आध्यात्मिक शिक्षा से मानव का समग्र कल्याण हो सकता है, यह कोई कपोल कल्पना नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है और सदैव प्रमाणित होता रहा है। इसलिए ब्रह्माकुमारी संगठन का “समग्र कल्याण के लिए आध्यात्मिक शिक्षा” अभियान सराहनीय है। इस अभियान को व्यक्तिगत परिवर्तन से शुरू होकर सामाजिक और वैश्विक सुधार तक पहुँचने के एक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने हरियाणा के हिसार स्थित ब्रह्माकुमारी संगठन की स्वर्ण जयंती समारोह में इस अभियान का श्रीगणेश करते हुए ठीक ही कहा कि आध्यात्मिकता पर आधारित सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या अन्य किसी भी प्रकार की व्यवस्था नैतिक और टिकाऊ बनी रहती है। इसलिए, ब्रह्माकुमारी संस्था द्वारा आध्यात्मिक ऊर्जा का उपयोग राष्ट्र और समाज के लाभ के लिए किया जाना सुखद है।
“समग्र कल्याण के लिए आध्यात्मिक शिक्षा” जैसे अभियान की अवधारणा को ऐतिहासिक और वैश्विक संदर्भ में देखने पर यह स्पष्ट होता है कि विभिन्न देशों और कालखंडों में आध्यात्मिकता को शिक्षा के माध्यम से व्यक्तिगत, सामाजिक और वैश्विक कल्याण से जोड़ने के प्रयास हुए हैं। जैसे, महर्षि महेश योगी का अभियान। महर्षि महेश योगी ने 1955 में ट्रान्सेंडैंटल मैडिटेशन तकनीक की शुरुआत की और 1957 में इसे एक वैश्विक आंदोलन के रूप में स्थापित किया। उनका अभियान वेदों और योग पर आधारित था, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक शिक्षा के माध्यम से मानव जीवन को समृद्ध करना था। इसमें बहुत हद तक सफलता मिली भी।
इसी तरह, भूटान ने आर्थिक विकास के बजाय “सकल राष्ट्रीय खुशहाली” को अपने विकास का आधार बनाया। इसमें बौद्ध आध्यात्मिकता को शिक्षा और नीति निर्माण में एकीकृत किया गया। सन् 1972 में चौथे द्रुक ग्याल्पो, जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने इस अवधारणा को प्रस्तुत किया। जर्मनी में रुदोल्फ स्टीनर ने वाल्डोर्फ शिक्षा की शुरुआत की, जो एंथ्रोपॉस्फी (आध्यात्मिक दर्शन) पर आधारित थी। पहला स्कूल 1919 में स्टटगार्ट में खुला। इसका उद्देश्य था बच्चों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के माध्यम से समग्र कल्याण। इस अभियान को भी सफलता मिली थी। वैसे, प्राचीन भारत में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली आध्यात्मिक और व्यावहारिक ज्ञान का संयोजन थी। यह वेदों, उपनिषदों और योग पर आधारित थी। ताकि आत्म-ज्ञान, सामाजिक कर्तव्य और विश्व कल्याण हो सके।
अब समझते हैं कि अध्यात्म से व्यक्तिगत कल्याण किस तरह होता है। शास्त्रीय दृष्टिकोण से से पता चलता है कि आध्यात्मिक शिक्षा आत्म-ज्ञान (वेदांत), कर्म और नैतिकता (गीता), और एकता (ऋग्वेद) के सिद्धांतों के माध्यम से व्यक्तिगत शांति, सामाजिक सामंजस्य और वैश्विक कल्याण को संभव बनाती है। वैज्ञानिक साक्ष्य और ब्रह्मकुमारीज संगठन के वास्तविक प्रभाव इसे समकालीन संदर्भ में भी सिद्ध करते हैं। उपनिषदों, जैसे ईशावास्य उपनिषद् आदि में कहा गया है कि आत्म-ज्ञान (आत्मनः विद्या) ही दुःख से मुक्ति का मार्ग है। “आत्मानं विद्धि” (स्वयं को जानो) का सिद्धांत व्यक्तिगत शांति का आधार है। योग सूत्र में योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः कहा गया है। यहां ध्यान को चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करने का साधन बताया गया है।
