भारत आज तेजी से आधुनिकीकरण की राह पर अग्रसर है। शहरों की चकाचौंध, तकनीकी क्रांति और वैश्वीकरण की लहरें जहां एक ओर जीवन को सुगम बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर नैतिकता, सांस्कृतिक जड़ों और मानवीय संवेदनाओं का ह्रास हो रहा है। ऐसे में, राष्ट्र की शाश्वत नैतिक एवं सांस्कृतिक नींव से पुनः जुड़ने की एक सशक्त पहल उभर रही है। विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आध्यात्मिक नेता सुधांशु जी महाराज द्वारा प्रारंभ किया गया ‘सनातन संस्कृति जागरण अभियान’ इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अभियान सनातन धर्म की मूल भावना—करुणा, समन्वय और साझा मानवता—को आधुनिक सामाजिक ढांचे में पुनर्जीवित करने का प्रयास करता है।
अभियान की नींव दो प्राचीन आदर्शों पर टिकी है—’वसुधैव कुटुम्बकम्’ (विश्व एक परिवार है) और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ (सभी सुखी हों)। महाराज का मानना है कि ये सिद्धांत आज के व्यक्तिवादी युग में एक नैतिक दिशासूचक की तरह कार्य कर सकते हैं, जो एकता और सहानुभूति को प्रोत्साहित करते हैं। यह दृष्टिकोण न केवल सैद्धांतिक है, बल्कि व्यावहारिक भी, क्योंकि यह धर्म, अनुशासन, बुजुर्गों के प्रति आदर और गुरु-शिष्य परंपरा को जीवन की संतुलित आधारशिला मानता है। आलोचक इसे रूढ़िवादी प्रयास कह सकते हैं, किंतु वास्तव में यह प्राचीनता को आधुनिकता के साथ जोड़ने का एक संतुलित मॉडल प्रस्तुत करता है, जो युवाओं में बढ़ती पहचान की खोज को संबोधित करता है।
इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए विश्व जागृति मिशन ने भारत भर में 10 नए गुरुकुल स्थापित करने की योजना घोषित की है, जहां पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक शिक्षा के साथ समन्वित किया जाएगा। वर्तमान में कानपुर, नागपुर और दिल्ली में तीन महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ संचालित हो रहे हैं, साथ ही राजधानी में वेदव्यास उपदेशक महाविद्यालय भी सक्रिय है। ये संस्थान केवल बौद्धिक विकास पर नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण पर जोर देते हैं, ताकि छात्र नैतिक अखंडता के साथ बुद्धिमत्ता प्राप्त करें।
शिक्षा के इस मॉडल की खासियत यह है कि यह अतीत को अलग-थलग नहीं रखता, बल्कि वर्तमान के लिए अनुकूलित करता है। गुरुकुल प्रणाली प्राचीन भारत की गुरु-शिष्य परंपरा को पुनर्जीवित करती है, जो आज की डिजिटल शिक्षा में खो रही व्यक्तिगत मार्गदर्शन की कमी को पूरा कर सकती है। हालांकि, चुनौती यह है कि क्या ये संस्थान बड़े पैमाने पर पहुंच बना पाएंगे, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आधुनिक शिक्षा की पहुंच सीमित है। फिर भी, यह प्रयास सांस्कृतिक निरंतरता सुनिश्चित करने में सफल सिद्ध हो सकता है।
शिक्षा के साथ-साथ अभियान बाल संस्कार पर भी केंद्रित है। 108 बाल संस्कार केंद्रों की परिकल्पना ‘आध्यात्मिक नर्सरी’ के रूप में की गई है, जहां बच्चे बचपन से ही नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक परंपराओं से परिचित होते हैं। मिशन का कार्यक्षेत्र शिक्षा से आगे स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और मानवीय सेवा तक विस्तृत है—अस्पताल, अनाथालय और आपदा राहत प्रयास इसके उदाहरण हैं। सनातन संस्कृति जागरण अभियान इन सभी को नैतिक जागरण के साथ जोड़ता है।
बाल संस्कार केंद्र एक दूरगामी रणनीति है, क्योंकि मूल्य शिक्षा बचपन में ही प्रभावी होती है। यह आधुनिक मनोविज्ञान से मेल खाता है, जो कहता है कि प्रारंभिक वर्ष चरित्र निर्माण के लिए निर्णायक होते हैं। मिशन की व्यापक सेवाएं—जैसे आपदा राहत—यह सिद्ध करती हैं कि आध्यात्मिकता केवल ध्यान तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक कल्याण का माध्यम है। यह अभियान युवाओं में बढ़ते सांस्कृतिक पुनर्जागरण को प्रतिबिंबित करता है, जहां प्राचीन शिक्षाएं आधुनिक महत्वाकांक्षाओं से जुड़कर करुणा और संतुलन की राह दिखाती हैं।

