योग से काया किस तरह निरोग रहती है कि उत्पादकता में अभिवृद्धि होती है, इस बात को दो बहुचर्चित उदाहरणों से समझिए। पहला उदाहरण भारत के दस शीर्ष योग संस्थानों में शूमार द योगा इंस्टीच्यूट के संस्थापक योगेंद्र जी से संबंधित है और दूसरा, विश्व प्रसिद्ध योगी बीकेएस अय्यंगार से संबंधित है। दोनों के जीवन के प्रारंभिक दिनों में एक-एक नामचीन मरीज आए और यौगिक उपाचार से स्वस्थ हो गए। इससे मरीजों की जिंदगी तो बदली ही, योग गुरूओं को भी प्रसिद्धि मिली। फिर तो दोनों योग गुरू देखते-देखते छा गए थे।
योग इतना प्रभावी क्यों है? दरअसल, भौतिक शरीर में दो महान शक्तियां हैं - पिंगला सूर्य शक्ति और इडा चन्द्र शक्ति। ये दोनों शक्तियाँ प्रकृति प्रदत्त हैं और इन्हीं के माध्यम से समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य सम्पादित होते हैं। जब ये दोनों शक्तियाँ असंतुलित और अस्त-व्यस्त हो जाती हैं, तब हमारे शरीर, मन, एवं संवेग में और अन्यत्र भी समस्याएँ पैदा होती हैं। योग विधियां इसी असंतुलन को दूर करने के लिए हैं।
मानवता के लिए योग और स्वंय एवं समाज के लिए योग, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवसों के ये दोनों ही थीम थोड़े से अंतर के साथ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हाल के वर्षों तक आम नारा होता था – करो योग रहो निरोग और योग भगाए रोग। पर जैसे-जैसे योग का प्रचलन बढ़ा, चिंतन-मनन शुरू हुआ और तन-मन पर योग के प्रभावों पर शोध कार्य होने लगे, योग के बहुआयामी पक्ष भी उभर कर सामने आ रहे हैं। अब शिद्दत के साथ महसूस किया जा रहा है कि उत्पादकता बढ़ाने में योग की महती भूमिका हो सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर योग और उत्पादकता के अंतर्संबंध को चर्चा में ला कर नीति निर्धारकों के साथ ही उद्योग जगत को भी सोचने को विवश किया है। पूर्व के कई अध्ययनों के परिणाम भी इस बात की गवाही देते हैं कि योग उत्पादकता बढ़ाने में मददगार है। उत्पादकता क्या है? संक्षेप में कहा जाए तो उत्पादन एक प्रक्रिया है, जबकि उत्पादकता उत्पादन का माप है। योग से इसका अंतर्संबंध क्या है? यही कि योग से जब व्यक्ति की काया स्वस्थ रहती है तो वह सामाजिक बेहतरी का साधन भी बन जाती है। उत्तरी वेल्स में कर्मचारियों पर शोध हुआ तो पता चला कि योगाभ्यासियों ने गैर योगाभ्यासियों की तुलना में बीमारी के लिए बीस फीसदी कम छुट्टियां लीं थीं। ऐसा ही शोध भारतीय टेलीफोन उद्योग में भी किया गया। पता चला कि योगाभ्यास करने वाले कर्मचारियों ने अन्य कर्मचारियों के मुकाबले दस फीसदी कम छुटटियां ली थीं। इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ अपने अध्ययनों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि अस्सी फीसदी कर्मचारी तनाव में रहते हैं। इससे उत्पादकता प्रभावित होती है।
महान योगी और दार्शनिक महर्षि अरविंद ने कहा था, ‘‘भारत विश्व के समक्ष योग का आदर्श रखने के लिए उठ रहा है। वह योग के द्वारा ही सच्ची स्वाधीनता, एकता और महानता प्राप्त करेगा और योग द्वारा ही उसका रक्षण करेगा।’’ परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने भी कहा था, ‘योग अतीत के गर्भ में प्रसुप्त कोई कपोल-कथा नहीं है। यह वर्तमान की सर्वाधिक मूल्यवान विरासत है। यह वर्तमान युग की अनिवार्य आवश्यकता और आने वाले युग की संस्कृति है। योग विश्व की संस्कृति बनेगा।’ अलग-अलग काल-खंडों दो आत्मज्ञानी संतों का मानस दर्शन अब हकीकत में तब्दील होता दिख रहा है।
