोल ग्रुप। भेल के भोपाल स्थित परिसर में हुए इस अनुसंधान के दौरान दोनों ही ग्रुपों के मरीज एक ही चिकित्सक की लिखी दवा लेते रहे। खानपान की एक समान रहा। फर्क इतना कि योग ग्रुप के मरीजों के लिए सप्ताह में छह दिन नब्बे मिनट तक कक्षा चलती थी।
मरीजों की औसत उम्र 55 साल थी औऱ उनमें से आधे मरीजों की फैमिली हिस्ट्री में उच्च रक्तचाप था। योग ग्रुप के मरीजों में से दस को मधुमेह और 11 को हृदय रोग था। सात मरीजों को थॉयराइड की समस्या थी। इन सबको आसनों में पवन मुक्तासन भाग एक व दो, ताड़ासन, तिर्यक् ताड़ासन, कटिचक्रासन, बद्धहस्तोत्थानासन और मार्जरी कराए जाते थे। प्राणायाम में श्वास की सजगता का अभ्यास, उदर स्वसन, नाड़ीशोधन, भ्रामरी और उज्जायी प्राणायाम तथा प्राण मुद्रा व हृदय मुद्रा का अभ्यास कराया जाता था। प्रत्याहार में कायास्थैर्यम्, अजपाजप और योग निद्रा का अभ्यास।
इन योगाभ्यासों के बेहतर नतीजे मिलने शुरू हुए तो अनुसंधानकर्ताओं की यह जानने की इच्छा हुई कि इतने सारे योगाभ्यासों में कौन-कौन से योगाभ्यास ज्यादा लाभदायक हैं। वे कई महीनों के प्रयोग के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उज्जायी प्राणायाम, नाड़ीशोधन प्राणायाम, भ्रामरी और योग निद्रा उच्च रक्तचाप पर काबू पाने के लिए रामबाण की तरह हैं। उज्जायी प्राणायाम और योग निद्रा के परिणाम तो बेहद चौंकाने वाले थे। अनुसंधानकर्ता योग ग्रुप के मरीजों को पांच मिनट उज्जायी प्राणायाम कराते और दो मिनट विश्राम देते। इस दौरान हर मिनट रक्तचाप की जांच के दौरान देखा गया कि सिस्टोलिक यानी ऊपर वाला रीडिंग सात मिनटों में 166 से घटकर 142 हो गया। इसी तरह डायास्टोलिक यानी नीचे वाला रक्तचाप 87 से घटकर 82 हो गया था।
अनुसंधान के दौरान देखा गया कि उच्च रक्तचाप के नियंत्रण में योग निद्रा उज्जायी प्राणायाम से भी ज्यादा असरदार है। जिन मरीजों का उज्जायी प्राणायाम के बाद सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 138 था, वह घटकर 128 रह गया था। डायास्टोलिक ब्लड प्रेशर 89 से घटकर 82 हो गया था। पर सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात हर्ट रेट को लेकर थी। प्राणायाम से ब्लड प्रेशर तो कम होता था। पर हर्ट रेट कम होने के बजाए थोड़ा बढ़ ही जाता था। चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक ऐसा घटे हुए ब्डल प्रेशर को कंपेन्सेट करने के लिए होता है। आदर्श स्थिति यह है कि प्रेशर कम हो तो हर्ट रेट भी उसी अनुपात में कम रहे। ताकि हृदय को अधिक विश्रम मिल सके। योग निद्रा के दौरान देखा गया कि ब्लड प्रशेर कम हुआ तो हर्ट रेट भी कम हो गया था। जाहिर है कि योग निद्रा ज्यादा प्रभावी साबित हुआ।
