सर्वव्यापी और सर्वज्ञ श्री सत्य साईं बाबा के पावन जन्मशताब्दी वर्ष में हमें उनकी कौन-सी विरासत को हृदय से अपनाने और ग्रहण करने की लालसा रखनी चाहिए? इसलिए कि बाबा ने अपनी सारी सम्पदा, अपना समस्त ऐश्वर्य और दिव्य सामर्थ्य पहले ही हमें प्रदान कर रखा है। हम सब उनकी उस असीम सम्पदा के उत्तराधिकारी हैं, उनके वारिस हैं। हम सबका दायित्व है, हम उस असली ‘सम्पदा’ को निर्मल मन से ग्रहण करते जाएं। जन्मशताब्दी वर्ष में बाबा को यही विनम्र श्रद्धांजलि होगी।
बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती कहते थे, “जैसे चंद्रमा को केवल चंद्रमा के प्रकाश से ही देखा जा सकता है, वैसे ही प्रेमस्वरूप परमात्मा तक केवल प्रेम के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। सृष्टि के आरंभ में सबसे पहले जो गुण प्रकट हुआ, वह प्रेम ही था। इसलिए अपने हृदय को पूर्णतः निर्मल और निःस्वार्थ प्रेम से भर दो और निःस्वार्थ प्रेम को ही जीवन का आधार बनाकर जीओ।“ श्री सत्य साईं बाबा भी केवल और केवल निर्मल, निःस्वार्थ तथा असीम प्रेम की संपदा छोड़ गए। यही वह वसीयत है, यही वह विरासत है जिसे हमें ग्रहण करना है।
दरअसल, श्री सत्य साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में प्रेम और सेवा को न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का साधन बनाए रखा, बल्कि उसे शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा का सबसे बड़ा इंजन बना दिया था। बाबा ने बेहतर दुनिया के लिए मंत्र दिया था – “केवल एक जाति, मानव जाति; केवल एक ही धर्म – प्रेम का धर्म।“ यह मंत्र घृणा और भय से लगातार आक्रांत विश्व में सार्वभौमिक प्रेम का आवाह्न् एक असरदार औषधि बन गया। उस औषधि का असर इतना है कि आज भी भारत से लेकर अमेरिका, यूरोप और एशिया तक के लोग निहाल हो रहे हैं। बाबा को जन्मशताब्दी वर्ष में दुनिया भर में जिस तरह याद किया जा रहा है, वह इस बात का प्रमाण है। बाबा की जन्मस्थली आंध्र प्रदेश के पुट्टुपर्थी में बीते लगभग पंद्रह दिनों से आयोजित जन्मशताब्दी समारोह में जिस श्रद्धा-भाव से भारत के उपराष्ट्रपति डॉ सीपी राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर करीब 140 देशों से आए भक्तों ने शिरकत की है, वह बहुत कुछ बयां करती है।
वैश्विक आध्यात्मिक आनंदोलन का केंद्र बने आंध्र प्रदेशे के पुट्टपर्थी में भक्तों को सत्य साईं बाबा की उपस्थिति की सजीव अनुभूति होती है। बाबा लगभग हर सत्संग में भक्तों से कहते थे, “सबसे प्रेम करो, क्योंकि सबमें भगवान हैं और सबकी सेवा करो, क्योंकि मानव सेवा ही माधव सेवा है।” बाबा ने भौतिक शरीर में रहते हुए अपने उपदेशों पर खुद भी अमल करके प्रेम और सेवा की बेहतरीन संस्कृति विकसित की। उसका परिणाम यह है कि बाबा के भक्त सेवा कार्यों में इस तरह तल्लीन होते हैं, मानों वे गुरु के चरण पखार रहे हों। यह गुरु भक्ति की अद्भुत मिसाल है। इतिहास गवाह है कि दुनिया केवल उन लोगों को लंबे समय तक याद नहीं रखती, जिन्होंने केवल चमत्कार दिखाए, बल्कि उन्हें याद रखती है, जिन्होंने समाज के ढांचे में कोई सकारात्मक और स्थायी बदलाव किया। सत्य साईं बाबा ने आध्यात्मिकता को मानव सेवा के ठोस धरातल पर उतार दिया था।