योग से काया किस तरह निरोग रहती है, इसे दो बहुचर्चित उदाहरणों से समझिए। ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचने वाले एशिया के पहले शख्स दादाभाई नरौजी के दामाद और पेशे से अभियंता होमी डाडिना शारीरिक रूप से अशक्त हो गए थे। न धन की कमी थी, न प्रभाव कम था। दुनिया का बेहतरीन इलाज उपलब्ध था। पर बात नहीं बन पा रही थी। मुंबई विश्व विद्यालय के कुलपति आरपी मसानी को बात समझ में आ गई थी कि योगाचार्य मणिभाई हरिभाई देसाई की प्रतिभा असाधारण है। लिहाजा उन्होंने मणिभाई को होमी डाडिना से मिलवाया। डाडिना तो स्वस्थ्य हुए ही, साथ ही कुछ अन्य लोगों को बीमारियों से मुक्ति मिल गई थी। इसके साथ ही 18 नवंबर 1897 को जन्में परमहंस माधवदास के योग्य शिष्य रहे मणिभाई योगेंद्र जी के नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए और उनके द्वारा स्थापित “द योगा इंस्टीच्यूट” मौजूदा समय में भारत के दस श्रेष्ठ योग संस्थानों में शूमार हो गया।
दूसरा उदाहरण विश्व प्रसिद्ध योगी बीकेएस अयंगार से जुड़ा हुआ है। विश्व विख्यात वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन हाइपरेक्स्टेंशन से पीड़ित थे। ब्रेंकियल आर्टरी गंभीर रूप से प्रभावित हो गई थी। न्यूरो कार्डियोलॉजी से संबंधित मामला होने के कारण असहनीय दर्द के साथ ही अन्य संभावित खतरे भी परेशान करने वाले थे। कई-कई दिनों तक सो नहीं पाते थे। उन्हें बीकेएस आयंगार के बारे में पता चला तो भारत आ गए। आयंगार योग की शक्ति का कमाल हुआ और मेनुहिन को बीमारी से मुक्ति मिल गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसकी जानकारी मिली तो उन्हें शायद विश्वास न हुआ कि लाइलाज बीमारी योग से ठीक हो सकती है, जबकि वे खुद ही अनेक कठिन योग साधनाएं किया करते थे। खैर, उन्होंने मेनुहिन को अपने निवास स्थान तीनमूर्ति भवन में बुलाया और शीर्षासन करने की चुनौती दी। मेनुहिन ने सहजता से ऐसा कर दिखाया। नेहरू जी इतने प्रभावित और उत्साहित हुए थे कि खुद भी शीर्षासन कर बैठे थे। यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। देश-विदेश के अखबारों की सुर्खियां बनी और योग गुरू बीकेएस आयंगार रातों-रात दुनिया भर में मशहूर हो गए थे।
योग इतना प्रभावी क्यों है? बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने सन् 1983 में पटना स्थित रोटरी क्लब में अपने व्याख्यान में कुछ कहा था, उससे इस सवाल का माकूल जबाव मिल जाता है। उन्होंने कहा था, “मानव शरीर और मन पर योग के प्रभावों पर जो वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं, उन्हें मैं योग की उपलब्धि मानता हूँ और अपने जीवन की सार्थकता भी मानता हूँ, क्योंकि भारतवर्ष में योग का सामाजिक उपोयग हो सकता है, ऐसा लोग नहीं मानते थे। मैंने पिछले 17 सालों में मैंने 900 से अधिक वैज्ञानिक अनुसंधानों का नेतृत्व किया है या उनके साथ समन्वय किया है। इन अनुसंधानों से केवल एक बात कही जा सकती है-शरीर की बीमारियों में, मन की बीमारियों में और व्यक्तित्व की बीमारियों में जो भूमिका योग निभा सकता है, वह चिकित्सा या मनोचिकित्सा या कोई भी अन्य विज्ञान नहीं निभा सकता। यह एक दम्भपूर्ण वक्तव्य नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक निष्कर्ष है, जिसपर मैं पिछले सत्रह सालों के शोध के बाद पहुंचा हूँ।“