दूसरी तरफ कंट्रोल ग्रुप के मरीजों का ब्लड प्रेशर नियमित दवाओं के बावजूद एक साल के भीतर 141 से बढ़कर 142 हो गया था। डायास्टोलिक प्रेशर 90 ही रह गया था। अब यह जानना दिलचस्प होगा कि एक साल के अनुसंधान के बाद मरीजों की अंग्रेजी दवाओं पर कितनी निर्भरता रह गई थी। योग ग्रुप के 34 मरीजों में से सिर्फ दो मरीजों को ज्यादा दवाएं लेनी पड़ी थी। तेरह लोगों की दवाएँ बेहद कम हो गईं और चार लोगों की दवाएं बंद हो गईं। कंट्रोल ग्रुप के चार लोगों को नियमित दवाओं के अलावा चार दवाएं लेनी पड़ी। बाकी दस लोग साल भर पहले की तरह दवाओं के डोज लेते रहने को मजबूर थे।
सच कहिए तो आधुनिक अनुसंधानों से पूर्व में स्थापित मान्यताओं की ही पुष्टि हो रही है। मुंबई स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में अस्सी के दशक में विख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ रहे डॉ केके दांते ने उच्च रक्तचाप में योग की महत्ता को ऐसे समय में विनम्रता स्वीकार कर लिया था, जब योग आम लोगों के बीच प्रचलित नहीं था। उन्होंने भी योग निद्रा पर अनुसंधान करके कहा था कि यह चिकित्सा पद्धति उच्च रक्तचाप के उपचार के लिए नए राजमार्ग का उद्घाटन करती है। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि एलोपैथ में उच्च रक्तचाप की जो भी औषधियां हैं, वे किसी भी प्रकार से आदर्श नहीं हैं, बल्कि उनके अनेक दुष्प्रभाव हैं।
उच्च रक्तचाप की वजहें कई हैं। नए-नए अनुसंधानों से नई-नई बातें निकल कर सामने आ रही हैं। पर चिकित्सा विज्ञान के सभी अनुसंधानों में एक समान निष्कर्ष यह निकला कि अनुवांशिक वजह या हृदय रोग व किडनी संबंधी बीमारी उच्च रक्तचाप के कारण न हो तो इसकी प्रमुख वजह मनोकादैहिक (Psychosomatic) होती है। हमारे आचार, विचार व व्यवहार आक्रामक हुए नहीं कि यह बीमारी दस्तक दे देती है। आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्व विद्यालय से चिकित्सा विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले डॉ स्वामी शंकरदेवानंद सरस्वती की पुस्तक “द इफेक्ट ऑफ योग ऑन हाइपरटेंशन” में इस बात का विस्तार से उल्लेख है।
मुंबई की विख्यात चिकित्सक रह चुकीं बिहार योग विद्याय की संन्यासी और “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कैंसर” की लेखिका डॉ. स्वामी निर्मलानंद सरस्वती का कहना है कि धमनियों के सिकुड़ जाने से उच्च रक्तचाप और हृदयरोग को सीधा निमंत्रण मिलता है। अस्वस्थ्यकर जीवन पद्धति और खानपान की वजह से आदमी मोटा होता है तो धमनियां सिकुड़ जाती है। यह काम उम्र के साथ भी होता है। कोलेस्ट्रॉल और कैल्शियम धमनियों में डिपाजिट होने से भी धमनियां सिकुड़ जाती हैं। फिर तो मधुमेह भी अपनी चपेट में ले लेता है। दरअसल उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग – ये तीनों सगे भाई-बहनों की तरह हैं। उनके माता-पिता तनाव, मोटापा, चिड़चिड़ा स्वभाव और गलत रहन-सहन हैं। आजकल इन बीमारियों की छोटी बहन भी आ गई हैं। वह हैं – थायरॉयड।
स्पष्ट है कि उच्च रक्तचाप अपने आप में कोई बीमारी न होते हुए भी बेहद खतरनाक है, जानलेवा है। यह रोग कोई दबे पैर आता नहीं है। लंबे समय तक संकेत देते रहता है। पर अशांत मन इस आहट को भांपने नहीं देता। सजगता और सतर्कता इसके लिए बैरियर के काम कर सकती हैं।