भगवद्गीता के छट्ठे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं, “बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।” यानी वह आत्मा उसका मित्र है, जो आत्म-नियंत्रण से जीता गया हो। यह आध्यात्मिक शिक्षा का व्यक्तिगत प्रभाव दर्शाता है। इसे आधुनिक विज्ञान के नजरिए से देखें तो और भी स्पष्टता आ जाती है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अध्ययन के मुताबिक नियमित ध्यान मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स को सक्रिय करता है, जो तनाव कम करने और निर्णय क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। ब्रह्मकुमारीज़ के राजयोग ध्यान से ऐसे ही परिणाम मिलते के दावे किए जाते रहे हैं और योगाभ्यासी भी इसकी पुष्टि करते मिलते हैं।
अब बात सामाजिक कल्याण की। मनुस्मृति (7.20) कहती है, “धर्मः तस्मात् सुखं लभेत्”—धर्म (नैतिकता) से सुख प्राप्त होता है। आध्यात्मिक शिक्षा नैतिकता और करुणा सिखाती है, जो सामाजिक सामंजस्य का आधार है। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है, “परस्परोपग्रहो जीवानाम्” (2.47) यानी दूसरों की सेवा आत्मा का कर्तव्य है, जो सामाजिक एकता को बढ़ाता है। यानी इस बात के प्रमाण के लिए कहीं दूर भटकने की जरुरत नहीं है। हम जानते हैं कि महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के आध्यात्मिक सिद्धांत के कारण स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन एकता के सूत्र में बंधा रहा और सामाजिक सुधार संभव हो सका था। अब तो विज्ञान भी आध्यात्मिक सिद्धांतों पर मुहर लगाता दिखता है। “जर्नल ऑफ रिलिजन एंड हेल्थ” (2019) में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, आध्यात्मिक समुदायों में अपराध दर और सामाजिक तनाव कम पाया गया।
अंतिम सवाल यह कि अध्यात्म से वैश्विक कल्याण कैसे संभव है? ऋग्वेद का श्लोक है, “सं गच्छध्वं सं वदध्वं।” यानी एक साथ चलो, एक साथ बोलो। यह वैश्विक एकता का संदेश है, जो आध्यात्मिकता से प्रेरित है। इसी बात को छांदोग्य उपनिषद् में कहा गया है, “सर्वं खल्विदं ब्रह्म।” मतलब कि सब कुछ एक ही चेतना से जुड़ा है, जो वैश्विक एकता का आधार है। इसका प्रमाण हैं ब्रह्माकुमारी की “मिलियन मिनट्स ऑफ पीस” जैसी परियोजनाएँ। ये परियोजनाएं संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और वैश्विक शांति के लिए बेहद मददगार हैं। यूएन की “सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स” रिपोर्ट्स में भी ध्यान और आध्यात्मिकता को शिक्षा, शांति और पर्यावरण संरक्षण से जोड़कर देखा गया है।
ब्रह्माकुमारी संगठन की शिक्षाओं का आधार राजयोग है। राजयोग आधारित शिक्षाओं से समग्र कल्याण कैसे संभव है? इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के दोनों पुत्रों और पति की मौत के बाद जीवन में सुनामी आ गई थी। ब्रह्माकुमारी की शिक्षाओं का असर हुआ कि वे मानसिक पीड़ाओं से उबर कर कर्तव्य के पथ पर अग्रसर हो पाई थीं। ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। कठोपनिषद् में मन को रथ के घोड़े से तुलना की गई है, जिन्हें आत्मा (सारथी) को नियंत्रित करना चाहिए, वरना वे भटक जाते हैं। राजयोग की अवधारणा है कि अधिकांश समस्याएं अपने मन, भावनाओं और विचारों से उत्पन्न होती हैं और मन को योग के जरिए वश में किया जा सकता है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात पर मुहर लगाता दिखता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने इस विषय पर अध्ययन किया तो पाया कि नियमित ध्यान मस्तिष्क में ग्रे मैटर को बढ़ाता है और अमिग्डाला की गतिविधि को कम करता है, जिससे तनाव और चिंता कम होती है। उपरोक्त तमाम तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि आध्यात्मिक शिक्षा से मानव का समग्र कल्याण संभव है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)