दरअसल, भौतिक शरीर में दो महान शक्तियां हैं। उनका न केवल रोगों और मानसिक समस्याओं के संदर्भ में, बल्कि ध्यान, एकाग्रता अथवा संकल्प शक्ति को विकसित करने के लिए दोहन करना होता है। ये शक्तियां हैं – पिंगला सूर्य शक्ति और इडा चन्द्र शक्ति। ये दोनों शक्तियाँ प्रकृति प्रदत्त हैं और इन्हीं के माध्यम से समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य सम्पादित होते हैं। जब ये दोनों शक्तियाँ असंतुलित और अस्त-व्यस्त हो जाती हैं, तब हमारे शरीर, मन, एवं संवेग में और अन्यत्र भी समस्याएँ पैदा होती हैं। नाना प्रकार की योग विधियां इसी असंतुलन को दूर करने के लिए हैं। योग की वैज्ञानिकता और योगेंद्र जी तथा अय्यंगार से जुड़े प्रसंगों से उत्पादकता में अभिवृद्धि और राष्ट्रीय उत्थान में योग की महती भूमिका का पता चलता है।
क्या भगवान का अस्तित्व है? जिस देश को कभी सपेरों का देश कहा जाता था, वहां के लोग बिना देरी किए हां में उत्तर दे तो बात समझ में आती है। पर, इस बार बारी है हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ विली सून की। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में लंबे समय तक गणितीय आधार पर शोध किया और इस निष्कर्ष पर हैं कि भगवान का अस्तित्व है। वे कहते हैं कि ब्रह्मांड की संरचना और उसमें मौजूद संतुलन इतना सटीक है कि यह संयोग मात्र नहीं हो सकता। यह जागरूक बुद्धिमत्ता से किया गया डिज़ाइन प्रतीत होता है।
डॉ सून का यह तर्क “फाइन-ट्यूनिंग तर्क” पर आधारित है, जो गणितीय सूत्रों पर आधारित है। वे कहते हैं कि ब्रह्मांड में जीवन के लिए आवश्यक भौतिक स्थिरांक (physical constants), जैसे गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुम्बकीय बल, और परमाणुओं की संरचना, इतने सटीक ढ़ंग से “ट्यून” किए गए हैं कि अगर इनमें ज़रा सा भी बदलाव होता, तो जीवन का अस्तित्व असंभव हो जाता। उदाहरण के लिए, यदि गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता में मामूली अंतर होता, तो तारे और ग्रहों का निर्माण नहीं हो पाता, और न ही जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बन पातीं। इसी तरह, विद्युत चुम्बकीय बल का मान अगर थोड़ा कम या ज़्यादा होता, तो परमाणुओं का गठन ही नहीं हो पाता।
उन्होंने इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह सटीकता एक गणितीय पैटर्न को दर्शाती है, जो संभावना (probability) के सामान्य नियमों से परे है। उनके अनुसार, यह संकेत देता है कि ब्रह्मांड को किसी बुद्धिमान शक्ति ने बनाया है। इतना सामर्थ्यवान “भगवान” के सिवा और कौन हो सकता है? डॉ. सून ने इस संदर्भ में प्रसिद्ध गणितज्ञ पॉल डिराक के विचारों का भी उल्लेख किया, जिन्होंने कहा था कि ब्रह्मांड की गणितीय सुंदरता किसी बड़े गणितज्ञ (ईश्वर) की मौजूदगी की ओर इशारा करती है।
हालांकि, डॉ. सून का यह दावा वैज्ञानिक समुदाय में सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया गया है। कई वैज्ञानिक इसे एक दार्शनिक व्याख्या मानते हैं। फिर भी, उनके तर्क ने विज्ञान और धर्म के बीच एक नई बहस को जन्म दिया है और इस बहस में गणित एक सेतु के रूप में कार्य कर रहा है।
डॉ सून का तर्क जिस फाइन ट्यूनिंग तर्क पर आधारित है, जरा उसके बारे में भी जान लीजिए। फाइन-ट्यूनिंग तर्क एक दार्शनिक और वैज्ञानिक तर्क है। उसके अनुसार ब्रह्मांड के भौतिक नियम और स्थिरांक (constants) इतने सटीक रूप से “ट्यून” किए गए हैं कि वे जीवन के अस्तित्व को संभव बनाते हैं। इसकी सटीकता किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि बुद्धिमान डिज़ाइनर का तानाबाना लगता है। इसी बात को ईश्वर के अस्तित्व के समर्थन में प्रस्तुत किया गया है।
भौतिक विज्ञानी रोजर पेनरोज़ ने गणना की कि ब्रह्मांड की प्रारंभिक एन्ट्रॉपी की सटीकता एक अत्यंत छोटी संभावना के क्रम में थी। एन्ट्रॉपी एक भौतिक अवधारणा है, जो किसी सिस्टम में “विकार” या “अव्यवस्था” की मात्रा को मापती है।
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