ज्योतिष शास्त्र और योग शास्त्र दोनों ही सृष्टि के आरंभ से ही एक दूसरे के पूरक है। तभी पराशर मुनि जैसे ऋषियों ने ज्योतिष विद्या की विशद व्याख्या की तो योग ज्ञान भी प्रकाशित किया। ज्योतिष विद्या से जिस तरह हम ग्रहों के प्रभावों को समझने की कोशिश करते हैं और उन प्रभावों को अपने अनुकूल बनाने के लिए शास्त्रसम्मत यत्न करते हैं। उसी प्रकार शरीर और मन के अनुकूलन के लिए योग विद्या का सहारा लेते हैं। योगशास्त्र से हमें ज्ञात हो चुका है कि मनुष्य के शारीरिक, मानिसक और आध्यात्मिक विकास की कुंजी योग के पास है। आधुनिक विज्ञान भी इसी निष्कर्ष पर है। योग यात्रा में गृहस्थों का ध्यानावस्था को प्राप्त हो जाना बड़ी उपलब्धि है। इससे मन का प्रबंधन होता है और मनुष्य का रूपांतरण हो जाता है, जिसका वह आकांक्षी है। हम जानते हैं कि अष्टांग योग लेकर राजयोग तक और कर्मयोग से लेकर ज्ञानयोग तक एकीकृत योग की शाखाएं हैं। जब कोई साधक योगस्थ होकर अंतर्यात्रा शुरू करता है तो बात यही नहीं थमती। बल्कि योग के वास्तविक लक्ष्य को हासिल करना भी मुमकिन हो जाता है और वह लक्ष्य है – स्वयं से साक्षात्कार और आत्मा से परमात्मा का मिलन।
लेकिन ज्योतिष विद्या क्या है और इसका योग विद्या से अंतर्संबंध किस प्रकार है? आईए, इसका विषद विश्लेषण करते हैं। योग क्रियाओं के लिए जो विधियां उपयोग में लाई जाती हैं, उनका ज्योतिष शास्त्र दृष्टिकोण से भी बड़ा महत्व होता है। यह अनुभव की बात है कि शुभ फल के लिए ज्योतिषीय उपायों को उचित मुहूर्त में क्रियान्वित करने पर परिणाम सकारात्मक होता ही है। ठीक उसी तरह, यदि ब्रह्म मुहूर्त में योग साधना की जाए तो उसका फल अनुकूल होगा, परन्तु यदि मध्याह्न अथवा असमय में योग साधना की जाए तो वह ब्रह्म मुहूर्त अथवा प्रातःकाल के अपेक्षा कम प्रभावी होगा। एक बात और। जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा ज्योतिष के नियामक हैं, उसी प्रकार से ये ग्रह योग के भी नियन्ता हैं। सूर्य प्राणवायु है और चन्द्रमा अपानवायु है और इन दोनों का ज्योतिष के साथ ही योग विद्या में महत्वपूर्ण स्थान है।
ज्योतिष में जिस प्रकार स्वस्थ रहने के बारे में जन्मकुण्डली के विभिन्न भावों का अध्ययन किया जाता है, उसी प्रकार योग में प्रगति के लिए मन की अवस्थाओं का अध्ययन जरूरी होता है। ज्योतिष में मन का कारक चन्द्रमा है, चन्द्रमा की स्थितियों के कारण ही मस्तिष्क में ज्वार-भाटे की स्थिति पैदा होती है। योग में सूर्य और चंद्रमा के बीच संतुलन बनाकर ही मन को स्थिर किया जाता है। योग साधना द्वारा तन को स्वस्थ, मन को स्थिर और आत्मा को परमपद में प्रतिष्ठित किया जाता है। हठ योग में आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि है तो कुण्डलिनी जागरण, मुद्राबन्ध, षटचक्रभेदन, नादानुसांधान तथा अमृतपान आदि भी महत्व के हैं। शरीर का प्रत्येक भाग रक्त, मज्जा, हड्डी, सहस्त्रार, आज्ञा-चक्र, कण्ठ-चक्र, विशुद्ध-चक्र, अनहतनाद, मूलाधार तक सभी ग्रहों के स्थान हैं और विभिन्न ग्रहों के आधार पर विभाजित हैं।
ज्योतिष शास्त्र की सारी बातें ग्रहों की स्थिति पर ही निर्भर करती है। ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने या उन्हें नियंत्रित करने के लिए वैदिक रीति से कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। लेकिन यह भी सच है कि यौगिक विधियों के जरिए भी ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