सच है कि श्री सत्य साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में ऐसे-ऐसे चमत्कार किए कि भक्तगण भी हत्प्रभ रह जाते थे। खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार बताने वाले बाबा हर शिवरात्रि पर बाबा का लिंगोद्भव चमत्कार दुनिया भर में चर्चित रहा। बाबा कहते थे, “चमत्कार मेरे विजिटिंग कार्ड होते हैं। लोगों को मेरा परिचय मिलता है। तभी उनकी चेतना को उन्नत बनाकर प्रेम और सेवा जैसे सद्गुणों का विकास करना मुमकिन हो पाता है।” बाबा के उपदेश केवल सैद्धांतिक नहीं होते थे, बल्कि उसे व्यवहार में लाकर उसकी अहमियत से सबको अवगत कराते थे। बिना कैश काउंटर वाला चिकित्सालय इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
आज के युग में जबकि चिकित्सा दुनिया भर में एक महंगा व्यवसाय बन चुकी है, श्री सत्य साईं बाबा द्वारा पुट्टपर्थी और व्हाइटफील्ड में स्थापित सुपर-स्पेशलिटी अस्पतालों के कारण लाखों लोगों को बिना धन खर्च किए नई जिंदगी मिल चुकी है। यह निष्काम कर्म का अनुपम उदाहरण है। जाहिर है कि स्वास्थ्य सेवा के इस मॉडल से जिन परिवारों के सदस्यों को नया जीवन मिलता है, उनके लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संस्थागत सेवा ही उनकी सबसे बड़ी स्मृति रह जाती है। श्री सत्य साईं बाबा ने शिक्षा को भी बौद्धिक विकास का साधन मात्र नहीं रहने दिया, बल्कि उसे मानवीय मूल्यों सत्य, धर्म, शांति, प्रेम और अहिंसा से जोड़ा। आज जब दुनिया नैतिक संकटों से जूझ रही है, चिकित्सा मॉडल की तरह उनका शिक्षा मॉडल भी लाखों युवाओं का तारणहार बना हुआ है।
स्पष्ट है कि सत्य साईं बाबा की स्मृतियाँ महज आस्था या चमत्कारों के कारण ही नहीं, बल्कि नि:स्वार्थ प्रेम का शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा का सबसे बड़ा इंजन बन जाने के कारण है। बाबा चमत्कार को कभी साधना का लक्ष्य बनाने के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने तो इसे संशयी युग में लोगों को प्रेम और सेवा मार्ग की ओर प्रवृत्त करने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। वैसे भी परंपरा में चमत्कार को बुरा तभी माना जाता है, जब वह अहंकार बढ़ाए। बाबा अकेले संत नहीं थे, जिन्होंने चमत्कार दिखाए। वैदिक ग्रंथों से भी पता चलता है कि किस तरह श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठाया था, दावानल निगला, युद्धभूमि में विराट रूप दिखाया था।
सत्य साईं बाबा का जन्म आंध्रप्रदेश में चित्रवती नदी और पथरीली पहाड़ियों के किनारे बसे छोटे-से गांव पुट्टपर्थी में 23 नवंबर, 1926 को हुआ था। वहीं 24 अप्रैल 2011 को समाधि भी ली। इस बीच उनकी आध्यात्मिक शक्तियों के कारण बंजर भूमि उर्वर हो गई और आज वही धरती न केवल एक प्रमुख जिला मुख्यालय है, बल्कि करोड़ों लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। श्री सत्य साईं बाबा ने कम उम्र में ही घोषणा कर दी थी कि वे शिरडी के साईंबाबा का अवतार लेकर मानव सेवा के लिए आए हैं। उनकी विरासत इस बात की गवाही देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शताब्दी समारोह में ठीक ही कहा – “बाबा बाबा का जीवन “वसुधैव कुटुंबकम” के दर्शन का प्रतीक था और उनका जन्म शताब्दी वर्ष सर्वव्यापी प्रेम, शांति और सेवा का महापर्व है।“
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