सूर्य के लिए सूर्य नमस्कार– जब किसी व्यक्ति की राशि में सूर्य अनिष्टकर हो जाता है तो उस व्यक्ति के ईर्द-गिर्द नकारात्मकता फैल जाती है और सबसे पहले उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता है। साथ ही कमजोर आंखें, दिल की बीमारी और कमजोर तंत्रिका तंत्र की समस्या भी हो सकती है। ऐसे में सूर्य के हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए सूर्य नमस्कार के साथ अग्निसार और भस्त्रिका सबसे उत्तम उपाय है।
चंद्रमा के लिए अनुलोम-विलोम- यदि किसी व्यक्ति का चंद्रमा कमजोर या अनिष्टकर हो जाए तो वह व्यक्ति जरुरत से ज्यादा भावुक और तनावग्रस्त हो जाता है। ऐसे में चंद्रमा को नियंत्रित करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ भस्त्रिका की जा सकती है। इसके साथ ही अगर ओम् का जप भी किया जाए तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
मंगल के लिए पद्मासन- जब किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ग्रह कमजोर या हानिकर हो तो वह व्यक्ति या तो जरुरत से ज्यादा आलसी हो जाता है या फिर अतिक्रियाशील। ये दोनों ही स्थितियां उचित नहीं हैं। ऐसे में पद्मासन, तितली आसन, मयूरासन के साथ ही अगर शीतलीकरण प्राणायाम भी किया जाए तो उपयुक्त रहेगा।
बुध ग्रह के लिए भस्त्रिका- बुध ग्रह के अनिष्टकर होने का सीधा प्रभाव व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता पर पड़ता है। साथ ही चर्म रोग होने का खतरा भी रहता है। ऐसे में बुध ग्रह के नकारात्मक असर को कम करने के लिए भस्त्रिका के साथ ओम का उच्चारण और अनुलोम-विलोम का प्रयोग हमारे प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत करता है।
बृहस्पति के लिए कपालभाति- गुरु या बृहस्पति ग्रह जब किसी व्यक्ति का अनिष्टकर हो जाता है तो व्यक्ति में पेट से जुड़ी समस्याएं, डायबीटीज़ और मोटापे की समस्या बढ़ जाती है। लिहाजा बृहस्पति को नियंत्रित करने के लिए मीठा और पीली चीजों को खाने से बचें। इसके अलावा जिस आसन और प्राणायाम के जरिए इसे नियंत्रित किया जा सकता है उसमें कपालभाति, सर्वांगासन, अग्निसार और सूर्य नमस्कार शामिल है।
शुक्र ग्रह के लिए धनुरासन- जब शुक्र ग्रह कमजोर होता है तो यौन रोग, कामुकता में असंतुलन, महिलाओं के पीरियड साइकल में अनियमितता जैसी शिकायतें होने लगती है। शुक्र ग्रह के नकारात्मक पहलू को कम करने के लिए ठंडी चीजों जैसे- दही, चावल आदि के सेवन से बचना चाहिए। साथ ही धनुरासन, हलासन, मूलबंधासन और जानुशिरासन जैसे आसन लाभदायक हो सकते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम शनि ग्रह के लिए- जब शनि ग्रह कमजोर हो जाए तो व्यक्ति एसिडिटी, आर्थ्राइटिस और हार्ट जैसी बीमारियों का शिकार हो सकता है। साथ ही नींद की कमी भी एक मुख्य समस्या है। इन सब चीजों से बचने के लिए बहुत ज्यादा तले भुने और तामसिक भोजन से बचें और ज्यादा पानी पीएं। इसके अलावा भ्रामरी, शीतलीकरण, अनुलोम-विलोम भी लाभदायक साबित हो सकते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि योग और ज्योतिष परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं। सुखमय जीवन के साथ लिए ज्योतिष विद्या के आलोक में योग साधना हितकर साबित होते है।
Brilliant piece!